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15 साल में 22 हजार किमी की यात्रा; देश को नशामुक्त कराने के लिए चल रही बनारसी युवाओं की टोली - De Addiction Campaign

मूल रूप से भदोही के रहने वाले सुमित सिंह की कर्मभूमि वाराणसी है. बनारस से ही पढ़ाई करने के बाद सुमित ने जब अपने करियर को आगे बढ़ाने की सोची तो उनका सामना एक ऐसी बुराई से हुआ जो उनके जैसे युवाओं को गर्त में धकेलने का काम कर रही थी.

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नशामुक्त भारत के लिए सुमित सिंह की टीम. (Photo Credit; ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jul 20, 2024, 4:24 PM IST

Updated : Jul 20, 2024, 6:55 PM IST

वाराणसी: कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता, किसी को जमीं तो किसी को आसमान नहीं मिलता. एक पुरानी फिल्म के ग़ज़ल की यह चंद लाइनें आज के युवाओं पर बिल्कुल सटीक बैठती हैं. उम्मीद से ज्यादा पाने की चाहत और फिर उन चीजों के न मिलने के बाद नशे की लत में डूब रहा युवा कहीं ना कहीं से खुद के साथ अपने परिवार की भी जिंदगी को बर्बाद कर रहा है.

सुमित 2012 में अपने स्टूडेंट लाइफ से ही इस मुहिम में जुटे हैं (Video Credit- ETV Bharat)

ऐसे ही युवाओं में बनारस का एक ऐसा युवा भी है जो न सिर्फ नशे की लत से दूर है, बल्कि 15 साल से युवाओं को नशे से दूर करने की जुगत में दिन-रात परेशान है. वाराणसी में रहकर इसे अपनी कर्मभूमि मानते हुए एक छोटी सी बात को दिल में लगाकर युवाओं को नशे की लत से दूर रखने के लिए सुमित सिंह आज के युवाओं के लिए एक बड़ी मिसाल है. सुमित 2012 में अपने स्टूडेंट लाइफ से ही ऐसी मुहिम में जुटे हैं.

मूल रूप से भदोही के रहने वाले सुमित सिंह की कर्मभूमि वाराणसी है. बनारस से ही पढ़ाई करने के बाद सुमित ने जब अपने करियर को आगे बढ़ाने की सोची तो उनका सामना एक ऐसी बुराई से हुआ जो उनके जैसे युवाओं को गर्त में धकेलने का काम कर रही थी.

सुमित बताते हैं कि 2014 में पढ़ाई करने के दौरान जब पत्रकारिता के लिए वह एक बड़ी कंपनी में पहुंचे तो ट्रेनिंग के दौरान उन्हें एक सीनियर ने बनारस के एक ऐसे पहलू से रूबरू करवाया जिसे सुनकर वह अंदर से हिल गए.

सुमित बताते हैं कि मैं बनारस को हमेशा सबके सामने संस्कृति की राजधानी धर्म की नगरी और एक अद्भुत शहर के रूप में प्रस्तुत करता था, लेकिन जब उनके सीनियर ने बनारस के घाटों पर नशे की गिरफ्त की चर्चा की तो सुनकर बहुत बुरा लगा. उनके सीनियर ने कहा कि बनारस के गंगा घाटों पर तो अंग्रेज नशा करने का अड्डा बना रहे हैं. सिगरेट, गांजा और शराब घाटों और युवाओं को बर्बाद कर रहा है. यह सुनकर सुमित के मन में बस इन चीजों से मुक्ति का विचार आया.

सुमित बताते हैं कि बस यहीं से हमारी मुहिम की शुरुआत हुई. 2016 तक हम और हमारे कुछ दोस्त अस्सी घाट से लेकर अलग-अलग गंगा घाटों पर टहलते हुए नशा कर रहे लोगों को ऐसा न करने की अपील करते थे. लोगों को पकड़ कर नशे के बुरे पहलू के बारे में बताते थे. जिसके बाद बहुत से लोग नशा करने की जगह उनकी मुहिम से जुड़ते गए. अंग्रेजों ने भी उनका बहुत साथ दिया.

सुमित बताते हैं कि 2 साल तक हमारा यह अभियान चला और उसके बाद हमने 2016 में काशियना फाउंडेशन के नाम से एक संस्था बनाई. इस संस्था के निर्माण के बाद हमारे साथ युवाओं की टीम जुड़ती चली गई. उनके साथ वर्तमान में 25 राज्यों में लगभग 1200 से ज्यादा युवाओं की टीम है जो नशा मुक्ति उन्मूलन की दिशा में काम कर रही है.

