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आखिर क्यों सरगुजा में सीतापुर विधानसभा क्षेत्र बीजेपी के लिए है बड़ी चुनौती ? - Surguja Lok Sabha Sitapur assembly

सरगुजा लोकसभा क्षेत्र का सीतापुर बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती है. इस क्षेत्र में शुरू से ही कांग्रेस को जीत मिलती आई है. दो बार यहां से निर्दलयी प्रत्याशियों ने जीत का स्वाद चखा है. हालांकि 2023 के विधानसभा चुनाव में सीतापुर में बीजेपी को जीत मिली है. लेकिन फिर भी बीजेपी की राह यहां आसान नहीं है.

SURGUJA LOK SABHA SITAPUR ASSEMBLY
सीतापुर विधानसभा बीजेपी के लिए चुनौती (ETV Bharat Chhattisgarh)
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : May 3, 2024, 4:54 PM IST

Updated : May 3, 2024, 8:47 PM IST

सीतापुर क्षेत्र का वोटिंग ट्रेंड समझिए (ETV Bharat Chhattisgarh)

सरगुजा: सरगुजा लोकसभा सीट पर जीत के लिए सीतापुर विधानसभा सीट काफी महत्वपूर्ण है. भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों को इस विधानसभा के समीकरणों को साधना बेहद जरूरी है, क्योंकि सरगुजा की सीतापुर विधानसभा आजादी के बाद से ही कांग्रेस का गढ़ रही है. यहां पहली बार साल 2023 में भाजपा चुनाव जीत सकी है. हालांकि इस बीच एक आंकड़ा यह भी है कि साल 2014 के लोकसभा चुनाव में सीतापुर में भाजपा के पास 11 मतों की बढ़त थी. इसके बाद हुए साल 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा यहां 36 हजार मतों से पिछड़ गई. सरगुजा में चिंतामणि महाराज और शशि सिंह के बीच सीधा मुकाबला है.

दो बार निर्दलीय उम्मीदवार को मिली जीत: सीतापुर विधानसभा क्षेत्र से साल 1998 और 1977 के विधानसभा चुनाव में यहां से निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव जीत चुके हैं, लेकिन भाजपा का खाता साल 2023 में खुल सका. सीतापुर कांग्रेस का इतना मजबूत गढ़ रहा है कि जब साल 2019 का लोकसभा चुनाव हुआ, तब मोदी लहर में भाजपा प्रत्याशी डेढ़ लाख से अधिक मतों से जीते थे, तब भी सीतापुर से कांग्रेस के पास 18 हजार की बढ़त थी. हालांकि प्रत्याशी का विरोध होने के कारण कांग्रेस 2023 का लोकसभा चुनाव यहां करीब 15 हजार वोटों से हार गई. अब देखना यह होगा कि कांग्रेस को हमेशा बढ़त देने वाली सीतापुर विधानसभा के मतदाता लोकसभा चुनाव में किसके साथ जाते हैं.

एक नजर सीतापुर के सियासी इतिहास पर: साल 2013 के विधानसभा चुनाव में सीतापुर में कांग्रेस को 18000 वोटों से जीत मिली, जबकि साल 2014 के लोकसभा में यहां भाजपा को 11000 वोटों से जीत मिली. साल 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को यहां से 36000 वोटो से जीत मिली. परम्परागत गढ़ होने के कारण मोदी लहर में भी यहां साल 2019 के लोकसभा में 18,000 वोटों से कांग्रेस को जीत मिली थी, जबकि पूरे संभाग की हर विधानसभा में कांग्रेस बुरी तरह पिछड़ गई थी. भाजपा ने साल 2019 का लोकसभा चुनाव करीब 1 लाख 57 हजार मतों से जीता था.

