प्रयागराज : संगम नगरी धार्मिक पर्यटन का एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है. हर 12 साल बाद होने वाला महाकुंभ का मेला हिंदुओं के लिए सबसे पवित्र तीर्थ यात्राओं में से एक रहा है. गंगा, यमुना और सरस्वती नदी के संगम स्थित इस शहर में कई मंदिर हैं. यहां पर महाभारत काल के भीष्म पितामह का भी एक प्राचीन मंदिर है. बताया जाता है कि यह मंदिर करीब 200 साल पुराना है.
मंदिर के पुजारी पंडित श्यामधर त्रिपाठी बताते हैं कि भीष्म पितामह महाभारत के प्रमुख योद्धाओं में शामिल थे. वे अपने बल और बुद्धि के लिए जाने जाते हैं. भीष्म पितामह जिनका मूल नाम देवव्रत भी था. मान्यता है कि उन्हें अपने पिता द्वारा 'इच्छामृत्यु' का वरदान मिला था. उन्होंने बताया कि भीष्म पितामह एक मात्र मंदिर प्रयागराज के नाग वासुकी मंदिर के समीप स्थित है. इस मंदिर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं. उन्होंने बताया कि यहां गंगा पुत्र भीष्म पितामह की मूर्ति है. महाभारत में इनकी प्रमुख भूमिका थी. यह त्रिवेणी संगम में इस वजह से बनाई गई है कि यहां गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम है. गंगापुत्र होने की वजह से उनकी विग्रह बना दी गई है. इतनी विशाल विग्रह पूरे भारतवर्ष में नहीं है. यह इकलौती मूर्ति है जो सरसैया पर लेटे हुए भीष्म पितामह की विग्रह है. मंदिर में 1861 के समय की मूर्ति है.
श्रद्धालु हर्षित साहू ने बताया कि वे मध्य प्रदेश के बैतूल जिले से आए हुए हैं, जिले में एक तहसील है. पहला ऐसा मंदिर है जहां भीष्म पितामह की पहली मूर्ति अदभुत रूप में है, जहां हमें दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है. योगी सरकार अयोध्या, इलाहाबाद, वाराणसी सभी जगह प्राचीन मंदिरों में निर्माण कार्य चालू है, जिसे देखकर हमें बड़ी प्रसन्नता हुई.