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SC ने यूपी मदरसा बोर्ड एक्ट को संवैधानिक माना; इस फैसले से मुस्लिम समाज में खुशी का माहौल, विपक्ष ने सरकार को घेरा

सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर उत्तर प्रदेश के मुस्लिम समाज ने जताई खुशी, धर्मगुरुओं और याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट का जताया आभार

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सुप्रीम कोर्ट. (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Nov 5, 2024, 3:33 PM IST

Updated : Nov 5, 2024, 3:52 PM IST

लखनऊ: सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004 को संवैधानिक ठहराते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया है. हाईकोर्ट ने इस अधिनियम को असंवैधानिक घोषित किया गया था. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जहां तक 'फाजिल' और 'कामिल' डिग्रियों के उच्च शिक्षा के संदर्भ में मदरसा अधिनियम का सवाल है, वह यूजीसी अधिनियम के साथ संघर्ष में है और इस हद तक यह असंवैधानिक है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का मुस्लिम समाज के धर्मगुरुओं और विपक्ष के नेताओं ने स्वागत करते हुए सुप्रीम कोर्ट का आभार जताया है.

ऑल इंडिया टीचर्स एसोसिएशन ने दाखिल की थी याजचिका
सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करने वाले ऑल इंडिया टीचर्स एसोसिएशन मदारिस अरबिया के जनरल सेक्रेटरी वहीदुल्ला खान सईदि ने ईटीवी भारत से इस संबंध में बातचीत करते हुए कहा कि कोर्ट के फैसले से हम सभी मदारिस के लोग खुश हैं. इंसाफ की जीत हुई है. इस पूरे लड़ाई में यूपी सरकार का भी रवैया अच्छा था. उन्होंने कहा कि मदरसा बोर्ड भी एक्ट के हक में था. यूपी सरकार के सरकारी वकील ने भी एक्ट को बचाने की वकालत की. कामिल और फाजिल के डिग्री के लिए भी यूपी सरकार को कहा है कि यूजीसी के गाइडलाइन पर व्यवस्था करने का निर्देश कोर्ट ने दिया है. मौलाना दीवान साहब ज़मा ने कहा कि इस फैसले से उत्तर प्रदेश के 10000 टीचर्स और 25 लाख छात्र-छात्राओं भविष्य को बचा लिया है. उन्होंने कहा कि हाई कोर्ट में भी हम पूरी तरीके से पैरवी कर रहे थे. लेकिन हाईकोर्ट ने हमारी बात नहीं सुनी थी और मदरसा एक्ट के खिलाफ फैसला दिया था.

लखनऊ में खुशी मनाते मुस्लिम समुदाय के लोग.
लखनऊ में खुशी मनाते मुस्लिम समुदाय के लोग. (Photo Credit; ETV Bharat)

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ये दिया था फैसला
बता दें कि हाई कोर्ट ने मदरसा अधिनियम को असंवैधानिक घोषित करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया था कि मदरसों में पढ़ने वाले छात्रों को औपचारिक शिक्षा प्रणाली में समायोजित करने के लिए एक योजना बनाई जाए. इसके बाद विभिन्न संस्थाओं ने हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि हाई कोर्ट ने यूपी मदरसा अधिनियम का उद्देश्य गलत समझा और इसे धार्मिक शिक्षा देने वाला अधिनियम माना, जबकि इसका उद्देश्य मुस्लिम बच्चों की शिक्षा के लिए नियमन की एक योजना प्रदान करना है. अधिनियम का विरोध करने वाले हस्तक्षेपकर्ताओं और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने तर्क दिया कि मदरसा शिक्षा, संविधान के अनुच्छेद 21ए के तहत गुणवत्ता शिक्षा के वादे को पूरा नहीं करती. धार्मिक शिक्षा का विकल्प होना चाहिए, लेकिन इसे मुख्यधारा की शिक्षा का स्थान नहीं दिया जा सकता.

मदरसों और बच्चों के हित में फैसलाः ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन रजवी ने कहा कि मदरसों को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला तारीफ के काबिल है. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मदरसों के संबंध में जो फैसला दिया था, उसे तमाम मदरसा जगत में मायूसी छा गई थी. यह फैसला मदरसों और बच्चों के हित में है. अब तालीम पर ज्यादा मेहनत होगी. बच्चे ज्यादा मेहनत से पढ़ेंगे, आगे बढ़ेंगे.