सुमित का कहना है कि 2016 के बाद उनके इस काम ने रफ्तार पकड़ी. घर-घर पहुंच कर बनारस में एक गांव शिवदासपुर को गोद लेकर इस मुहिम की शुरुआत हुई. इस शुरुआत को आगे बढ़ाना मुश्किल था, लेकिन सुमित ने हार नहीं मानी. उन्होंने वाराणसी के रेड लाइट एरिया शिवदासपुर को गोद ले लिया. उस वक्त काम मुश्किल था, लेकिन तत्कालीन जिलाधिकारी योगेश्वर राम मिश्रा और तत्कालीन मुख्य विकास अधिकारी सुनील वर्मा ने साथ दिया. कागजी कार्रवाई पूरी हुई और सुमित को ऑन पेपर शिवदासपुर गोद मिल गया. यहां पर सुमित ने काम शुरू किया तो, उसका दिमाग थोड़ा सा चेंज होने लगा.

सुमित का कहना है कि उसे इस बात की जानकारी नहीं थी कि शिवदासपुर रेड लाइट एरिया है. यहां के 10- 12 मकान की वजह से पूरा का पूरा इलाका बदनाम था. लोग यहां पर रहना नहीं चाहते थे और युवा नशे की लत में पड़ते जा रहे थे. जिसके बाद यहां के कुछ लोकल लड़कों के साथ सुमित ने यहां मुहिम शुरू की. यहां पहली बार जन चौपाल का आयोजन हुआ. जिसमें तत्कालीन मंत्री और विधायक नीलकंठ तिवारी ने लोगों की समस्याओं को सुना.

यहां की रेड लाइट एरिया में रहने वाली सेक्स वर्कर्स की भी समस्याओं को सुना गया और निस्तारण हुआ. जिसके बाद लोग सुमित से जुड़ते चले गए. सुमित ने बताया कि हम कई-कई रात इस गांव में बिताते थे. लोगों को समझाना, बड़े बुजुर्गों के साथ बैठकर युवाओं को नशे की लत से दूर करने का प्रयास करना. यह हमारी दिनचर्या में शामिल हो गया.

तीन साल तक हमने इस गांव में खूब मेहनत की, जिसका नतीजा हुआ कि लगभग 2 से 3 दर्जन की संख्या में युवाओं ने नशे की लत को छोड़कर हमारे साथ जुड़कर इस मुहिम में समर्थन करने के लिए प्रयास शुरू किया.

सुमित बताते हैं कि उनके इस प्रयासों का नतीजा था कि 2020 में केंद्र सरकार की तरफ से उन्हें नशा उन्मूलन समिति का एडवाइजर बनाया गया. वह हाल ही में दूसरी बार इस केंद्र सरकार की समिति के एडवाइजर के तौर पर नियुक्त हुए हैं. जिसमें देश भर में 570 नशा उन्मूलन केंद्रों पर जाना. वहां पर नशे के आदि लोगों को नशे से दूर करना उनके परिवारों से मुलाकात करके उनकी समस्याओं को सुनना यह सारा काम किया जाता है.

सुमित कहते हैं कि हमारे काम करने का तरीका थोड़ा अलग है. हम युवाओं से मिलते हैं और युवाओं को ही इस बुरी आदत से दूर करने पर काम करने के लिए मजबूर करते हैं. मर चुकी और सूख चुकी पुरानी जड़ों और पेड़ पौधों यानी बुजुर्गों पर हम अगर प्रयास करेंगे तो वह नशा नहीं छोड़ेंगे, लेकिन अभी-अभी तैयार हो रही नई फसल और नए पौधे यानी युवाओं पर यदि हम काम करेंगे तो उनको समझा कर हम नशे से दूर कर सकते हैं. इसलिए हमने युवाओं को ही नशे से दूर करने के लिए प्रयास शुरू किया और प्रयास सफल भी हो रहा है.

सुमित का यह प्रयास पहले वाराणसी और आसपास तक सीमित था लेकिन 2022 के बाद सुमित के मन में बड़ा विचार आया. उन्होंने देश भ्रमण करते हुए लिए नशा मुक्ति उन्मूलन यात्रा की शुरुआत की. पहली यात्रा 45 दिनों में पूरी हुई जो लगभग 15000 किलोमीटर की थी.

