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लोकशाही में भी टिहरी राजपरिवार का तिलिस्म कायम, रोचक है जन विद्रोह से लेकर भारत विलय की कहानी - History of Tehri royal family - HISTORY OF TEHRI ROYAL FAMILY

Royal family Tehri Lok Sabha seat, Tehri Lok Sabha seat History टिहरी लोकसभा सीट पर आज भी राजपरिवार का असर देखने को मिलता है. यहां की जनता राजपरिवार को बोलांदा बदरी के रूप में जानती है. टिहरी राज्य के ऐतिहासिक जन विद्रोह को लेकर जय सिंह रावत बहुत कुछ बतातें हैं.

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Mar 23, 2024, 8:41 PM IST

Updated : Mar 23, 2024, 10:16 PM IST

लोकशाही में भी टिहरी राजपरिवार का तिलिस्म कायम

देहरादून(उत्तराखंड): दुनिया भर में भारत सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में जाना जाता है. भारत की आजादी के बाद धीरे धीरे राज परिवारों की शक्तियों को कुंद किया गया. पहले राज परिवारों को प्रिवी पर्स दिया गया. इसके बाद लोकसभा चुनावों में भी राज परिवारों के प्रतिनिधित्व को जगह दी गई. एक समय के बाद भारत सरकार ने प्रिवी पर्स को खत्म कर दिया. इसके बाद से संसद पहुंचने के लिए परिवारों के सदस्यों को चुनाव में उतारा गया. भारत में आज कई ऐसे राजपरिवार हैं जो संसद में अपने क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं. टिहरी राजपरिवार इनमें से एक है. दशकों बाद आज भी टिहरी गढ़वाल संसदीय सीट पर राजशाही का असर देखने को मिलता है.

HISTORY OF TEHRI ROYAL FAMILY
टिहरी संसदीय लोकसभा सीट से सांसद

टिहरी राजशाही में होता था विधानसभा चुनाव: देश की आजादी से पहले टिहरी प्रांत एक स्वतंत्र राज्य हुआ करता था. यहां पर विधानसभा चुनाव हुआ करते थे. टिहरी राज्य के ऐतिहासिक जन विद्रोह के लेखक जय सिंह रावत बताते हैं टिहरी रियासत में जब राजशाही के खिलाफ आंदोलन भड़का तो कीर्तिनगर जन विद्रोह के चलते 15 जनवरी 1948 को लगभग तख्ता पलट की स्थिति आ गई. इसके बाद प्रतीकात्मक रूप से ही राजशाही मौजूद रही. इसके बाद भारत सरकार की पैरामउंटसी ब्रिटिश राजशाही को देकर ही गए थे.

1948 में पहली लोकतात्रिंक सरकार बनी: इसका बाद सितम्बर 1948 को टिहरी प्रांत में चुनाव हुए. जिसमें 24 सदस्य प्रजामंडल से चुनकर आए. केवल चार सदस्य ही राज्य परिवार समर्थित थे. 2 सदस्य निर्दलीय भी चुन कर आए. इस तरह से प्रजामंडल के ज्यादातर सदस्य चुन कर आए. टिहरी प्रांत की इस सरकार का पहला सत्र दिसंबर 1948 में हुआ. जिसमें श्री देव सुमन की पत्नी स्पीकर बनी. राजा मानवेंद्र शाह ने इस सत्र का उद्घाटन किया. टिहरी राज्य की इस पहली लोकतांत्रिक सरकार में चार मंत्री बने.

भारत में हुआ विलय, कमलेन्दुमती शाह ने लड़ा चुनाव : देश की आजादी के बाद सभी प्रिंसली स्टेट का भारत में विलय का सिलसिला शुरू हुआ. टिहरी रियासत का भी 1 अगस्त 1949 को भारत में विलय हुआ. यह उत्तर प्रदेश संयुक्त प्रांत का एक जिला हो गया. जिसमें टिहरी उत्तरकाशी शामिल थे.

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कमलेन्दुमती शाह

1951 में देश में हुये पहले आम चुनाव: इसके बाद देश में हुए 1951 के पहले आम चुनाव टिहरी अपने आप में एक पार्लियामेंट्री कांस्टीट्यूएंसी बनी. जिसमें टिहरी, उत्तरकाशी के अलावा चमोली और रुद्रप्रयाग का हिस्सा भी शामिल था. इसके अलावा आज का देहरादून सहारनपुर संसदीय सीट का हिस्सा था. पौड़ी बिजनौर संसदीय सीट का हिस्सा था. टिहरी लोक सभा सीट का पहला चुनाव राजमाता कमलेन्दुमती शाह ने निर्दलीय लड़ा. जिसमें उन्होंने जीत हासिल की.

