लखनऊ: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) की सिफारिशों पर रोक लगाते हुए मदरसों को बड़ी राहत दी है. NCPCR ने शिक्षा के अधिकार कानून (RTE) का पालन न करने पर सरकारी वित्त पोषित और सहायता प्राप्त मदरसों की धनराशि रोकने की सिफारिश की थी. साथ ही आयोग ने यह भी कहा था कि गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों के छात्रों को सरकारी स्कूलों में भेजा जाए. सुप्रीम कोर्ट ने आज इन सिफारिशों को खारिज कर दिया.
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद की याचिका पर सुनवाई करते हुए NCPCR के आदेशों पर रोक लगा दी. याचिकाकर्ता ने दलील दी थी कि आयोग की सिफारिशें और कुछ राज्यों की कार्रवाई धार्मिक सौहार्द और गंगा-जमुनी तहजीब को नुकसान पहुंचा सकती हैं.
ऑल इंडिया टीचर्स एसोसिएशन मदारिस अरबिया के जनरल सेक्रेटरी वाहिदुल्ला खान सइदी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह मदरसों के लिए एक बड़ी जीत है. मदरसा शिक्षा व्यवस्था RTE एक्ट के दायरे में नहीं आती. NCPCR को ऐसे संस्थानों पर ध्यान नहीं देना चाहिए. सइदी ने आयोग की उस सिफारिश की भी आलोचना की जिसमें मदरसों से गैर-मुस्लिम बच्चों को निकालने की बात कही गई थी.
मौलाना खालिद रशीद फिरंगीमहली, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य ने भी सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का स्वागत किया. उन्होंने कहा कि एनसीपीसीआर की सिफारिशें धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ थीं. शैक्षिक संस्थानों में धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिए. मदरसे हर धर्म के छात्रों के लिए खुले हैं. किसी को शिक्षा प्राप्त करने से रोका नहीं जा सकता.
ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के जनरल सेक्रेटरी मौलाना यासीन अब्बास ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हम स्वागत करते हैं. मदरसों को बंद करने की जो साजिश थी उसे सुप्रीम कोर्ट ने नाकाम किया है. मदरसों को शक की निगाहों से देखा जाता है. हालांकि देश की आजादी की लड़ाई में लड़ने वाले कई योद्धा मदरसों से शिक्षा हासिल किए थे. उत्तर प्रदेश के पूर्व कार्यवाहक मुख्यमंत्री अमर रिजवी ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले की सराहना की और कहा कि शिक्षा के लिए धर्म की कोई बाध्यता नहीं होनी चाहिए.
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