इस यात्रा में उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, हरियाणा, मध्य प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, गुजरात, समेत अन्य हिस्सों में जाकर सुमित ने यहां के मुख्यमंत्री और राज्यपालों से मुलाकात की और नशा उन्मूलन की दिशा में बड़े-बड़े इंस्टीट्यूट के साथ मिलकर कार्यक्रम की है. जहां हजारों की संख्या में युवाओं को जोड़कर नशे से दूर रखने का संदेश देते हुए अपनी टीम का हिस्सा बनाने का काम किया गया.

सुमित का कहना है कि इस यात्रा के बाद हमें उस हिस्से पर भी ध्यान देना था जो भारत का हिस्सा तो है लेकिन दूर है. यानी पूर्वोत्तर, सेवेन सिस्टर्स वाले राज्यों में त्रिपुरा, मेघालय, असम, नागालैंड समेत अन्य अलग-अलग राज्यों में जाकर सुमित ने काम शुरू किया. यहां भी उनकी यह यात्रा पहुंची.

सबसे बड़ी बात यह है कि सातों राज्यों के राज्यपाल ने उन्हें पूरा समर्थन दिया. यात्रा में उनके साथ वह भी खड़े हुए और युवाओं की बड़ी टीम जुड़कर सुमित के इस प्रयास को आगे बढ़ाने में लग गई. सुमित बताते हैं कि उनका प्रयास तभी सफल हुआ जब उनके टीम में शामिल कई मेंबर ने नशा छोड़कर उनके साथ जुड़ने की इच्छा जाहिर करते हुए उनके साथ देना शुरू किया.

सुमित बताते हैं कि वह एक संस्था जरूर चला रहे हैं, लेकिन सरकारी मदद से दूर हैं उनकी टीम में कई ऐसे लड़के हैं जो परिवार से मजबूत है. इसके अलावा कई प्राइवेट इंस्टिट्यूट और संस्थाओं के बल पर भी उनका यह प्रोजेक्ट आगे बढ़ रहा है. उन्हें खुलकर लोग समर्थन देते हैं. फंडिंग की कमी नहीं होती है.

फंड रेज करने के साथ ही अलग-अलग दिशा में कार्यक्रम करते हुए युवाओं को जागरूक करने, उनसे लगातार संपर्क बनाए रखने के साथ ही उन्हें नशे से दूर करने के लिए नशा उन्मूलन केंद्र पर भेजना, उनकी निगरानी करना और उनके परिवार के साथ मिलकर उन्हें समझना यह सारे काम करते हुए वह युवाओं को नशे से दूर करने का प्रयास करते हैं.

सुमित बताते हैं कि उन्होंने G20 की तर्ज पर D30 का आयोजन भी किया. 2023 में दिल्ली में उन्होंने दी 30 का आयोजन किया. जिसमें दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम में नशे से परेशान 30 देश के ढाई सौ से ज्यादा प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया. इसमें रिसर्च स्कॉलर, बड़े प्रोफेसर, डॉक्टर और नशा उन्मूलन की दिशा में काम करने वाली संस्थाओं के लोगों को आमंत्रित किया गया था.

अगला कार्यक्रम नवंबर के महीने में वह नेपाल में करने जा रहे हैं. जिसमें D30 यानी नशे की गिरफ्त में आने वाले 30 देश के प्रतिनिधियों को फिर से एकजुट करके नशा मुक्ति की दिशा में बड़ा प्रयास किया जा सके.

सुमित का कहना है कि काम मुश्किल है, लेकिन करना होगा क्योंकि 29 साल की अवस्था में आज मैं नशा मुक्ति की दिशा में एक बड़ी मुहिम को खड़ा कर दिया है. अब जरूरत है. इस मुहिम को और मजबूत करने की जिसमें युवाओं का साथ ही जरूरी है और मैं इसलिए पूरे देश में घूम-घूम कर युवाओं का समर्थन मांग रहा हूं, क्योंकि युवा जागरुक होंगे तो नशा मुक्त भारत का सपना पूरा होगा.

