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आमदनी का नहीं कोई जरिया, पति-पत्नी हैं दिव्यांग, फिर भी 70 गरीब बच्चों को फ्री में पढ़ा रहा लखनऊ का ये दंपत्ति - Teachers Day 2024

लखनऊ के एक दिव्यांग दंपत्ति गरीब बच्चों को निशुल्क शिक्षा दे रहे हैं. खुद की तमाम मुसीबतों के बावजूद समाज के लिए किए जा रहे इस योगदान की शहर में सराहना हो रही है.

दंपत्ति के प्रयास से तमाम गरीब बच्चे शिक्षित हो पा रहे हैं.
दंपत्ति के प्रयास से तमाम गरीब बच्चे शिक्षित हो पा रहे हैं. (Photo Credit; ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Sep 5, 2024, 1:46 PM IST

दंपत्ति की मुहिम रंग ला रही है. (Video Credit; ETV Bharat)

लखनऊ : शिक्षक दिवस पर आज शिक्षकों की सेवाओं को याद किया जा रहा है. अपनी कठिन मेहनत और लगन से समाज की दशा और दिशा बदलने में तमाम शिक्षक अपना योगदान दे रहे हैं. पुराने लखनऊ के वजीर बाग में रहने वाले दंपत्ति भी इनमें से एक हैं. शारीरिक रूप से 100% दिव्यांग होने और कमाई का कोई जरिया न होने के बावजूद दोनों 70 बच्चों को फ्री में पढ़ा रहे हैं. उनका यह प्रयास कई लोगों को प्रेरणा देने का काम कर रहा है.

तरन्नुम और वसीम पूरी तरह दिव्यांग है. चलने-फिरने के लिए दोनों को व्हीलचेयर का इस्तेमाल करना पड़ता है. कमाई का कोई जरिया नहीं है. इसके बावजूद दोनों अपने घर के एक कमरे में 70 बच्चों को फ्री में पढ़ा रहे हैं. ईटीवी भारत से बातचीत में वसीम ने बताया कि कोरोना महामारी के बाद कई बच्चों ने स्कूल जाना छोड़ दिया था. कुछ के माता-पिता के पास फीस भरने के पैसे नहीं थे तो कुछ अन्य पारिवारिक मजबूरियों की वजह से पढ़ाई नहीं कर पाए.

दंपत्ति ने अपने घर को ही स्कूल बना दिया है.
दंपत्ति ने अपने घर को ही स्कूल बना दिया है. (Photo Credit; ETV Bharat)

ऐसे में उन्होंने पत्नी के साथ मिलकर ऐसे बच्चों की शिक्षा की जिम्मेदारी ली. केवल दो बच्चों से इसकी शुरुआत की. आज उनके पास करीब 70 बच्चे नियमित रूप से पढ़ाई कर रहे हैं. तरन्नुम ने ईटीवी भारत से बात करते हुए बताया कि वह खुद उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहती थीं, लेकिन दिव्यांग होने के कारण उन्हें उचित सुविधाएं नहीं मिल पाईं. उन्होंने हाई स्कूल के बाद पढ़ाई छोड़ दी.

तरन्नुम कहती हैं कि मेरी कोशिश है कि इन बच्चों को उस संघर्ष का सामना न करना पड़े, जिसका सामना मैंने किया था. हम इन बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं ताकि वह अपने हक की लड़ाई कलम के जरिए लड़ सकें. तरन्नुम और वसीम की कहानी न केवल उनके समर्पण को दिखाती है बल्कि समाज के लिए एक प्रेरणादायक संदेश भी है. उनका कहना है कि शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण है, और वे यह सुनिश्चित करने के लिए काम कर रहे हैं कि उनके क्षेत्र के गरीब और वंचित बच्चे शिक्षा से वंचित न रहे.

तमाम गरीब बच्चे उनके घर पढ़ने के लिए आते हैं.
तमाम गरीब बच्चे उनके घर पढ़ने के लिए आते हैं. (Photo Credit; ETV Bharat)

वसीम ने एक एनजीओ भी स्थापित किया है. इसके जरिए वह दिव्यांग और बेसहारा लोगों के अधिकारों की आवाज उठाते हैं. शिक्षा के लिए विभिन्न कार्यक्रम आयोजित करते हैं. वसीम दूसरी जगह भी कोचिंग पढ़ाते हैं. इससे मिले रुपयों से उनका गुजारा होता है. जिससे उनकी आजीविका चलती है.

