अजमेर : तीर्थराज गुरु पुष्कर जगत पिता ब्रह्मा की नगरी है. यहीं पर कार्तिक एकादशी से कार्तिक पूर्णिमा तक जगत पिता ब्रह्मा ने सृष्टि यज्ञ किया था. इस यज्ञ में देव दानव,यक्ष, गंधर्व, सर्प आदि को आमंत्रित किया था, लेकिन जगत पिता ब्रह्मा देवों के देव महादेव को सृष्टि यज्ञ में आमंत्रित करना भूल गए, इसलिए स्वयं महादेव ने पुष्कर में आकर ऐसी अद्भुत लीला रची कि यज्ञ में मौजूद सभी लोग त्राहिमाम-त्राहिमाम करने लगे. इस लीला में शिव शंभु ने अटमटा रूप धारण किया था. इसलिए भोलेनाथ यहां अटमटेश्वर महादेव के नाम से विख्यात होकर पुष्कर तीर्थ से सदा-सदा के लिए जुड़ गए. पुष्कर के अटमटेश्वर महादेव का शिवलिंग अति प्राचीन है. आइए जानते हैं पुष्कर के अटमटेश्वर महादेव की विचित्र लीला की कथा.
पुष्कर को जगतपिता ब्रह्मा की नगरी माना जाता है. पुष्कर करोड़ों हिंदुओं की आस्था का बड़ा केंद्र है. यहां के अध्यात्मिक माहौल और तपोभूमि से आकर्षित होकर देश से ही नहीं, विदेशों से लोग पुष्कर आते हैं. यह कम ही लोग जानते हैं कि तीर्थ गुरु पुष्कर सरोवर में स्नान के बाद जगतपिता ब्रह्मा के दर्शन करने से पहले उन्हें अटमटेश्वर महादेव के दर्शन करना आवश्यक होता है. अटमटेश्वर महादेव के दर्शन के बाद ही तीर्थयात्रियों को पुष्कर तीर्थ का फल मिलता है.
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माना जाता है कि जगतपिता ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना से पहले पुष्कर में यज्ञ किया था. इस यज्ञ में जगत पिता ब्रह्मा ने सभी को आमंत्रित किया, लेकिन महादेव को भूल गए और यज्ञ में महादेव को स्थान भी नहीं दिया गया. ऐसे में शिव शंभु स्वयं पुष्कर चले आए. यहां महादेव ने अघोर तांत्रिक का रूप धरा और हाथ में कपाल लेकर यज्ञ स्थल के बाहर पहुंच गए. अटपटा वेश धरे महादेव को कोई नहीं पहचान पाया. यज्ञ स्थल में मौजूद ब्राह्मणों को जब अटमटा वेश धरे अघोर तांत्रिक के भीतर आने का प्रयास करने के बारे में पता चला, तो उन्होंने महादेव को बाहर ही रोक दिया और कहा कि तामसी और अपवित्र वस्तु के साथ यज्ञ स्थल में प्रवेश वर्जित है. ऐसे में महादेव ने कपाल को यज्ञ स्थल के बाहर रख दिया और खुद सरोवर में स्नान के लिए चले गए.
जगत पिता ब्रह्मा को हुआ भूल का भान : यज्ञ स्थल के बाहर कपाल को देख किसी ने लकड़ी से कपाल को दूर उछाल दिया. उस एक कपाल से कई कपाल उत्पन्न होने लगे और देखते ही देखते हजारों कपाल पुष्कर में चारों और फैल गए, जिनको देखकर लोग भयभीत हो गए. यज्ञ स्थल में हाहाकार मच गया. वहां मौजूद सभी लोग त्राहिमाम-त्राहिमाम कर जगत पिता ब्रह्मा के पास पहुंचे और पूरी बात उन्हें बताई. जगत पिता ब्रह्मा ने जब ध्यान लगाकर देखा, तो उन्हें महादेव की लीला के बारे में पता चल गया. साथ ही उन्हें अपनी भूल का भी एहसास हो गया.