महात्मा बुद्ध के पंचशील सिद्धांतों में नशा मुक्ति भी शामिल है. उनके सिद्धांतों को ही मैं आधार बनाते हुए महात्मा गांधी से सीख ली है कि नशा उचित नहीं है. इसलिए गांधी और बुद्ध के सिद्धांतों के आधार पर मैं युवाओं को एकजुट करके नशा मुक्ति की दिशा में बड़ा काम करना चाह रहा हूं.

ये भी पढ़ेंः बनारस के नये घाट का फर्स्ट लुक आया सामने; चुनार के पत्थरों से लगे चार चांद, दिखेगा रिवर फ्रंट का खूबसूरत नजारा

वाराणसी: कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता, किसी को जमीं तो किसी को आसमान नहीं मिलता. एक पुरानी फिल्म के ग़ज़ल की यह चंद लाइनें आज के युवाओं पर बिल्कुल सटीक बैठती हैं. उम्मीद से ज्यादा पाने की चाहत और फिर उन चीजों के न मिलने के बाद नशे की लत में डूब रहा युवा कहीं ना कहीं से खुद के साथ अपने परिवार की भी जिंदगी को बर्बाद कर रहा है.

सुमित 2012 में अपने स्टूडेंट लाइफ से ही इस मुहिम में जुटे हैं (Video Credit- ETV Bharat)

ऐसे ही युवाओं में बनारस का एक ऐसा युवा भी है जो न सिर्फ नशे की लत से दूर है, बल्कि 15 साल से युवाओं को नशे से दूर करने की जुगत में दिन-रात परेशान है. वाराणसी में रहकर इसे अपनी कर्मभूमि मानते हुए एक छोटी सी बात को दिल में लगाकर युवाओं को नशे की लत से दूर रखने के लिए सुमित सिंह आज के युवाओं के लिए एक बड़ी मिसाल है. सुमित 2012 में अपने स्टूडेंट लाइफ से ही ऐसी मुहिम में जुटे हैं.

मूल रूप से भदोही के रहने वाले सुमित सिंह की कर्मभूमि वाराणसी है. बनारस से ही पढ़ाई करने के बाद सुमित ने जब अपने करियर को आगे बढ़ाने की सोची तो उनका सामना एक ऐसी बुराई से हुआ जो उनके जैसे युवाओं को गर्त में धकेलने का काम कर रही थी.

सुमित बताते हैं कि 2014 में पढ़ाई करने के दौरान जब पत्रकारिता के लिए वह एक बड़ी कंपनी में पहुंचे तो ट्रेनिंग के दौरान उन्हें एक सीनियर ने बनारस के एक ऐसे पहलू से रूबरू करवाया जिसे सुनकर वह अंदर से हिल गए.

सुमित बताते हैं कि मैं बनारस को हमेशा सबके सामने संस्कृति की राजधानी धर्म की नगरी और एक अद्भुत शहर के रूप में प्रस्तुत करता था, लेकिन जब उनके सीनियर ने बनारस के घाटों पर नशे की गिरफ्त की चर्चा की तो सुनकर बहुत बुरा लगा. उनके सीनियर ने कहा कि बनारस के गंगा घाटों पर तो अंग्रेज नशा करने का अड्डा बना रहे हैं. सिगरेट, गांजा और शराब घाटों और युवाओं को बर्बाद कर रहा है. यह सुनकर सुमित के मन में बस इन चीजों से मुक्ति का विचार आया.

सुमित बताते हैं कि बस यहीं से हमारी मुहिम की शुरुआत हुई. 2016 तक हम और हमारे कुछ दोस्त अस्सी घाट से लेकर अलग-अलग गंगा घाटों पर टहलते हुए नशा कर रहे लोगों को ऐसा न करने की अपील करते थे. लोगों को पकड़ कर नशे के बुरे पहलू के बारे में बताते थे. जिसके बाद बहुत से लोग नशा करने की जगह उनकी मुहिम से जुड़ते गए. अंग्रेजों ने भी उनका बहुत साथ दिया.

सुमित बताते हैं कि 2 साल तक हमारा यह अभियान चला और उसके बाद हमने 2016 में काशियना फाउंडेशन के नाम से एक संस्था बनाई. इस संस्था के निर्माण के बाद हमारे साथ युवाओं की टीम जुड़ती चली गई. उनके साथ वर्तमान में 25 राज्यों में लगभग 1200 से ज्यादा युवाओं की टीम है जो नशा मुक्ति उन्मूलन की दिशा में काम कर रही है.