यह भी पढ़ें : चलती एंबुलेंस में महिला से रेप की कोशिश, ऑक्सीजन मास्क निकाल बीमार पति को कचरे में फेंका, मौत

दंपत्ति की मुहिम रंग ला रही है. (Video Credit; ETV Bharat)

लखनऊ : शिक्षक दिवस पर आज शिक्षकों की सेवाओं को याद किया जा रहा है. अपनी कठिन मेहनत और लगन से समाज की दशा और दिशा बदलने में तमाम शिक्षक अपना योगदान दे रहे हैं. पुराने लखनऊ के वजीर बाग में रहने वाले दंपत्ति भी इनमें से एक हैं. शारीरिक रूप से 100% दिव्यांग होने और कमाई का कोई जरिया न होने के बावजूद दोनों 70 बच्चों को फ्री में पढ़ा रहे हैं. उनका यह प्रयास कई लोगों को प्रेरणा देने का काम कर रहा है.

तरन्नुम और वसीम पूरी तरह दिव्यांग है. चलने-फिरने के लिए दोनों को व्हीलचेयर का इस्तेमाल करना पड़ता है. कमाई का कोई जरिया नहीं है. इसके बावजूद दोनों अपने घर के एक कमरे में 70 बच्चों को फ्री में पढ़ा रहे हैं. ईटीवी भारत से बातचीत में वसीम ने बताया कि कोरोना महामारी के बाद कई बच्चों ने स्कूल जाना छोड़ दिया था. कुछ के माता-पिता के पास फीस भरने के पैसे नहीं थे तो कुछ अन्य पारिवारिक मजबूरियों की वजह से पढ़ाई नहीं कर पाए.

दंपत्ति ने अपने घर को ही स्कूल बना दिया है.
दंपत्ति ने अपने घर को ही स्कूल बना दिया है. (Photo Credit; ETV Bharat)

ऐसे में उन्होंने पत्नी के साथ मिलकर ऐसे बच्चों की शिक्षा की जिम्मेदारी ली. केवल दो बच्चों से इसकी शुरुआत की. आज उनके पास करीब 70 बच्चे नियमित रूप से पढ़ाई कर रहे हैं. तरन्नुम ने ईटीवी भारत से बात करते हुए बताया कि वह खुद उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहती थीं, लेकिन दिव्यांग होने के कारण उन्हें उचित सुविधाएं नहीं मिल पाईं. उन्होंने हाई स्कूल के बाद पढ़ाई छोड़ दी.

तरन्नुम कहती हैं कि मेरी कोशिश है कि इन बच्चों को उस संघर्ष का सामना न करना पड़े, जिसका सामना मैंने किया था. हम इन बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं ताकि वह अपने हक की लड़ाई कलम के जरिए लड़ सकें. तरन्नुम और वसीम की कहानी न केवल उनके समर्पण को दिखाती है बल्कि समाज के लिए एक प्रेरणादायक संदेश भी है. उनका कहना है कि शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण है, और वे यह सुनिश्चित करने के लिए काम कर रहे हैं कि उनके क्षेत्र के गरीब और वंचित बच्चे शिक्षा से वंचित न रहे.

तमाम गरीब बच्चे उनके घर पढ़ने के लिए आते हैं.
तमाम गरीब बच्चे उनके घर पढ़ने के लिए आते हैं. (Photo Credit; ETV Bharat)

वसीम ने एक एनजीओ भी स्थापित किया है. इसके जरिए वह दिव्यांग और बेसहारा लोगों के अधिकारों की आवाज उठाते हैं. शिक्षा के लिए विभिन्न कार्यक्रम आयोजित करते हैं. वसीम दूसरी जगह भी कोचिंग पढ़ाते हैं. इससे मिले रुपयों से उनका गुजारा होता है. जिससे उनकी आजीविका चलती है.

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