मनेन्द्रगढ़ चिरमिरी भरतपुर: छत्तीसगढ़ के एमसीबी जिले में जनकपुर से महज 7 किलोमीटर दूर भगवानपुर नामक एक ऐसा ग्राम है. यहां शक्ति स्वरूपा मां चांग देवी अपनी अलौकिक शक्ति के साथ विराजमान है. जिस प्रकार सरगुजा की महामाया, कुदरगढ़ी महारानी की पूजा अर्चना की जाती है. उसी तरह चांगभखार रियासत के लोग मां चांग देवी को पूजते हैं. यहां माता की अखंड दीप ज्योति प्रज्ज्वलित है. जिसके दर्शन करने हर साल भक्त बड़ी संख्या में मंदिर पहुंचते हैं.
मां चांग देवी के दरबार में अखंड ज्योति: पुरोहितों के अनुसार, कई सालों से माता रानी के दरबार में अखंड ज्योति प्रज्वलित है. मान्यता है कि इस मंदिर में माता रानी और अखंड ज्योति के दर्शन कर सच्चे मन से जो भी भक्त अपनी मनोकामनाएं माता के समझ रखता है. उसे माता रानी मां चांग देवी जरूर पूरा करती है.
नवरात्रि में चंडी यज्ञ अनुष्ठान की महत्व: मां चांग देवी के दरबार में दोनों नवरात्रि के समय चंडी यज्ञ अनुष्ठान भी किया जाता है. इस मंदिर में आयोजित कार्यक्रम किसी से चंदा लेकर नहीं किया जाता. बल्कि माता रानी के दरबार में दान से मिले धनराशि से ही यज्ञादि वैदिक आचार्य संपन्न कराते हैं. माता के सभी सेवक बिना किसी वेतन के ही अपनी भक्ति भाव के साथ निष्काम सेवा में तत्पर रहते हैं.
भक्तों की संख्या में हो रही वृद्धि: भगवानपुर में विराजमान मां चांग देवी के भक्तों की संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है. मान्यता यह है कि यहां जो भी भक्त माता के दर्शन के लिए आते हैं, उन्हें मां चांग देवी अपनी अनुभूति अवश्य कराती है. मां की आरती में इतनी भक्ति और अलौकिकता झलकती है कि हर भक्त मंत्र मुक्त होकर झूमने लगता है. चांग माता की ख्याति पूरे देश में फैली हुई है. इस वजह से नवरात्रि के अवसर पर चांग माता के दर्शन करने मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश समेत दूसरे राज्यों से भी भक्त आते हैं.
हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल है मंदिर: चांगभखार रियासत की माता मां चांग देवी हिंदू मुस्लिम दोनों समुदाय के लोगों के लिए पूजनीय है. यह मंदिर दोनों समुदाय के एकता की मिसाल है. इस मंदिर में दोनों ही धर्म के लोग एक साथ माता के दर्शन करने आते हैं. मुस्लिम धर्मावलंबियों का भी मानना है कि माता चांग देवी हमारे ही इलाके की कुलदेवी है.
चांग देवी मंदिर का इतिहास: प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर यह तीर्थ स्थल आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र है. माता रानी यहां कब से विराजमान है, इसके बारे में किसी को भी स्पष्ट ज्ञान नहीं है. अंदाजा लगाया जाता है कि जिस समय यहां पर चांगभखार रियासत थी. उसी समय के शासकों ने यहां माता रानी की पूजा अर्चना की. तब से लेकर आज तक निरंतर भक्त लगातार यहां मां चांग देवी की पूजा करते आ रहे हैं.
माता के आशीर्वाद से राजा कभी नहीं हुआ पराजित: इस चांगभखार रियासत के राजा बालंद थे. उन पर माता की असीम कृपा हमेशा बनी रहती थी. जब युद्ध के समय चौहान वंश के राजा उनसे जीत नहीं पाए, तब खुद राजा बालंद ने उन्हें अपने पराजय ना होने का कारण बताया. राजा ने बताया कि उन्हें माता चांग देवी का वरदान मिला है, जिसकी वजह से किसी भी युद्ध में उनकी मृत्यु नहीं हो रही. अगर उन्हें पराजित करना हो तो लकड़ी की तलवार से उसके गर्दन पर वार किया जाए तो ही उनकी मृत्यु होगी. इसके बाद चौहान राजाओं ने लकड़ी की तलवार से राजा पर हमला करते हुए उसे परास्त किया और राज्य की सत्ता हासिल की. वह लकड़ी की तलवार आज भी अपने उस मूल स्थान पर है, जो भरतपुर विकासखंड के खोहरा नामक एक जगह पर है. यहां कभी बालंद राजाओं का शासन हुआ करता था.