सुमित का कहना है कि 2016 के बाद उनके इस काम ने रफ्तार पकड़ी. घर-घर पहुंच कर बनारस में एक गांव शिवदासपुर को गोद लेकर इस मुहिम की शुरुआत हुई. इस शुरुआत को आगे बढ़ाना मुश्किल था, लेकिन सुमित ने हार नहीं मानी. उन्होंने वाराणसी के रेड लाइट एरिया शिवदासपुर को गोद ले लिया. उस वक्त काम मुश्किल था, लेकिन तत्कालीन जिलाधिकारी योगेश्वर राम मिश्रा और तत्कालीन मुख्य विकास अधिकारी सुनील वर्मा ने साथ दिया. कागजी कार्रवाई पूरी हुई और सुमित को ऑन पेपर शिवदासपुर गोद मिल गया. यहां पर सुमित ने काम शुरू किया तो, उसका दिमाग थोड़ा सा चेंज होने लगा.

सुमित का कहना है कि उसे इस बात की जानकारी नहीं थी कि शिवदासपुर रेड लाइट एरिया है. यहां के 10- 12 मकान की वजह से पूरा का पूरा इलाका बदनाम था. लोग यहां पर रहना नहीं चाहते थे और युवा नशे की लत में पड़ते जा रहे थे. जिसके बाद यहां के कुछ लोकल लड़कों के साथ सुमित ने यहां मुहिम शुरू की. यहां पहली बार जन चौपाल का आयोजन हुआ. जिसमें तत्कालीन मंत्री और विधायक नीलकंठ तिवारी ने लोगों की समस्याओं को सुना.

यहां की रेड लाइट एरिया में रहने वाली सेक्स वर्कर्स की भी समस्याओं को सुना गया और निस्तारण हुआ. जिसके बाद लोग सुमित से जुड़ते चले गए. सुमित ने बताया कि हम कई-कई रात इस गांव में बिताते थे. लोगों को समझाना, बड़े बुजुर्गों के साथ बैठकर युवाओं को नशे की लत से दूर करने का प्रयास करना. यह हमारी दिनचर्या में शामिल हो गया.

तीन साल तक हमने इस गांव में खूब मेहनत की, जिसका नतीजा हुआ कि लगभग 2 से 3 दर्जन की संख्या में युवाओं ने नशे की लत को छोड़कर हमारे साथ जुड़कर इस मुहिम में समर्थन करने के लिए प्रयास शुरू किया.

सुमित बताते हैं कि उनके इस प्रयासों का नतीजा था कि 2020 में केंद्र सरकार की तरफ से उन्हें नशा उन्मूलन समिति का एडवाइजर बनाया गया. वह हाल ही में दूसरी बार इस केंद्र सरकार की समिति के एडवाइजर के तौर पर नियुक्त हुए हैं. जिसमें देश भर में 570 नशा उन्मूलन केंद्रों पर जाना. वहां पर नशे के आदि लोगों को नशे से दूर करना उनके परिवारों से मुलाकात करके उनकी समस्याओं को सुनना यह सारा काम किया जाता है.

सुमित कहते हैं कि हमारे काम करने का तरीका थोड़ा अलग है. हम युवाओं से मिलते हैं और युवाओं को ही इस बुरी आदत से दूर करने पर काम करने के लिए मजबूर करते हैं. मर चुकी और सूख चुकी पुरानी जड़ों और पेड़ पौधों यानी बुजुर्गों पर हम अगर प्रयास करेंगे तो वह नशा नहीं छोड़ेंगे, लेकिन अभी-अभी तैयार हो रही नई फसल और नए पौधे यानी युवाओं पर यदि हम काम करेंगे तो उनको समझा कर हम नशे से दूर कर सकते हैं. इसलिए हमने युवाओं को ही नशे से दूर करने के लिए प्रयास शुरू किया और प्रयास सफल भी हो रहा है.

सुमित का यह प्रयास पहले वाराणसी और आसपास तक सीमित था लेकिन 2022 के बाद सुमित के मन में बड़ा विचार आया. उन्होंने देश भ्रमण करते हुए लिए नशा मुक्ति उन्मूलन यात्रा की शुरुआत की. पहली यात्रा 45 दिनों में पूरी हुई जो लगभग 15000 किलोमीटर की थी.

