शिमला: मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार के लिए एक सुख की खबर है. आर्थिक संकट से जूझ रही सरकार को आने वाले समय में बिजली से धन वर्षा के आसार और बढ़ गए हैं. लंबे अरसे से अटके भाखड़ा-ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड यानी बीबीएमबी के 4500 करोड़ रुपए के एरियर के भुगतान को लेकर बात आगे बढ़ी है.
दरअसल, इस मामले को लेकर बुधवार 11 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई थी. सुप्रीम कोर्ट ने भारत के अटॉर्नी जनरल को इस मामले में हिमाचल, पंजाब व हरियाणा सरकारों के बीच सामंजस्य और भुगतान के मुद्दे पर सहमति बनाने के लिए निर्देश दिया हुआ है. इस बार की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट की नई खंडपीठ ने मामला सुना. बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में हिमाचल को 15 साल में भुगतान को लेकर लगभग सहमति हो गई है. यानी अटार्नी जनरल ने हिमाचल का पक्ष सुप्रीम कोर्ट के सामने रखा और सुप्रीम कोर्ट की नई खंडपीठ के बीच हिमाचल सरकार के दो बिंदुओं को लेकर सहमति देखी गई है. ये बिंदू 1300 करोड़ यूनिट बिजली देने और इसकी 15 साल में भुगतान प्रक्रिया से जुड़े हैं.
मामले की आगामी सुनवाई 23 अक्टूबर को रखी गई है. उस सुनवाई में भुगतान की प्रक्रिया और स्पष्ट होने के आसार हैं. यदि 23 अक्टूबर की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट से कोई स्पष्ट निर्देश आते हैं और हरियाणा तथा पंजाब सरकार को सख्त निर्देश जारी होते हैं तो सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार को आर्थिक मोर्चे पर बहुत राहत मिलेगी. पंजाब व हरियाणा ने बीबीएमबी जलविद्युत परियोजनाओं में हिमाचल के हिस्से की देनदारी चुकानी है. वर्ष 2011 से हिमाचल को बढ़ी हुई हिस्सेदारी मिलनी है. ये रकम 4500 करोड़ रुपए से अधिक बनती है. दोनों राज्य नकद भुगतान की बजाय बिजली देने को राजी हैं. ये बिजली 1300 करोड़ यूनिट बनती है. यदि चरणबद्ध तरीके से बिजली मिलना शुरू होती है तो हिमाचल को हर साल 500 से 700 करोड़ रुपए की कमाई होगी.
सीएम सुक्खू खुद कर रहे मॉनिटरिंग
इधर, आर्थिक संकट से दो-चार हो रही हिमाचल की सुखविंदर सिंह सरकार ने भी अपने हक के लिए जी-जान लगाया हुआ है. सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू खुद इस मामले का फॉलोअप कर रहे हैं. उन्होंने अपने ऊर्जा सलाहकार रामसुभग सिंह को इस मामले में सक्रिय रूप से काम करने के निर्देश दिए हुए हैं. रामसुभग सिंह ऊर्जा विभाग के अफसरों व अन्य संबंधितों की टीम के साथ मामले की सुनवाई से पहले ही दिल्ली चले गए थे. वहां, उन्होंने भारत के अटार्नी जनरल के समक्ष हिमाचल का पक्ष रखा. उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट 2011 में ही हिमाचल के हक में फैसला सुना चुका है. बीबीएमबी की परियोजनाएं हिमाचल की जमीन पर बनी हैं. हिमाचल को इन परियोजनाओं के उत्पादन में अपने हिस्से का एरियर मिलना है. सभी सरकारों ने इसके लिए प्रयास किए हैं. प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में भाजपा सरकार के समय हिमाचल के हक में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया था. उसके बावजूद हरियाणा व पंजाब हिमाचल के हक को देने में आनाकानी करते रहे हैं.
बीबीएमबी के तीन प्रोजेक्ट्स से मिलनी है हिस्सेदारी
बीबीएमबी के तीन प्रोजेक्ट हिमाचल की भूमि पर बने हैं. इनमें भाखड़ा डैम पावर प्रोजेक्ट, डैहर पावर प्रोजेक्ट व पौंग डैम पावर प्रोजेक्ट शामिल हैं. वर्ष 2011 से हिमाचल को इन तीन परियोजनाओं की बिजली में बढ़ा हुआ हिस्सा मिलना शुरू हो गया है, परंतु भाखड़ा परियोजना में 1966 से, डैहर प्रोजेक्ट में 1977 से व पौंग बांध परियोजना में 1978 से एरियर बकाया है. ये रकम 4500 करोड़ से अधिक है. पंजाब और हरियाणा इस एरियर का भुगतान नगद के तौर पर करने के लिए राजी नहीं है. अलबत्ता दोनों राज्य एरियर को बिजली देने के रूप में चुकाने को तैयार हैं. इस तरह से एरियर की कुल 1300 करोड़ यूनिट बिजली बनती है.
हिमाचल के लिए हर हाल में लाभ का सौदा
हिमाचल को बेशक एरियर के तौर पर 1300 करोड़ यूनिट बिजली ही मिले, ये भी राज्य के लिए लाभ का सौदा है. जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट में दो बिंदुओं को लेकर सहमति बनती दिखी है, उसके तहत यदि आने वाले 15 साल में भी एरियर का भुगतान बिजली के रूप में हो तो भी हिमाचल को कम से कम हर साल 500 से 700 करोड़ रुपए अतिरिक्त मिलने आरंभ हो जाएंगे. अब राज्य सरकार ने 23 अक्टूबर की सुनवाई के लिए तैयारी शुरू कर दी है. सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने हाल ही के विधानसभा के मानसून सेशन में कहा था कि उनकी सरकार विभिन्न परियोजनाओं में हिमाचल के हक लेने के लिए गंभीर प्रयास कर रही है.