क्या कहते हैं पॉलिटिकल एक्सपर्ट: इस बारे में ईटीवी भारत ने पॉलिटिकल एक्सपर्ट सुधीर पांडेय से बातचीत की. उन्होंने बताया कि, "सीतापुर विधानसभा क्षेत्र को शुरू से ही कांग्रेस का गढ़ माना जाता रहा है. यहां आजादी के बाद साल 2023 में ही भाजपा को जीत हासिल हो सकी. बड़ा दिलचस्प इतिहास रहा है सीतापुर विधानभसा क्षेत्र का. वहां से हमेशा कांग्रेस समर्थित प्रत्याशी ही जीतते आ रहे थे. साल 2023 से पहले सिर्फ दो ऐसे अवसर आए, जब वहां निर्दलीय प्रत्याशियों ने चुनाव जीता. साल 1998 में गोपाल राम और साल 1977 में राम खेलावन दो पत्ती छाप से निर्दलीय चुनाव जीते थे. पहली बार भाजपा की जीत साल 2023 में हुई, जब भाजपा अपने आप को पार्टीगत रूप से स्थापित करने में सफल हो सकी."

साल 2019 में लोकसभा चुनाव हुआ, जब संभाग की पूरी सीट कांग्रेस हार गई थी, तब भी सीतापुर से कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में करीब 18000 वोट की बढ़त मिली. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने करीब 11 हजार वोटों से लीड हासिल की थी, जबकि इसके ठीक पहले साल 2013 में हुए विधानसभा चुनाव में जब यहां भाजपा की सत्ता थी, तब सरगुजा की 4 सीटें कांग्रेस के पास थी, इनमें सीतापुर भी कांग्रेस के पास रही. कांग्रेस के लिए सीतापुर का इतिहास काफी सुखद रहा है, लेकिन यहां के मतदाता समय-समय पर प्रत्याशियों के प्रति अपनी नाराजगी भी खुलकर जाहिर करते रहते हैं. साल 1998 में जब यहां कांग्रेस की पकड़ मजबूत थी, तब भी यहां निर्दलीय उम्मीदवार पहले नंबर में रहे. कांग्रेस दूसरे और भाजपा तीसरे नंबर पर रही. -सुधीर पांडेय, पॉलिटिकल एक्सपर्ट

बीजेपी की राह नहीं आसान: ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि सीतापुर क्षेत्र की जनता को अपने पाले में लेना बीजेपी के लिए थोड़ा कठिन है. भले ही भाजपा को सीतापुर विधानसभा सीट से पहली बार जीत मिली हो, पर इस लोकसभा चुनाव में भाजपा यही उम्मीद कर रही है कि उन्हें यहां से ज्यादा वोट मिले.भाजपा और कांग्रेस के बीच का कम अंतर रहा है. अगर भाजपा ठीक से कोशिश करे तो उनकी सरकार है, उनके विधायक हैं. इस बार के लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी को फायदा हो सकता है.

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सरगुजा: सरगुजा लोकसभा सीट पर जीत के लिए सीतापुर विधानसभा सीट काफी महत्वपूर्ण है. भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों को इस विधानसभा के समीकरणों को साधना बेहद जरूरी है, क्योंकि सरगुजा की सीतापुर विधानसभा आजादी के बाद से ही कांग्रेस का गढ़ रही है. यहां पहली बार साल 2023 में भाजपा चुनाव जीत सकी है. हालांकि इस बीच एक आंकड़ा यह भी है कि साल 2014 के लोकसभा चुनाव में सीतापुर में भाजपा के पास 11 मतों की बढ़त थी. इसके बाद हुए साल 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा यहां 36 हजार मतों से पिछड़ गई. सरगुजा में चिंतामणि महाराज और शशि सिंह के बीच सीधा मुकाबला है.

दो बार निर्दलीय उम्मीदवार को मिली जीत: सीतापुर विधानसभा क्षेत्र से साल 1998 और 1977 के विधानसभा चुनाव में यहां से निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव जीत चुके हैं, लेकिन भाजपा का खाता साल 2023 में खुल सका. सीतापुर कांग्रेस का इतना मजबूत गढ़ रहा है कि जब साल 2019 का लोकसभा चुनाव हुआ, तब मोदी लहर में भाजपा प्रत्याशी डेढ़ लाख से अधिक मतों से जीते थे, तब भी सीतापुर से कांग्रेस के पास 18 हजार की बढ़त थी. हालांकि प्रत्याशी का विरोध होने के कारण कांग्रेस 2023 का लोकसभा चुनाव यहां करीब 15 हजार वोटों से हार गई. अब देखना यह होगा कि कांग्रेस को हमेशा बढ़त देने वाली सीतापुर विधानसभा के मतदाता लोकसभा चुनाव में किसके साथ जाते हैं.