इस यात्रा में उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, हरियाणा, मध्य प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, गुजरात, समेत अन्य हिस्सों में जाकर सुमित ने यहां के मुख्यमंत्री और राज्यपालों से मुलाकात की और नशा उन्मूलन की दिशा में बड़े-बड़े इंस्टीट्यूट के साथ मिलकर कार्यक्रम की है. जहां हजारों की संख्या में युवाओं को जोड़कर नशे से दूर रखने का संदेश देते हुए अपनी टीम का हिस्सा बनाने का काम किया गया.

सुमित का कहना है कि इस यात्रा के बाद हमें उस हिस्से पर भी ध्यान देना था जो भारत का हिस्सा तो है लेकिन दूर है. यानी पूर्वोत्तर, सेवेन सिस्टर्स वाले राज्यों में त्रिपुरा, मेघालय, असम, नागालैंड समेत अन्य अलग-अलग राज्यों में जाकर सुमित ने काम शुरू किया. यहां भी उनकी यह यात्रा पहुंची.

सबसे बड़ी बात यह है कि सातों राज्यों के राज्यपाल ने उन्हें पूरा समर्थन दिया. यात्रा में उनके साथ वह भी खड़े हुए और युवाओं की बड़ी टीम जुड़कर सुमित के इस प्रयास को आगे बढ़ाने में लग गई. सुमित बताते हैं कि उनका प्रयास तभी सफल हुआ जब उनके टीम में शामिल कई मेंबर ने नशा छोड़कर उनके साथ जुड़ने की इच्छा जाहिर करते हुए उनके साथ देना शुरू किया.

सुमित बताते हैं कि वह एक संस्था जरूर चला रहे हैं, लेकिन सरकारी मदद से दूर हैं उनकी टीम में कई ऐसे लड़के हैं जो परिवार से मजबूत है. इसके अलावा कई प्राइवेट इंस्टिट्यूट और संस्थाओं के बल पर भी उनका यह प्रोजेक्ट आगे बढ़ रहा है. उन्हें खुलकर लोग समर्थन देते हैं. फंडिंग की कमी नहीं होती है.

फंड रेज करने के साथ ही अलग-अलग दिशा में कार्यक्रम करते हुए युवाओं को जागरूक करने, उनसे लगातार संपर्क बनाए रखने के साथ ही उन्हें नशे से दूर करने के लिए नशा उन्मूलन केंद्र पर भेजना, उनकी निगरानी करना और उनके परिवार के साथ मिलकर उन्हें समझना यह सारे काम करते हुए वह युवाओं को नशे से दूर करने का प्रयास करते हैं.

सुमित बताते हैं कि उन्होंने G20 की तर्ज पर D30 का आयोजन भी किया. 2023 में दिल्ली में उन्होंने दी 30 का आयोजन किया. जिसमें दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम में नशे से परेशान 30 देश के ढाई सौ से ज्यादा प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया. इसमें रिसर्च स्कॉलर, बड़े प्रोफेसर, डॉक्टर और नशा उन्मूलन की दिशा में काम करने वाली संस्थाओं के लोगों को आमंत्रित किया गया था.

अगला कार्यक्रम नवंबर के महीने में वह नेपाल में करने जा रहे हैं. जिसमें D30 यानी नशे की गिरफ्त में आने वाले 30 देश के प्रतिनिधियों को फिर से एकजुट करके नशा मुक्ति की दिशा में बड़ा प्रयास किया जा सके.

सुमित का कहना है कि काम मुश्किल है, लेकिन करना होगा क्योंकि 29 साल की अवस्था में आज मैं नशा मुक्ति की दिशा में एक बड़ी मुहिम को खड़ा कर दिया है. अब जरूरत है. इस मुहिम को और मजबूत करने की जिसमें युवाओं का साथ ही जरूरी है और मैं इसलिए पूरे देश में घूम-घूम कर युवाओं का समर्थन मांग रहा हूं, क्योंकि युवा जागरुक होंगे तो नशा मुक्त भारत का सपना पूरा होगा.

महात्मा बुद्ध के पंचशील सिद्धांतों में नशा मुक्ति भी शामिल है. उनके सिद्धांतों को ही मैं आधार बनाते हुए महात्मा गांधी से सीख ली है कि नशा उचित नहीं है. इसलिए गांधी और बुद्ध के सिद्धांतों के आधार पर मैं युवाओं को एकजुट करके नशा मुक्ति की दिशा में बड़ा काम करना चाह रहा हूं.

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Last Updated : Jul 20, 2024, 6:55 PM IST
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