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टिहरी राजपरिवार


लोकसभा के साथ विधानसभा में भी राजशाही का असर: देश में 1951 में पहले आम चुनाव हुए. इसी के साथ-साथ प्रदेशों में विधानसभा और विधान परिषद के चुनाव भी हुए. यही नहीं इससे पहले संविधान सभा के चुनाव भी हुए. 1951 और 52 में हुए इन तमाम चुनाव में टिहरी लोकसभा सीट के तहत पड़ने वाली सभी विधानसभाओं में टिहरी लोकसभा में राज परिवार समर्थित लोग जीते.

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टिहरी सांसद माला राजलक्ष्मी शाह

1957 में मानवेंद्र शाह ने लड़ा चुनाव: इसके अगल-बगल पड़ने वाली तमाम विधानसभा और लोकसभा सीटों में कांग्रेस प्रतिनिधि जीत कर आए. ऐसे में कांग्रेस को लगा टिहरी लोकसभा सीट पर बिना राजशाही को अपने पक्ष में किये चुनाव जीतना आसान नहीं है. देश में सरकार बनाने के लिए राजपरिवार का साथ जरूरी था. इसके बाद 1957 में देश में दूसरे आम चुनाव हुए. जिसमें टिहरी लोकसभा सीट से महारानी कमलेन्दुमती शाह के सौतेले पुत्र महाराजा मानवेंद्र शाह ने कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा.

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टिहरी राजपरिवार


1971 में प्रिंसली स्टेट्स खत्म, राजपरिवार पहली बार हारा चुनाव: महाराजा मानवेंद्र शाह दूसरे लोकसभा इलेक्शन में जीतने के बाद 1971 तक सांसद रहे. 1971 में इंदिरा गांधी ने देश में प्रिंसली स्टेट्स खत्म किया. इससे कांग्रेस इंडिकेट और सिंडिकेट दो हिस्सों में बंट गई. महाराजा मानवेंद्र शाह दूसरी कांग्रेस में शामिल हुए. इंदिरा गांधी वाली कांग्रेस ने तीसरी आम चुनाव में टिहरी में परिपूर्णानंद पैन्यूली को अपना कैंडिडेट बनाया. दूसरी कांग्रेस ने महाराजा मानवेंद्र शाह को अपना प्रत्याशी बनाया. इस चुनाव में मानवेंद्र शाह हार गए. कांग्रेस प्रत्याशी परिपूर्णानंद पैन्यूली जीते. पहली बार राजपरिवार को हार का सामना करना पड़ा. इससे महाराजा मानवेंद्र शाह को बड़ा धक्का लगा. इसके बाद मानवेंद्र शाह 20 सालों तक राजनीति से गायब रहे.

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नरेंद्रनगर राजमहल

उत्तराखंड आंदोलन में राज परिवार ने बढ़ चढ़ कर लिया भाग: 70 के दशक में मिली हार के बाद मानवेंद्र शाह कई सालों तक राजनीति से दूर रहे. इस बीच 90 के दशक में अलग उत्तराखंड राज्य की मांग के लिए उग्र आंदोलन हुआ. जिसमें राज परिवार ने बढ़ चढ़कर भाग लिया. उत्तराखंड राज्य आंदोलन में महाराजा मानवेंद्र शाह की सक्रियता ने उन्हें टिहरी लोकसभा सीट पर फिर से काबिज कर दिया. इसके बाद मानवेंद्र शाह ने टिहरी लोकसभा से एक के बाद कई चुनाव जीते.

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टिहरी झील

मानवेंद्र शाह लगातार 9 बार टिहरी लोकसभा सीट से सांसद बने. उनकी मौत के बाद उनके पुत्र मंजेंद्र शाह ने अपने पिता की राजनीतिक विरासत संभालनी चाहिए, मगर वे कांग्रेस प्रत्याशी विजय बहुगुणा के हाथों हार गए. इसके बाद मनुजेंद्र शाह की पत्नी महारानी माला राजलक्ष्मी शाह ने राजपरिवार की राजनीतिक विरासत संभाली. 2012 में माला राजलक्ष्मी शाह ने पहली बार टिहरी लोकसभा सीट पर उपचुनाव लड़ा. जिसके बाद यहां हुये लोकसभा चुनावों में वे लगातार जीतती रही. अब एक बार फिर से बीजेपी ने लोकसभा चुनाव 2024 में टिहरी से माला राजलक्ष्मी शाह को चुनावी मैदान में उतारा है.

