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दिहाड़ीदारों के लिए बड़ी खबर, SC की मुहर के बाद अब 8 साल की नियमित सेवा के बाद मिलेगी पेंशन - SC order in favor of daily wages

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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Jul 5, 2024, 3:46 PM IST

SC order in favor of daily wages: दिहाड़ीदारों के लिए खुशखबरी है. सुप्रीम कोर्ट ने दिहाड़ीदारों की पेंशन पात्रता को लेकर बड़ा आदेश दिया है. इस आदेश का फायदा हिमाचल प्रदेश में उन सभी लोगों को होगा जो दिहाड़ीदार के तौर पर काम कर रहे हैं या काम कर चुके हैं.

Supreme Court order
सुप्रीम कोर्ट (ANI)

शिमला: हिमाचल प्रदेश में यदि किसी दिहाड़ीदार ने आठ साल की नियमित सेवा का समय पूरा कर लिया हो तो वह पेंशन का हकदार होगा. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की मुहर लग गई है.

दरअसल, हिमाचल की एक महिला बालो देवी के पति सरकारी महकमे में दिहाड़ीदार थे. तत्कालीन सिंचाई व जन स्वास्थ्य विभाग (अब जल शक्ति विभाग) में दिहाड़ीदार के तौर पर बालो देवी के पति ने नियमित होने से पहले दस साल तक दिहाड़ीदार के रूप में काम किया था. नियमित होने के बाद उन्होंने कुल छह साल दो महीने सरकारी सेवा में बिताए.

Supreme Court order
सुप्रीम कोर्ट के आदेश की कॉपी (ETV Bharat)
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सुप्रीम कोर्ट के आदेश की कॉपी (ETV Bharat)
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सुप्रीम कोर्ट के आदेश की कॉपी (ETV Bharat)
Supreme Court order
सुप्रीम कोर्ट के आदेश की कॉपी (ETV Bharat)

पेंशन के लिए पात्रता को लेकर हिमाचल हाईकोर्ट ने आदेश दिया था कि पांच साल की दिहाड़ीदार के तौर पर सेवा को एक साल की नियमित सेवा के बराबर माना जाए. इस तरह बालो देवी के पति की दस साल की दिहाड़ीदार के रूप में सेवाकाल को दो साल की नियमित सेवा के बराबर माना गया. चूंकि बालो देवी के पति ने नियमित होने के बाद छह साल दो महीने नौकरी की थी, लिहाजा उनका कुल नियमित कार्यकाल आठ साल से अधिक हो गया.

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने उन्हें इस आठ साल के नियमित सेवाकाल को पेंशन के लिए कंसीडर करने के आदेश जारी किए थे. इस आदेश के खिलाफ राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में गई थी, लेकिन सर्वोच्च अदालत ने राज्य सरकार की याचिका खारिज कर दी.

अब परिणाम ये हुआ कि राज्य में जिन भी दिहाड़ीदारों ने डेली वेजर व नियमित सेवाकाल में आठ साल की नौकरी पूरी की होगी, उन सभी को पेंशन के लिए पात्र माना जाएगा. इसमें फार्मूला यह लागू होगा कि दस साल की दिहाड़ीदार के तौर पर सेवा को दो साल की नियमित सेवा माना जाएगा.

यानी पांच साल की दिहाड़ीदार के तौर पर नौकरी को एक साल की नियमित सेवा कंसीडर किया जाएगा और इस तरह दस साल की दिहाड़ीदार सेवा दो साल की नियमित नौकरी होगी. राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी, जिसे खारिज कर दिया गया है. यानी राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में ये केस हार गई.

परिणामस्वरूप अब आठ साल की नियमित सेवा वाले दिहाड़ीदारों को भी पेंशन मिलेगी. वैसे हिमाचल में दस साल की नियमित सेवा के बाद पेंशन का प्रावधान है लेकिन इस मामले में ये बात समझने वाली है कि जो कर्मचारी पहले दिहाड़ीदार थे और बाद में नियमित हुए, यदि उनका कुल नियमित कार्यकाल आठ साल का होता है तो वे पेंशन के हकदार हैं.

उल्लेखनीय है कि बालो देवी के पति जल शक्ति विभाग में क्लास फोर कर्मचारी थे. राज्य सरकार की पुनर्विचार याचिका की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायाधीश एएस बोपन्ना और न्यायाधीश सुधांशु धूलिया की खंडपीठ ने की.