बार-बार फटकार लगाने के बाद भी नहीं सुरधर रही भाजपाः कांग्रेस
कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता अंशू अवस्थी ने कहा कि भाजपा सरकार को अपनी जन विरोधी मानसिकता के चलते बार-बार उच्चतम न्यायालय के द्वारा फटकार पड़ती है. लेकिन फिर भी वह सबक नहीं लेते. 69000 शिक्षक भर्ती और बुलडोजर सहित कई मामले में फटकार लगाई. लेकिन ये स्कूलों के बंद करने की नियत रखने वाले शिक्षा विरोधी लोग सबक नहीं लेते. मदरसों को लेकर उच्चतम न्यायालय का निर्णय स्वागत योग्य है. आगे के लिए भाजपा सरकार को इससे सबक लेना चाहिए कि वह जनहित के कामों को रोकने के बजाय उन्हें बढ़ाने का काम करें.

AMU में छात्रों और प्रोफेसर्स ने जताई खुशी, SC के फैसले का किया स्वागत
सुप्रीम कोर्ट द्वारा यूपी हाई कोर्ट के मदरसा बोर्ड पर दिए गए आदेश को रद्द ओर यूपी मदरसा बोर्ड को मान्य करने का आदेश देने पर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के प्रोफेसर व प्रबुद्ध लोगों ने खुशी जताई है. एएमयू थियोलॉजी विभाग के प्रोफेसर मोहम्मद राशिद ने सरकार द्वारा मदरसा बोर्ड का विरोध करना सरासर गलत है. मदरसा बोर्ड के कारण सरकार का खर्च का बोझ भी काम हो रहा है. इसे एक समुदाय की शिक्षा की इन मदरसों से शिक्षित होकर बहुत छात्र देश में अच्छे-अच्छे पदों पर हैं और देश का नाम रोशन किया है. बता दें कि प्रदेश में करीब 25 हजार मदरसे चल रहे हैं. इनमें से लगभग 16,500 मदरसों ने राज्य मदरसा शिक्षा परिषद से मान्यता ली हुई है. 560 मदरसों को सरकारी अनुदान मिलता है. करीब 8500 मदरसे गैर मान्यता प्राप्त हैं.

यूपी सरकार फैसले पर सही से अमल करेः मायावती
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का बहुजन सुप्रीमो मायावती ने भी स्वागत किया है. उन्होंने एक्स पर लिखा है कि 'सुप्रीम कोर्ट ने आज एक अहम फैसले में यूपी मदरसा शिक्षा बोर्ड कानून 2024 को वैध व संवैधानिक कर दिया है. इस फैसले का बहुजन समाज पार्टी स्वागत करती है. इससे उत्तर प्रदेश में मदरसा शिक्षा को लेकर उपजे विवाद व हजारों मदरसों की अनिश्चितता को अब निश्चय ही समाप्त होने की संभावना है. इस पर सही से अमल जरूरी है. इस फैसले के बाद अब खासकर यूपी के मदरसों को मान्यता मिलने और उनके सुचारु संचालन में स्थायित्व आने की संभावना है. अदालत ने कहा कि मदरसा एक्ट के प्रावधान संवैधानिक मूल्यों के अनुरूप हैं और यह धार्मिक अल्पसंख्यकों के शैक्षिक अधिकारों की सुरक्षा करते हैं. बीएसपी सुप्रीमो ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की बेंच ने हर निजी संपत्ति को संविधान के अनुच्छेद 39 बी के तहत सामुदायिक संपत्ति का हिस्सा नहीं मानना व इसका अधिग्रहण करने से रोकने के फैसले का भी स्वागत है. अब तक सरकार के पास आम भलाई के लिए सभी निजी संपत्तियों को अधिग्रहित करने का अधिकार था'.

महामंडलेश्वर कैलाशानंद ने भी दी प्रतिक्रिया

बरेली में मीडिया से बात करते हुए महामंडलेश्वर कैलाशानंद गिरी महाराज ने कहा कि मदरसे को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को हम सभी स्वीकार करते हैं. उन्होंने कहा कि मदरसे के इमाम और धर्मगुरु को भी इस फैसले को स्वीकार करना चाहिए. संपूर्ण मुस्लिम समाज को यह स्वीकार करना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट भारत का सबसे बड़ा कोर्ट. कोर्ट किसी एक के लिए नहीं, एक जाति ,एक परंपरा के लिए नहीं है. सुप्रीम कोर्ट न्याय उचित तरीके से कार्य करती है.

