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वाटर सेस कमीशन में पानी की तरह बह गया सुखविंदर सरकार का डेढ़ करोड़, वकील की एक दिन की 34 लाख फीस भी नहीं आई काम

Himachal Water Cess Case In High Court: हिमाचल हाईकोर्ट से वाटर सेस मामले में सुक्खू सरकार को बड़ा झटका लगा है. हाईकोर्ट में सरकार वाटर सेस केस हार गई. जबकि इस केस को जीतने के लिए सरकार ने डेढ़ करोड़ की रकम खर्च की थी जो अब पानी में बह गया है. पढ़िए पूरी खबर...

वाटर सेस कमीशन
वाटर सेस कमीशन
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Mar 5, 2024, 8:57 PM IST

Updated : Mar 7, 2024, 1:25 PM IST

शिमला: वाटर सेस केस में सुखविंदर सरकार की हार उसके लिए दोहरे झटके की तरह मानी जाएगी. एक तो सरकार केस हार गई, ऊपर से वाटर सेस कमीशन पर अब तक खर्च की गई डेढ़ करोड़ की रकम भी डूब गई. यही नहीं, दुष्यंत दवे जैसे वकील को एक हियरिंग में अपीयर होने के लिए चुकाए गए 34 लाख भी किसी काम नहीं आए. इस तरह से हाईकोर्ट में केस हारने से सुखविंदर सरकार को कई झटके लगे हैं.

सत्ता में आने के बाद सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार ने कर्ज में डूबे प्रदेश के खजाने को भरने के लिए वाटर सेस लगाने का फैसला लिया था. सरकार को उम्मीद थी कि वाटर सेस लगाने के बाद एक साल में ही कम से कम ₹800 से 1000 करोड़ की कमाई हो जाएगी, लेकिन यहां सुखविंदर सरकार की किस्मत दगा दे गई. जिस अभिषेक मनु सिंघवी को कांग्रेस हाईकमान हिमाचल से राज्यसभा भेजना चाहता था, उसी सिंघवी ने वाटर सेस वाले केस में पावर कंपनी की पैरवी की.

सिंघवी ने जेएसडब्ल्यू कंपनी की तरफ से हिमाचल हाईकोर्ट में सुखविंदर सिंह सरकार के खिलाफ केस लड़ा. उधर, मामला बहुत ही संवेदनशील होने के कारण सुखविंदर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के एक बड़े वकील दुष्यंत दवे को केस की पैरवी के लिए उतारा. दवे की फीस के रूप में हिमाचल सरकार ने 34 लाख रुपए भी चुकाए, लेकिन ये पैसा एक तरह से पानी की तरह बह गया. अब हालत ये है कि सुखविंदर सिंह सरकार ने वाटर कमीशन पर अब तक डेढ़ करोड़ रुपए से अधिक खर्च कर दिए हैं. इसमें चेयरमैन से लेकर अन्य सदस्यों के वेतन, ऑफिस एक्सपेंडिचर आदि का खर्च शामिल है.

अब ये सारा खर्च पानी में डूब गया है. सरकार को 34.75 करोड़ रुपए से अधिक का सेस कंपनियों से मिला था. ये वाटर सेस वापिस करना होगा. वाटर सेस कमीशन की कमान रिटायर्ड आईएएस अमिताभ अवस्थी को दी गई थी. सरकार ने उनके वेतन पर ₹6.93 लाख रुपए खर्च किए. आयोग के तीन सदस्यों के वेतन पर ₹19.49 लाख रुपए खर्च हुए. फिलहाल, सरकार इस फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकती है. हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने विधानसभा में विधेयक लाकर वाटर सेस कानून बनाने को असंवैधानिक करार दिया है. सरकार के पास इस फैसले को चुनौती देने का विकल्प खुला है.

इस केस में कई दिलचस्प पहलू देखने को मिले. राज्य सरकार ने जब विधानसभा में विधेयक लाकर वाटर सेस लागू करने का फैसला लिया तो दावा किया गया कि पानी स्टेट सब्जेक्ट है और ऐसा कानून बनाने का संबंधित राज्य को हक है. बाद में केंद्र सरकार के ऊर्जा मंत्रालय से एक चिट्ठी आई और सरकारों के मुख्य सचिवों को कहा गया कि वाटर सेस लगाने वाला कानून न बनाएं. वहीं, हरियाणा सरकार व पंजाब सरकार भी अड़ गई कि वो इस कानून का विरोध करेंगी.