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टिहरी संसदीय क्षेत्र

पढे़ं- टिहरी लोकसभा सीट पर राजशाही परिवार के दबदबे की कहानी, देखिए खास रिपोर्ट

पढे़ं- टिहरी लोकसभा सीट पर राज परिवार का रहा दबदबा! कभी कांग्रेस का था गढ़, दिलचस्प है यहां का चुनावी इतिहास

लोकशाही में भी टिहरी राजपरिवार का तिलिस्म कायम

देहरादून(उत्तराखंड): दुनिया भर में भारत सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में जाना जाता है. भारत की आजादी के बाद धीरे धीरे राज परिवारों की शक्तियों को कुंद किया गया. पहले राज परिवारों को प्रिवी पर्स दिया गया. इसके बाद लोकसभा चुनावों में भी राज परिवारों के प्रतिनिधित्व को जगह दी गई. एक समय के बाद भारत सरकार ने प्रिवी पर्स को खत्म कर दिया. इसके बाद से संसद पहुंचने के लिए परिवारों के सदस्यों को चुनाव में उतारा गया. भारत में आज कई ऐसे राजपरिवार हैं जो संसद में अपने क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं. टिहरी राजपरिवार इनमें से एक है. दशकों बाद आज भी टिहरी गढ़वाल संसदीय सीट पर राजशाही का असर देखने को मिलता है.

HISTORY OF TEHRI ROYAL FAMILY
टिहरी संसदीय लोकसभा सीट से सांसद

टिहरी राजशाही में होता था विधानसभा चुनाव: देश की आजादी से पहले टिहरी प्रांत एक स्वतंत्र राज्य हुआ करता था. यहां पर विधानसभा चुनाव हुआ करते थे. टिहरी राज्य के ऐतिहासिक जन विद्रोह के लेखक जय सिंह रावत बताते हैं टिहरी रियासत में जब राजशाही के खिलाफ आंदोलन भड़का तो कीर्तिनगर जन विद्रोह के चलते 15 जनवरी 1948 को लगभग तख्ता पलट की स्थिति आ गई. इसके बाद प्रतीकात्मक रूप से ही राजशाही मौजूद रही. इसके बाद भारत सरकार की पैरामउंटसी ब्रिटिश राजशाही को देकर ही गए थे.

1948 में पहली लोकतात्रिंक सरकार बनी: इसका बाद सितम्बर 1948 को टिहरी प्रांत में चुनाव हुए. जिसमें 24 सदस्य प्रजामंडल से चुनकर आए. केवल चार सदस्य ही राज्य परिवार समर्थित थे. 2 सदस्य निर्दलीय भी चुन कर आए. इस तरह से प्रजामंडल के ज्यादातर सदस्य चुन कर आए. टिहरी प्रांत की इस सरकार का पहला सत्र दिसंबर 1948 में हुआ. जिसमें श्री देव सुमन की पत्नी स्पीकर बनी. राजा मानवेंद्र शाह ने इस सत्र का उद्घाटन किया. टिहरी राज्य की इस पहली लोकतांत्रिक सरकार में चार मंत्री बने.

भारत में हुआ विलय, कमलेन्दुमती शाह ने लड़ा चुनाव : देश की आजादी के बाद सभी प्रिंसली स्टेट का भारत में विलय का सिलसिला शुरू हुआ. टिहरी रियासत का भी 1 अगस्त 1949 को भारत में विलय हुआ. यह उत्तर प्रदेश संयुक्त प्रांत का एक जिला हो गया. जिसमें टिहरी उत्तरकाशी शामिल थे.

HISTORY OF TEHRI ROYAL FAMILY
कमलेन्दुमती शाह

1951 में देश में हुये पहले आम चुनाव: इसके बाद देश में हुए 1951 के पहले आम चुनाव टिहरी अपने आप में एक पार्लियामेंट्री कांस्टीट्यूएंसी बनी. जिसमें टिहरी, उत्तरकाशी के अलावा चमोली और रुद्रप्रयाग का हिस्सा भी शामिल था. इसके अलावा आज का देहरादून सहारनपुर संसदीय सीट का हिस्सा था. पौड़ी बिजनौर संसदीय सीट का हिस्सा था. टिहरी लोक सभा सीट का पहला चुनाव राजमाता कमलेन्दुमती शाह ने निर्दलीय लड़ा. जिसमें उन्होंने जीत हासिल की.

