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जोधपुर भीतरी शहर की विशेष बसावट और बनावट देती है गर्मी से सुकून - special settlement and structure of Jodhpur

जोधपुर को सूर्य नगरी भी कहा जाता है, क्योंकि यहां सूरज की किरणें अपने प्रचंड रूप में पड़ती हैं. इस कारण जोधपुर के पुराने शहर, जिसे भीतरी शहर कहा जाता है, की बनावट इस तरह की गई है कि यहां गर्मी कम लगती है. यहां की बसावट को लेकर शोध भी हो चुका है, जिसमें बाहरी शहर के मुकाबले भीतरी शहर में तीन चार डिग्री का अंतर होता है.

special settlement and structure of Jodhpur
जोधपुर भीतरी शहर की विशेष बसावट (photo etv bharat jodhpur)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Jun 7, 2024, 4:25 PM IST

जोधपुर भीतरी शहर की विशेष बसावट. (etv bharat jodhpur)

जोधपुर. गर्मी का दौर चल रहा है. जोधपुर शहर में आज भी तापमान चालीस डिग्री के आसपास रहता है. एक सप्ताह पहले तक यहां 47 डिग्री था. पंखे व कूलर भी इस गर्मी में बेअसर हैं. गर्मी से लोग परेशान हैं, लेकिन दूसरी और जोधपुर का भीतरी शहर है, जहां अपेक्षाकृत अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा गर्मी कम महसूस होती है. भीतरी शहर मेहरानगढ़ दुर्ग की तलहटी में बसा हुआ हैं. भीतरी शहर और बाहरी शहर में दिन के अधिकतम तापमान में तीन से पांच डिग्री का फर्क रहता है. इसका प्रमुख कारण भीतरी शहर की बसावट और यहां के मकानों की विशेष बनावट है. भीतरी शहर की तंग टेढ़ी मेढ़ी गलियां, चूने से बनाए गए मकान, जिसमें घाटू का पत्थर का उपयोग हुआ है और नीले रंग की पुताई. यह सभी कारण मिलकर भीतरी शहर को गर्मियों में बाहरी इलाकों से ठंडा बनाते है.

मियांड्रिंग स्ट्रीट से कम होती सूरज की तपिश: शहर के एमबीएम इंजीनियरिंग विश्वविद्यालय में एक दशक पहले प्रो हरेंद्र बोहरा ने रिसर्च की थी. तब की उस रिसर्च में यह सामने आया था कि यहां की टेढ़ी मेढ़ी तंग गलियां और उनके अंदर के खुले चौक गर्मी में वरदान साबित होते हैं. इन तंग गलियों को सिविल इंजीनियरिंग की भाषा में मियांड्रिंग स्ट्रीट कहा जाता है. यहां की गलियों की बनावट से यहां मल्टीपल रिफ्लेक्शन प्रक्रिया होती है. इस कारण सूर्य की तेज किरणों की तपिश नीचे पहुंचते पहुंचते लगभग खत्म हो जाती है. इसकी वजह से गलियां ठंडी रहती है. इसका सीधा असर घरों पर होता है. 500 साल से अधिक पुराने इस शहर के शुरूआती दौर में बिजली नहीं थी. ऐसे में तत्कालीन वास्तुकारों ने सुरक्षा की दृष्टि संकरी गलियां बनाई थी, जो अब गर्मियों में फायदेमंद साबित हो रही है.

पढ़ें: विदेशों तक जाती है जोधपुर की मीठी कचौरी, शुद्ध मावे से होती है तैयार, जानें 70 साल पुराना इतिहास

घाटू के पत्थर की मोटी दीवारें: भीतरी शहर की गलियों में बने मकान की दीवार बाहरी शहर के मकानों से ज्यादा मोटी हैं, इनकी मोटाई दो फिट तक है, जबकि बाहरी क्षेत्र में नौ इंच की दीवारों का चलन हो गया है. मोटी दीवारों की वजह से अगर मकान का कोई हिस्सा धूप के सामने आता है तो भी उसका असर कम होता है. इसके अलावा मकानों पर चूने की सफेदी होती है, जिसमें नीला रंग मिलना होता है. उससे भी गर्मी का असर कम होता है.

चूने की छतें, घरों में चौक: पुराने मकानों की सभी छतें चूने की बनाई है. इनको बनाने के लिए काफी मेहनत लगती है. चूने के संदे का काम बहुत मजबूत होता है. एक बार तैयार होने के बाद बरसों तक धूप पानी का इस पर कोई असर नहीं होता है. भीतरी शहर के रहने वाले लोगों का कहना है कि सूर्य की किरणें चूने से रिफ्लेक्ट होती हैं. ऐसे में कमरों में सूर्य की किरणों का असर कम होता है. यही वजह है दीवारों पर चूने का लेप होता है. घरों में चौक बने हैं, जिनमें कमरे, रसोई व बरामदे के दरवाजे खुलते है. चौक का निर्माण इस तरह से किया गया है कि घर में हवा आने पर ठंडक रहती है.

