बुरहानपुर. मध्यप्रदेश के ऐतिहासिक शहर बुरहानपुर की धड़कन कहे जाने वाली पावरलूम मशीनें बुनकरों के लिए टीबी की बीमारी का कारण बन गई हैं. इन मशीनों से लाखों मीटर कपड़े का उत्पादन तो हो रहा है, साथ ही इससे मजदूरों को रोजगार भी मिल रहा है, लेकिन ये रोजगार मजदूरों के लिए एक बड़ी परेशानी भी खड़ी कर रहा है. पहले तो इन मजदूरों को मेहनताना समय पर नहीं मिलता जिससे उन्हे परिवार के भरण पोषण में दिक्कतें होती हैं. इसके अलावा पावरलूम मशीन मजदूरों के सांसों की बीमारी की वजह भी बन रही है.
मजदूरों में है जागरुकता का आभाव
साल दर साल यहां मरीजों की संख्या बढ़ रही है, हालात ये हैं कि पिछले चार साल में आठ हजार लोगों को टीबी रोग ने जकड़ लिया है. शहर के गली मोहल्ले में संचालित पावरलूम मशीनों से कपड़ा बन रहा है, हजारों मजदूर पूरे 24 घंटे यह मशीनें चलाते हैं. इसी कपड़ा बनाने के दौरान मशीन से बड़ी मात्रा में रेशा निकलता है और वही रेशे के कण सांसों के माध्यम से मजदूरों के शरीर के अंदर जाता रहता है जो कि आगे चलकर टीबी का कारण बनता है. पिछले कुछ सालों में मरीजों के आंकड़े में खासा इजाफा हुआ है. टीबी के लिए इलाज तो बेहतर मिल रहा है, लेकिन शहर में इसके नियंत्रण के लिए कोई योजना स्वास्थ्य विभाग के पास नहीं है. यही नहीं जागरुकता के अभाव में मजदूर भी खुद को बीमारी से नहीं बचा पाते हैं.
औसतन हर माह मिलते हैं 166 मरीज
पिछले चार साल में हर साल औसत 2000 हजार मरीज टीबी के मिल रहे हैं, यानि औसतन हर माह 166 और एक दिन में 6 मरीज टीबी पॉजीटीव आए हैं. पिछले चार साल के आंकड़ों में नजर डालें तो बीते 4 सालों में 8091 मरीज मिल चुके हैं. बता दें कि 24 घंटे चलने वाले पावरलूम से हर समय रेशे निकलते रहते हैं, हालात ये हो जाते हैं कि कारखानों में रेशों की मोटी परतें तक जम जाती है. इसे साफ करना भी आसान नहीं होता. मजदूरों को पावरलूम मशीन के नीचे लेटकर रेशे निकालने पड़ते हैं, सफाई के दौरान भी रेशे शरीर में प्रवेश कर जाते हैं. यह हालात चिंताजनक है.
लाखों लोगों को मिल रहा है रोजगार
पावरलूम के हालात ऐसे है कि यहां घरों में पावरलूम चल रहे हैं, इससे पूरा परिवार बीमारी के चपेट में आता है, परिवार का कोई ना कोई सदस्य टीबी से ग्रसित पाया जाता है. यही नहीं शहर में बीड़ी उद्योग का भी बड़ा दायरा है, यह भी घरों में बनाई जाती है बीड़ी बनाने के लिए उपयोग की जाने वाली तम्बाकू को छानने के दौरान ढांस उठती है, ढांस से तम्बाकू के कण शरीर में प्रवेश करते हैं, यह भी टीबी का एक बड़ा कारण बन रहा है. पावरलूम और बीड़ी उद्योग से लगभग एक-एक लाख लोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हैं.
चौंकाने वाले हैं बीते चार सालों के आंकड़े
बीते चार सालों के आंकड़ो में एक नजर डालतें तो साल 2020 में 1628 टीबी के मरीज मिले थे. वहीं साल 2021 में 2393, साल 2022 में 2136, तो 2023 में 1934 मरीज और इस साल अब तक 450 से ज्यादा मरीज मिल चुके हैं. टीबी मरीजों के लिए दो योजनाएं चलाई जा रही हैं. एक योजना है निक्षय पोषण योजना. इसमें मरीजों को प्रतिमाह 500 रुपए दिए जाते हैं. यह राशि मरीजों की सेहत के लिए दी जाती है. दूसरी योजना में मरीजों के लिए दान जमा कर अनाज उपलब्ध कराया जाता है. स्वास्थ्य विभाग द्वारा दानदाताओं से संपर्क कर अनाज लिया जाता है, इसके बाद विभाग द्वारा मरीजों को अनाज वितरित किया जाता है.
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काम करने वाले मजदूरों ने बताया कि ''आज की तारीख में ना तो ज्यादा काम मिल रहा है ना ही समय से मजदूरी मिल रही है. पहले मजदूरी हर हफ्ते में मिलती थी अब कई-कई बार तो महीनों भी लग जाते हैं. इससे परिवार चलाने में भी दिक्कतें होती हैं. साथ ही इस काम से टीबी की बीमारी और दमा की बीमारी और बढ़ती है. सरकार को इसके लिए कुछ उपाए निकालने चाहिए''.
इस पूरे मामले में सीएमएचओ डॉ. राजेश सिसोदिया का कहना है कि ''शहर में टीबी के मरीजों की संख्या बढ़ी है, यहां पर पॉवरलूम और बीड़ी के कारखानों में जो लोग काम करते हैं ऐसे लोगों में टीबी के इंफेक्शन की संभावना बढ़ जाती है. पिछले कुछ सालों में हजारों मरीज चपेट में आए हैं, लेकिन जिला अस्पताल में टीबी के मरीजों को बेहतर इलाज किया जाता है, विभिन्न योजनाओं के माध्यम से मरीजों की सहायता भी की जा रही है''.