इसे भी पढ़ें-सुप्रीम कोर्ट ने यूपी मदरसा बोर्ड एक्ट 2004 की संवैधानिक वैधता बरकरार रखी, हाईकोर्ट का फैसला पलटा

लखनऊ: सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004 को संवैधानिक ठहराते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया है. हाईकोर्ट ने इस अधिनियम को असंवैधानिक घोषित किया गया था. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जहां तक 'फाजिल' और 'कामिल' डिग्रियों के उच्च शिक्षा के संदर्भ में मदरसा अधिनियम का सवाल है, वह यूजीसी अधिनियम के साथ संघर्ष में है और इस हद तक यह असंवैधानिक है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का मुस्लिम समाज के धर्मगुरुओं और विपक्ष के नेताओं ने स्वागत करते हुए सुप्रीम कोर्ट का आभार जताया है.

ऑल इंडिया टीचर्स एसोसिएशन ने दाखिल की थी याजचिका
सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करने वाले ऑल इंडिया टीचर्स एसोसिएशन मदारिस अरबिया के जनरल सेक्रेटरी वहीदुल्ला खान सईदि ने ईटीवी भारत से इस संबंध में बातचीत करते हुए कहा कि कोर्ट के फैसले से हम सभी मदारिस के लोग खुश हैं. इंसाफ की जीत हुई है. इस पूरे लड़ाई में यूपी सरकार का भी रवैया अच्छा था. उन्होंने कहा कि मदरसा बोर्ड भी एक्ट के हक में था. यूपी सरकार के सरकारी वकील ने भी एक्ट को बचाने की वकालत की. कामिल और फाजिल के डिग्री के लिए भी यूपी सरकार को कहा है कि यूजीसी के गाइडलाइन पर व्यवस्था करने का निर्देश कोर्ट ने दिया है. मौलाना दीवान साहब ज़मा ने कहा कि इस फैसले से उत्तर प्रदेश के 10000 टीचर्स और 25 लाख छात्र-छात्राओं भविष्य को बचा लिया है. उन्होंने कहा कि हाई कोर्ट में भी हम पूरी तरीके से पैरवी कर रहे थे. लेकिन हाईकोर्ट ने हमारी बात नहीं सुनी थी और मदरसा एक्ट के खिलाफ फैसला दिया था.

लखनऊ में खुशी मनाते मुस्लिम समुदाय के लोग.
लखनऊ में खुशी मनाते मुस्लिम समुदाय के लोग. (Photo Credit; ETV Bharat)

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ये दिया था फैसला
बता दें कि हाई कोर्ट ने मदरसा अधिनियम को असंवैधानिक घोषित करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया था कि मदरसों में पढ़ने वाले छात्रों को औपचारिक शिक्षा प्रणाली में समायोजित करने के लिए एक योजना बनाई जाए. इसके बाद विभिन्न संस्थाओं ने हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि हाई कोर्ट ने यूपी मदरसा अधिनियम का उद्देश्य गलत समझा और इसे धार्मिक शिक्षा देने वाला अधिनियम माना, जबकि इसका उद्देश्य मुस्लिम बच्चों की शिक्षा के लिए नियमन की एक योजना प्रदान करना है. अधिनियम का विरोध करने वाले हस्तक्षेपकर्ताओं और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने तर्क दिया कि मदरसा शिक्षा, संविधान के अनुच्छेद 21ए के तहत गुणवत्ता शिक्षा के वादे को पूरा नहीं करती. धार्मिक शिक्षा का विकल्प होना चाहिए, लेकिन इसे मुख्यधारा की शिक्षा का स्थान नहीं दिया जा सकता.

मदरसों और बच्चों के हित में फैसलाः ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन रजवी ने कहा कि मदरसों को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला तारीफ के काबिल है. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मदरसों के संबंध में जो फैसला दिया था, उसे तमाम मदरसा जगत में मायूसी छा गई थी. यह फैसला मदरसों और बच्चों के हित में है. अब तालीम पर ज्यादा मेहनत होगी. बच्चे ज्यादा मेहनत से पढ़ेंगे, आगे बढ़ेंगे.