इसे भी पढ़ें: प्लास्टिक वेस्ट से सजा जोधपुर शहर, ब्लू सिटी की गलियों की पेंटिंग्स से पर्यटक अभिभूत

ऊंचे मकान, पतली गलियां: शहर के रहने वाले मनोजबोहरा बताते हैं कि पुरानी शिल्पकला के तहत भीतरी शहर के मकानों की उंचाई काफी ज्यादा है. तंग गलियों में उंचे मकान होने से सूरज की किरणें जमीन तक नहीं पहुंची है. इसके अलावा इन मकानों में झरोखे दार झालियां होती है, जिनसे धूप छन छन कर आती है. इससे धूप का असर कम होता है. उंचे मकानों के बाहरी मुख्य हिस्सों पर ज्यादा खिड़कियां होती हैं. इससे घर हवादार रहते हैं, गर्मी का असर कम होता है. यह उंचे मकान दो से तीन मंजिला होते हैं. इनकी बनावट सीढ़ीनुमा है, जिससे धूप कम अंदर आती है.

जोधपुर भीतरी शहर की विशेष बसावट. (etv bharat jodhpur)

जोधपुर. गर्मी का दौर चल रहा है. जोधपुर शहर में आज भी तापमान चालीस डिग्री के आसपास रहता है. एक सप्ताह पहले तक यहां 47 डिग्री था. पंखे व कूलर भी इस गर्मी में बेअसर हैं. गर्मी से लोग परेशान हैं, लेकिन दूसरी और जोधपुर का भीतरी शहर है, जहां अपेक्षाकृत अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा गर्मी कम महसूस होती है. भीतरी शहर मेहरानगढ़ दुर्ग की तलहटी में बसा हुआ हैं. भीतरी शहर और बाहरी शहर में दिन के अधिकतम तापमान में तीन से पांच डिग्री का फर्क रहता है. इसका प्रमुख कारण भीतरी शहर की बसावट और यहां के मकानों की विशेष बनावट है. भीतरी शहर की तंग टेढ़ी मेढ़ी गलियां, चूने से बनाए गए मकान, जिसमें घाटू का पत्थर का उपयोग हुआ है और नीले रंग की पुताई. यह सभी कारण मिलकर भीतरी शहर को गर्मियों में बाहरी इलाकों से ठंडा बनाते है.

मियांड्रिंग स्ट्रीट से कम होती सूरज की तपिश: शहर के एमबीएम इंजीनियरिंग विश्वविद्यालय में एक दशक पहले प्रो हरेंद्र बोहरा ने रिसर्च की थी. तब की उस रिसर्च में यह सामने आया था कि यहां की टेढ़ी मेढ़ी तंग गलियां और उनके अंदर के खुले चौक गर्मी में वरदान साबित होते हैं. इन तंग गलियों को सिविल इंजीनियरिंग की भाषा में मियांड्रिंग स्ट्रीट कहा जाता है. यहां की गलियों की बनावट से यहां मल्टीपल रिफ्लेक्शन प्रक्रिया होती है. इस कारण सूर्य की तेज किरणों की तपिश नीचे पहुंचते पहुंचते लगभग खत्म हो जाती है. इसकी वजह से गलियां ठंडी रहती है. इसका सीधा असर घरों पर होता है. 500 साल से अधिक पुराने इस शहर के शुरूआती दौर में बिजली नहीं थी. ऐसे में तत्कालीन वास्तुकारों ने सुरक्षा की दृष्टि संकरी गलियां बनाई थी, जो अब गर्मियों में फायदेमंद साबित हो रही है.

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घाटू के पत्थर की मोटी दीवारें: भीतरी शहर की गलियों में बने मकान की दीवार बाहरी शहर के मकानों से ज्यादा मोटी हैं, इनकी मोटाई दो फिट तक है, जबकि बाहरी क्षेत्र में नौ इंच की दीवारों का चलन हो गया है. मोटी दीवारों की वजह से अगर मकान का कोई हिस्सा धूप के सामने आता है तो भी उसका असर कम होता है. इसके अलावा मकानों पर चूने की सफेदी होती है, जिसमें नीला रंग मिलना होता है. उससे भी गर्मी का असर कम होता है.

चूने की छतें, घरों में चौक: पुराने मकानों की सभी छतें चूने की बनाई है. इनको बनाने के लिए काफी मेहनत लगती है. चूने के संदे का काम बहुत मजबूत होता है. एक बार तैयार होने के बाद बरसों तक धूप पानी का इस पर कोई असर नहीं होता है. भीतरी शहर के रहने वाले लोगों का कहना है कि सूर्य की किरणें चूने से रिफ्लेक्ट होती हैं. ऐसे में कमरों में सूर्य की किरणों का असर कम होता है. यही वजह है दीवारों पर चूने का लेप होता है. घरों में चौक बने हैं, जिनमें कमरे, रसोई व बरामदे के दरवाजे खुलते है. चौक का निर्माण इस तरह से किया गया है कि घर में हवा आने पर ठंडक रहती है.

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ऊंचे मकान, पतली गलियां: शहर के रहने वाले मनोजबोहरा बताते हैं कि पुरानी शिल्पकला के तहत भीतरी शहर के मकानों की उंचाई काफी ज्यादा है. तंग गलियों में उंचे मकान होने से सूरज की किरणें जमीन तक नहीं पहुंची है. इसके अलावा इन मकानों में झरोखे दार झालियां होती है, जिनसे धूप छन छन कर आती है. इससे धूप का असर कम होता है. उंचे मकानों के बाहरी मुख्य हिस्सों पर ज्यादा खिड़कियां होती हैं. इससे घर हवादार रहते हैं, गर्मी का असर कम होता है. यह उंचे मकान दो से तीन मंजिला होते हैं. इनकी बनावट सीढ़ीनुमा है, जिससे धूप कम अंदर आती है.

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