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सरगुजा के करजी गांव की अनोखी प्रथा, भक्त प्रहलाद बन अंगारों पर चलते हैं गांव के लोग, जानिए - Surguja Unique Tradition

सरगुजा संभाग के करजी गांव में होलिका दहन से जुड़ी सालों पुरानी परंपरा देखने को मिली है. इस गांव के लोग भक्त प्रहलाद को याद कर होलिका दहन करने के बाद उसकी आग पर चलते हैं. इसके पीछे गांववालों का मानना है कि ऐसा करने से उनके कष्टों का निवारण होता है. आइए आपको इस अनोखी परंपरा के बारे विस्तार से बताते हैं.

SURGUJA UNIQUE TRADITION
करजी गांव की अनोखी प्रथा
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Mar 25, 2024, 12:57 PM IST

अंगारों पर चलते हैं गांव के लोग

सरगुजा: जिले के करजी गांव के लोग होलिका के आग में चलने की सालों पुरानी परंपरा निभाते आ रहे हैं. इस गांव में लोग होलिका दहन करने के बाद उसकी आग पर चलते हैं. यह परंपरा जिले के दूसरे गांवों तक फैल चुकी है. जिले के दूसरे गांव से भी लोग इस परंपरा को देखने पहुंचते हैं. लोग इसे आस्था से जोड़कर देखते हैं.

प्रहलाद बनकर चलते हैं अंगारों पर: अंबिकापुर से मैनपाट जाने के रास्ते में 13 किलोमीटर की दूरी पर करजी गांव है. इस गांव में अजब परंपरा है. यहां की होलिका दहन कुछ अलग है. क्योंकि होलिका दहन के बाद यहां लोग उसकी आग पर नंगे पैर चलते हैं. धधकती आग में नंगे पैर चलने के बाद भी किसी का पैर नहीं जलता. लोगों का मानना है कि वो लोग आज के दिन प्रहलाद बन जाते हैं. ऐसा करने से उनके कष्टों का निवारण होता है.

आग से पैर में नहीं पड़ते फफोले: इस गांव के बच्चे, बूढ़े, जवान सभी होलिका की आग में चलते हैं. यह बेहद खतरनाक है, लेकिन आग में चलने के बावजूद किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है. सभी इस आग से सुरक्षित निकल जाते हैं. आग में नंगे पैर चलने के बाद लोगों के पैर में फफोले तक नहीं पड़ते.

क्या है भक्त प्रहलाद की कथा ? : होलिका दहन देश भर में किया जाता है, मान्यता है कि होलिका अपने भाई और असुरों के राजा हिरण्यकश्यप के कहने अपने भतीजे प्रहलाद को गोद में लेकर जलती आग में बैठ गई थी. होलिका को वरदान था कि वो आग से नहीं जलेगी, लेकिन हुआ उल्टा. नारायण के परम भक्त प्रहलाद को जलाने के उद्देश्य से आग में बैठी होलिका ही खुद जल गई और प्रहलाद आग से सुरक्षित बाहर आ गए. इसी घटना को परंपरा के तौर पर लोग कई सालों निभाते आ रहे हैं.

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अंगारों पर चलते हैं गांव के लोग

सरगुजा: जिले के करजी गांव के लोग होलिका के आग में चलने की सालों पुरानी परंपरा निभाते आ रहे हैं. इस गांव में लोग होलिका दहन करने के बाद उसकी आग पर चलते हैं. यह परंपरा जिले के दूसरे गांवों तक फैल चुकी है. जिले के दूसरे गांव से भी लोग इस परंपरा को देखने पहुंचते हैं. लोग इसे आस्था से जोड़कर देखते हैं.

प्रहलाद बनकर चलते हैं अंगारों पर: अंबिकापुर से मैनपाट जाने के रास्ते में 13 किलोमीटर की दूरी पर करजी गांव है. इस गांव में अजब परंपरा है. यहां की होलिका दहन कुछ अलग है. क्योंकि होलिका दहन के बाद यहां लोग उसकी आग पर नंगे पैर चलते हैं. धधकती आग में नंगे पैर चलने के बाद भी किसी का पैर नहीं जलता. लोगों का मानना है कि वो लोग आज के दिन प्रहलाद बन जाते हैं. ऐसा करने से उनके कष्टों का निवारण होता है.

आग से पैर में नहीं पड़ते फफोले: इस गांव के बच्चे, बूढ़े, जवान सभी होलिका की आग में चलते हैं. यह बेहद खतरनाक है, लेकिन आग में चलने के बावजूद किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है. सभी इस आग से सुरक्षित निकल जाते हैं. आग में नंगे पैर चलने के बाद लोगों के पैर में फफोले तक नहीं पड़ते.

क्या है भक्त प्रहलाद की कथा ? : होलिका दहन देश भर में किया जाता है, मान्यता है कि होलिका अपने भाई और असुरों के राजा हिरण्यकश्यप के कहने अपने भतीजे प्रहलाद को गोद में लेकर जलती आग में बैठ गई थी. होलिका को वरदान था कि वो आग से नहीं जलेगी, लेकिन हुआ उल्टा. नारायण के परम भक्त प्रहलाद को जलाने के उद्देश्य से आग में बैठी होलिका ही खुद जल गई और प्रहलाद आग से सुरक्षित बाहर आ गए. इसी घटना को परंपरा के तौर पर लोग कई सालों निभाते आ रहे हैं.

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