इस मामले में 18 जुलाई 2022 को रिव्यू पिटीशन दाखिल की गई थी. इससे पहले शीला देवी केस में भी अनुबंध अवधि को सीनियोरिटी में गिनने और वित्तीय लाभ देने के आदेश सुप्रीम कोर्ट से आ चुके हैं. ऐसे में राज्य सरकार को अब इन वर्गों में आने वाले ऐसे सभी कर्मचारियों को तय लाभ देने के लिए एक बड़ी रकम की जरूरत होगी.

ये भी पढ़ें: 1500 रुपये वाली योजना छुड़वा रही पसीने, अफसर से लेकर क्लास फोर कर्मचारी कर रहे आवेदनों की छंटनी

शिमला: हिमाचल प्रदेश में यदि किसी दिहाड़ीदार ने आठ साल की नियमित सेवा का समय पूरा कर लिया हो तो वह पेंशन का हकदार होगा. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की मुहर लग गई है.

दरअसल, हिमाचल की एक महिला बालो देवी के पति सरकारी महकमे में दिहाड़ीदार थे. तत्कालीन सिंचाई व जन स्वास्थ्य विभाग (अब जल शक्ति विभाग) में दिहाड़ीदार के तौर पर बालो देवी के पति ने नियमित होने से पहले दस साल तक दिहाड़ीदार के रूप में काम किया था. नियमित होने के बाद उन्होंने कुल छह साल दो महीने सरकारी सेवा में बिताए.

Supreme Court order
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सुप्रीम कोर्ट के आदेश की कॉपी (ETV Bharat)
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सुप्रीम कोर्ट के आदेश की कॉपी (ETV Bharat)
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पेंशन के लिए पात्रता को लेकर हिमाचल हाईकोर्ट ने आदेश दिया था कि पांच साल की दिहाड़ीदार के तौर पर सेवा को एक साल की नियमित सेवा के बराबर माना जाए. इस तरह बालो देवी के पति की दस साल की दिहाड़ीदार के रूप में सेवाकाल को दो साल की नियमित सेवा के बराबर माना गया. चूंकि बालो देवी के पति ने नियमित होने के बाद छह साल दो महीने नौकरी की थी, लिहाजा उनका कुल नियमित कार्यकाल आठ साल से अधिक हो गया.

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने उन्हें इस आठ साल के नियमित सेवाकाल को पेंशन के लिए कंसीडर करने के आदेश जारी किए थे. इस आदेश के खिलाफ राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में गई थी, लेकिन सर्वोच्च अदालत ने राज्य सरकार की याचिका खारिज कर दी.

अब परिणाम ये हुआ कि राज्य में जिन भी दिहाड़ीदारों ने डेली वेजर व नियमित सेवाकाल में आठ साल की नौकरी पूरी की होगी, उन सभी को पेंशन के लिए पात्र माना जाएगा. इसमें फार्मूला यह लागू होगा कि दस साल की दिहाड़ीदार के तौर पर सेवा को दो साल की नियमित सेवा माना जाएगा.

यानी पांच साल की दिहाड़ीदार के तौर पर नौकरी को एक साल की नियमित सेवा कंसीडर किया जाएगा और इस तरह दस साल की दिहाड़ीदार सेवा दो साल की नियमित नौकरी होगी. राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी, जिसे खारिज कर दिया गया है. यानी राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में ये केस हार गई.

परिणामस्वरूप अब आठ साल की नियमित सेवा वाले दिहाड़ीदारों को भी पेंशन मिलेगी. वैसे हिमाचल में दस साल की नियमित सेवा के बाद पेंशन का प्रावधान है लेकिन इस मामले में ये बात समझने वाली है कि जो कर्मचारी पहले दिहाड़ीदार थे और बाद में नियमित हुए, यदि उनका कुल नियमित कार्यकाल आठ साल का होता है तो वे पेंशन के हकदार हैं.

उल्लेखनीय है कि बालो देवी के पति जल शक्ति विभाग में क्लास फोर कर्मचारी थे. राज्य सरकार की पुनर्विचार याचिका की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायाधीश एएस बोपन्ना और न्यायाधीश सुधांशु धूलिया की खंडपीठ ने की.

इस मामले में 18 जुलाई 2022 को रिव्यू पिटीशन दाखिल की गई थी. इससे पहले शीला देवी केस में भी अनुबंध अवधि को सीनियोरिटी में गिनने और वित्तीय लाभ देने के आदेश सुप्रीम कोर्ट से आ चुके हैं. ऐसे में राज्य सरकार को अब इन वर्गों में आने वाले ऐसे सभी कर्मचारियों को तय लाभ देने के लिए एक बड़ी रकम की जरूरत होगी.

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