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यज्ञ-अनुष्ठान में महादेव का विशेष भाग अनिवार्य : जगतपिता ब्रह्मा ने चंद्रशेखर स्त्रोत से भगवान शिव की स्तुति कर उन्हें प्रसन्न किया. इसके बाद जगत पिता ब्रह्मा ने अपनी भूल को सुधारते हुए महादेव का स्थान यज्ञ में रखा. साथ ही जगतपिता ब्रह्मा ने हर यज्ञ और अनुष्ठान में महादेव का विशेष स्थान और भाग का होना अनिवार्य कर दिया. तब से कोई यज्ञ और अनुष्ठान महादेव के बिना पूर्ण नहीं होता है. वराह घाट के नजदीक अटमटेश्वर महादेव का मंदिर अति प्राचीन शिव मंदिरों में से एक है. वर्षों से अटमटेश्वर महादेव का मंदिर शिव भक्तों के लिए आस्था का केंद्र रहा है. यूं तो हर रोज महादेव की पूजा-अर्चना होती है, लेकिन श्रावण मास में मंदिर में शिव भक्तों का तांता लगा रहता है.
स्वयंभू हैं अटमटेश्वर महादेव : पुष्कर के वराह घाट के नजदीक प्राचीन अटमटेश्वर महादेव का मंदिर है. मंदिर में शिवलिंग स्वयंभू हैं और सतयुग से यहीं विराजमान हैं. मंदिर के ठीक ऊपर महादेव का एक और मंदिर है, जो सर्वेश्वर महादेव के नाम से विख्यात है. दोनों स्थान शिव भक्तों के लिए विशेष हैं. जगत पिता ब्रह्मा के वचनों के अनुसार ब्रह्मा नगरी में सरोवर में स्नान कर जगतपिता ब्रह्मा के दर्शन करने से पूर्व अटमटेश्वर के दर्शन करने से ही पुष्कर तीर्थ का फल मिलता है.
मंदिर के ऊपर मंदिर : पंडित रवि शर्मा बताते हैं कि अटमटेश्वर महादेव के ठीक ऊपर सर्वेश्वर महादेव का मंदिर है, जो अति प्राचीन है. मुगलों की ओर से जब हिंदू मंदिर तोड़े गए थे, तब सर्वेश्वर मंदिर को भी क्षति पहुंचाई गई थी. बाद में अजमेर में मराठों का राज आने पर मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ. मंदिर में पंचमुखी शिवलिंग की स्थापना की गई. बताया जाता है कि चौहान वंश के राजा अर्णोराज ने 1100 ईसवी से पहले मंदिर का निर्माण करवाया था.
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गर्मी में ठंडा और सर्दी में गर्म रहता है मंदिर : पंडित रवि शर्मा बताते हैं कि अटमटेश्वर महादेव का मंदिर अति प्राचीन है और जमीन तल से करीब 10 फीट नीचे है. मंदिर के गर्भ में गर्मियों में ठंडक रहती है, जबकि सर्दियों में यहां गर्मी का अहसास होता है. पुष्कर के लोगों में ही नहीं बल्कि तीर्थ यात्रियों में भी मंदिर को लेकर गहरी आस्था है. उन्होंने बताया कि मंदिर में लोग रोज पूजा- अर्चना करते हैं, लेकिन सावन में यहां विशेष अनुष्ठान और अभिषेक किए जाते हैं. सावन में अटमटेश्वर महादेव का नित्य नयनाभिराम श्रृंगार किया जाता है.
हवा से जती ने उतारा था मंदिर : अटमटेश्वर महादेव के महंत बंशीधर जती के पुत्र गुलाब जती बताते हैं कि सदियों पूर्व तंत्र साधना से राक्षस मंदिरों को हवा में उड़ाकर ले जाते थे. पुष्कर में ऐसे 6 मंदिर हैं, जिनके बारे में बताया जाता है कि वह हवा में उड़ाकार ले जाए जा रहे थे, तब उनके पूर्वज जती ने अपनी तंत्र विद्या से मंदिरों को पुष्कर की धरती पर उतारा. इनमें से एक सर्वेश्वर महादेव का मंदिर है.