HISTORY OF TEHRI ROYAL FAMILY
टिहरी राजपरिवार


लोकसभा के साथ विधानसभा में भी राजशाही का असर: देश में 1951 में पहले आम चुनाव हुए. इसी के साथ-साथ प्रदेशों में विधानसभा और विधान परिषद के चुनाव भी हुए. यही नहीं इससे पहले संविधान सभा के चुनाव भी हुए. 1951 और 52 में हुए इन तमाम चुनाव में टिहरी लोकसभा सीट के तहत पड़ने वाली सभी विधानसभाओं में टिहरी लोकसभा में राज परिवार समर्थित लोग जीते.

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टिहरी सांसद माला राजलक्ष्मी शाह

1957 में मानवेंद्र शाह ने लड़ा चुनाव: इसके अगल-बगल पड़ने वाली तमाम विधानसभा और लोकसभा सीटों में कांग्रेस प्रतिनिधि जीत कर आए. ऐसे में कांग्रेस को लगा टिहरी लोकसभा सीट पर बिना राजशाही को अपने पक्ष में किये चुनाव जीतना आसान नहीं है. देश में सरकार बनाने के लिए राजपरिवार का साथ जरूरी था. इसके बाद 1957 में देश में दूसरे आम चुनाव हुए. जिसमें टिहरी लोकसभा सीट से महारानी कमलेन्दुमती शाह के सौतेले पुत्र महाराजा मानवेंद्र शाह ने कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा.

HISTORY OF TEHRI ROYAL FAMILY
टिहरी राजपरिवार


1971 में प्रिंसली स्टेट्स खत्म, राजपरिवार पहली बार हारा चुनाव: महाराजा मानवेंद्र शाह दूसरे लोकसभा इलेक्शन में जीतने के बाद 1971 तक सांसद रहे. 1971 में इंदिरा गांधी ने देश में प्रिंसली स्टेट्स खत्म किया. इससे कांग्रेस इंडिकेट और सिंडिकेट दो हिस्सों में बंट गई. महाराजा मानवेंद्र शाह दूसरी कांग्रेस में शामिल हुए. इंदिरा गांधी वाली कांग्रेस ने तीसरी आम चुनाव में टिहरी में परिपूर्णानंद पैन्यूली को अपना कैंडिडेट बनाया. दूसरी कांग्रेस ने महाराजा मानवेंद्र शाह को अपना प्रत्याशी बनाया. इस चुनाव में मानवेंद्र शाह हार गए. कांग्रेस प्रत्याशी परिपूर्णानंद पैन्यूली जीते. पहली बार राजपरिवार को हार का सामना करना पड़ा. इससे महाराजा मानवेंद्र शाह को बड़ा धक्का लगा. इसके बाद मानवेंद्र शाह 20 सालों तक राजनीति से गायब रहे.

HISTORY OF TEHRI ROYAL FAMILY
नरेंद्रनगर राजमहल

उत्तराखंड आंदोलन में राज परिवार ने बढ़ चढ़ कर लिया भाग: 70 के दशक में मिली हार के बाद मानवेंद्र शाह कई सालों तक राजनीति से दूर रहे. इस बीच 90 के दशक में अलग उत्तराखंड राज्य की मांग के लिए उग्र आंदोलन हुआ. जिसमें राज परिवार ने बढ़ चढ़कर भाग लिया. उत्तराखंड राज्य आंदोलन में महाराजा मानवेंद्र शाह की सक्रियता ने उन्हें टिहरी लोकसभा सीट पर फिर से काबिज कर दिया. इसके बाद मानवेंद्र शाह ने टिहरी लोकसभा से एक के बाद कई चुनाव जीते.

HISTORY OF TEHRI ROYAL FAMILY
टिहरी झील

मानवेंद्र शाह लगातार 9 बार टिहरी लोकसभा सीट से सांसद बने. उनकी मौत के बाद उनके पुत्र मंजेंद्र शाह ने अपने पिता की राजनीतिक विरासत संभालनी चाहिए, मगर वे कांग्रेस प्रत्याशी विजय बहुगुणा के हाथों हार गए. इसके बाद मनुजेंद्र शाह की पत्नी महारानी माला राजलक्ष्मी शाह ने राजपरिवार की राजनीतिक विरासत संभाली. 2012 में माला राजलक्ष्मी शाह ने पहली बार टिहरी लोकसभा सीट पर उपचुनाव लड़ा. जिसके बाद यहां हुये लोकसभा चुनावों में वे लगातार जीतती रही. अब एक बार फिर से बीजेपी ने लोकसभा चुनाव 2024 में टिहरी से माला राजलक्ष्मी शाह को चुनावी मैदान में उतारा है.

HISTORY OF TEHRI ROYAL FAMILY
टिहरी संसदीय क्षेत्र

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Last Updated : Mar 23, 2024, 10:16 PM IST
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