एक नजर सीतापुर के सियासी इतिहास पर: साल 2013 के विधानसभा चुनाव में सीतापुर में कांग्रेस को 18000 वोटों से जीत मिली, जबकि साल 2014 के लोकसभा में यहां भाजपा को 11000 वोटों से जीत मिली. साल 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को यहां से 36000 वोटो से जीत मिली. परम्परागत गढ़ होने के कारण मोदी लहर में भी यहां साल 2019 के लोकसभा में 18,000 वोटों से कांग्रेस को जीत मिली थी, जबकि पूरे संभाग की हर विधानसभा में कांग्रेस बुरी तरह पिछड़ गई थी. भाजपा ने साल 2019 का लोकसभा चुनाव करीब 1 लाख 57 हजार मतों से जीता था.

क्या कहते हैं पॉलिटिकल एक्सपर्ट: इस बारे में ईटीवी भारत ने पॉलिटिकल एक्सपर्ट सुधीर पांडेय से बातचीत की. उन्होंने बताया कि, "सीतापुर विधानसभा क्षेत्र को शुरू से ही कांग्रेस का गढ़ माना जाता रहा है. यहां आजादी के बाद साल 2023 में ही भाजपा को जीत हासिल हो सकी. बड़ा दिलचस्प इतिहास रहा है सीतापुर विधानभसा क्षेत्र का. वहां से हमेशा कांग्रेस समर्थित प्रत्याशी ही जीतते आ रहे थे. साल 2023 से पहले सिर्फ दो ऐसे अवसर आए, जब वहां निर्दलीय प्रत्याशियों ने चुनाव जीता. साल 1998 में गोपाल राम और साल 1977 में राम खेलावन दो पत्ती छाप से निर्दलीय चुनाव जीते थे. पहली बार भाजपा की जीत साल 2023 में हुई, जब भाजपा अपने आप को पार्टीगत रूप से स्थापित करने में सफल हो सकी."

साल 2019 में लोकसभा चुनाव हुआ, जब संभाग की पूरी सीट कांग्रेस हार गई थी, तब भी सीतापुर से कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में करीब 18000 वोट की बढ़त मिली. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने करीब 11 हजार वोटों से लीड हासिल की थी, जबकि इसके ठीक पहले साल 2013 में हुए विधानसभा चुनाव में जब यहां भाजपा की सत्ता थी, तब सरगुजा की 4 सीटें कांग्रेस के पास थी, इनमें सीतापुर भी कांग्रेस के पास रही. कांग्रेस के लिए सीतापुर का इतिहास काफी सुखद रहा है, लेकिन यहां के मतदाता समय-समय पर प्रत्याशियों के प्रति अपनी नाराजगी भी खुलकर जाहिर करते रहते हैं. साल 1998 में जब यहां कांग्रेस की पकड़ मजबूत थी, तब भी यहां निर्दलीय उम्मीदवार पहले नंबर में रहे. कांग्रेस दूसरे और भाजपा तीसरे नंबर पर रही. -सुधीर पांडेय, पॉलिटिकल एक्सपर्ट

बीजेपी की राह नहीं आसान: ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि सीतापुर क्षेत्र की जनता को अपने पाले में लेना बीजेपी के लिए थोड़ा कठिन है. भले ही भाजपा को सीतापुर विधानसभा सीट से पहली बार जीत मिली हो, पर इस लोकसभा चुनाव में भाजपा यही उम्मीद कर रही है कि उन्हें यहां से ज्यादा वोट मिले.भाजपा और कांग्रेस के बीच का कम अंतर रहा है. अगर भाजपा ठीक से कोशिश करे तो उनकी सरकार है, उनके विधायक हैं. इस बार के लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी को फायदा हो सकता है.

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Last Updated : May 3, 2024, 8:47 PM IST
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