बार-बार फटकार लगाने के बाद भी नहीं सुरधर रही भाजपाः कांग्रेस
कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता अंशू अवस्थी ने कहा कि भाजपा सरकार को अपनी जन विरोधी मानसिकता के चलते बार-बार उच्चतम न्यायालय के द्वारा फटकार पड़ती है. लेकिन फिर भी वह सबक नहीं लेते. 69000 शिक्षक भर्ती और बुलडोजर सहित कई मामले में फटकार लगाई. लेकिन ये स्कूलों के बंद करने की नियत रखने वाले शिक्षा विरोधी लोग सबक नहीं लेते. मदरसों को लेकर उच्चतम न्यायालय का निर्णय स्वागत योग्य है. आगे के लिए भाजपा सरकार को इससे सबक लेना चाहिए कि वह जनहित के कामों को रोकने के बजाय उन्हें बढ़ाने का काम करें.

AMU में छात्रों और प्रोफेसर्स ने जताई खुशी, SC के फैसले का किया स्वागत
सुप्रीम कोर्ट द्वारा यूपी हाई कोर्ट के मदरसा बोर्ड पर दिए गए आदेश को रद्द ओर यूपी मदरसा बोर्ड को मान्य करने का आदेश देने पर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के प्रोफेसर व प्रबुद्ध लोगों ने खुशी जताई है. एएमयू थियोलॉजी विभाग के प्रोफेसर मोहम्मद राशिद ने सरकार द्वारा मदरसा बोर्ड का विरोध करना सरासर गलत है. मदरसा बोर्ड के कारण सरकार का खर्च का बोझ भी काम हो रहा है. इसे एक समुदाय की शिक्षा की इन मदरसों से शिक्षित होकर बहुत छात्र देश में अच्छे-अच्छे पदों पर हैं और देश का नाम रोशन किया है. बता दें कि प्रदेश में करीब 25 हजार मदरसे चल रहे हैं. इनमें से लगभग 16,500 मदरसों ने राज्य मदरसा शिक्षा परिषद से मान्यता ली हुई है. 560 मदरसों को सरकारी अनुदान मिलता है. करीब 8500 मदरसे गैर मान्यता प्राप्त हैं.

यूपी सरकार फैसले पर सही से अमल करेः मायावती
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का बहुजन सुप्रीमो मायावती ने भी स्वागत किया है. उन्होंने एक्स पर लिखा है कि 'सुप्रीम कोर्ट ने आज एक अहम फैसले में यूपी मदरसा शिक्षा बोर्ड कानून 2024 को वैध व संवैधानिक कर दिया है. इस फैसले का बहुजन समाज पार्टी स्वागत करती है. इससे उत्तर प्रदेश में मदरसा शिक्षा को लेकर उपजे विवाद व हजारों मदरसों की अनिश्चितता को अब निश्चय ही समाप्त होने की संभावना है. इस पर सही से अमल जरूरी है. इस फैसले के बाद अब खासकर यूपी के मदरसों को मान्यता मिलने और उनके सुचारु संचालन में स्थायित्व आने की संभावना है. अदालत ने कहा कि मदरसा एक्ट के प्रावधान संवैधानिक मूल्यों के अनुरूप हैं और यह धार्मिक अल्पसंख्यकों के शैक्षिक अधिकारों की सुरक्षा करते हैं. बीएसपी सुप्रीमो ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की बेंच ने हर निजी संपत्ति को संविधान के अनुच्छेद 39 बी के तहत सामुदायिक संपत्ति का हिस्सा नहीं मानना व इसका अधिग्रहण करने से रोकने के फैसले का भी स्वागत है. अब तक सरकार के पास आम भलाई के लिए सभी निजी संपत्तियों को अधिग्रहित करने का अधिकार था'.

महामंडलेश्वर कैलाशानंद ने भी दी प्रतिक्रिया

बरेली में मीडिया से बात करते हुए महामंडलेश्वर कैलाशानंद गिरी महाराज ने कहा कि मदरसे को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को हम सभी स्वीकार करते हैं. उन्होंने कहा कि मदरसे के इमाम और धर्मगुरु को भी इस फैसले को स्वीकार करना चाहिए. संपूर्ण मुस्लिम समाज को यह स्वीकार करना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट भारत का सबसे बड़ा कोर्ट. कोर्ट किसी एक के लिए नहीं, एक जाति ,एक परंपरा के लिए नहीं है. सुप्रीम कोर्ट न्याय उचित तरीके से कार्य करती है.

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Last Updated : Nov 5, 2024, 3:52 PM IST
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