राज्य सरकार ने पंजाब व हरियाणा को मनाने का असफल प्रयास किया. फिर हिमाचल सरकार ने वाटर सेस कमीशन बना दिया. कमीशन में नियुक्तियां हो गई और कुछ कंपनियों ने वाटर सेस जमा करवाना शुरू कर दिया. राज्य सरकार उत्साहित हो गई कि अब रेवेन्यू जुटाने का मामला सिरे चढ़ने लगेगा. इस बीच, कई पावर कंपनियां हाईकोर्ट चली गई थीं. एक कंपनी जेएसडब्ल्यू की तरफ से वकील अभिषेक मनु सिंघवी थे. सिंघवी एक तरह से केस जीत गए. कांग्रेस नेता होते हुए भी वे कांग्रेस सरकार के खिलाफ केस लड़े थे. वे राज्यसभा सीट के कांग्रेस से उम्मीदवार थे.

वहीं, राज्य सरकार के केस हारने पर बागी नेता सुधीर शर्मा ने अदालती फैसले की सराहना की. एक तरह से जिन सुधीर शर्मा ने सिंघवी के खिलाफ वोट डाला, वो उन्हीं के द्वारा जीते गए केस को लेकर अदालत की सराहना कर रहे हैं. इस तरह वाटर सेस केस में कई रोचक पहलू देखने को मिले हैं. फिलहाल सुखविंदर सरकार का सपना पानी में मिल गया है, वैसे मुहावरा सपना मिट्टी में मिलने का है. खैर, आने वाले समय में सुक्खू सरकार इस पर आगे का कानूनी स्टेप लेगी.

ये भी पढ़ें: हिमाचल सरकार को बड़ा झटका, वाटर सेस कानून को असंवैधानिक बताते हुए हाईकोर्ट ने किया रद्द

शिमला: वाटर सेस केस में सुखविंदर सरकार की हार उसके लिए दोहरे झटके की तरह मानी जाएगी. एक तो सरकार केस हार गई, ऊपर से वाटर सेस कमीशन पर अब तक खर्च की गई डेढ़ करोड़ की रकम भी डूब गई. यही नहीं, दुष्यंत दवे जैसे वकील को एक हियरिंग में अपीयर होने के लिए चुकाए गए 34 लाख भी किसी काम नहीं आए. इस तरह से हाईकोर्ट में केस हारने से सुखविंदर सरकार को कई झटके लगे हैं.

सत्ता में आने के बाद सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार ने कर्ज में डूबे प्रदेश के खजाने को भरने के लिए वाटर सेस लगाने का फैसला लिया था. सरकार को उम्मीद थी कि वाटर सेस लगाने के बाद एक साल में ही कम से कम ₹800 से 1000 करोड़ की कमाई हो जाएगी, लेकिन यहां सुखविंदर सरकार की किस्मत दगा दे गई. जिस अभिषेक मनु सिंघवी को कांग्रेस हाईकमान हिमाचल से राज्यसभा भेजना चाहता था, उसी सिंघवी ने वाटर सेस वाले केस में पावर कंपनी की पैरवी की.

सिंघवी ने जेएसडब्ल्यू कंपनी की तरफ से हिमाचल हाईकोर्ट में सुखविंदर सिंह सरकार के खिलाफ केस लड़ा. उधर, मामला बहुत ही संवेदनशील होने के कारण सुखविंदर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के एक बड़े वकील दुष्यंत दवे को केस की पैरवी के लिए उतारा. दवे की फीस के रूप में हिमाचल सरकार ने 34 लाख रुपए भी चुकाए, लेकिन ये पैसा एक तरह से पानी की तरह बह गया. अब हालत ये है कि सुखविंदर सिंह सरकार ने वाटर कमीशन पर अब तक डेढ़ करोड़ रुपए से अधिक खर्च कर दिए हैं. इसमें चेयरमैन से लेकर अन्य सदस्यों के वेतन, ऑफिस एक्सपेंडिचर आदि का खर्च शामिल है.

अब ये सारा खर्च पानी में डूब गया है. सरकार को 34.75 करोड़ रुपए से अधिक का सेस कंपनियों से मिला था. ये वाटर सेस वापिस करना होगा. वाटर सेस कमीशन की कमान रिटायर्ड आईएएस अमिताभ अवस्थी को दी गई थी. सरकार ने उनके वेतन पर ₹6.93 लाख रुपए खर्च किए. आयोग के तीन सदस्यों के वेतन पर ₹19.49 लाख रुपए खर्च हुए. फिलहाल, सरकार इस फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकती है. हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने विधानसभा में विधेयक लाकर वाटर सेस कानून बनाने को असंवैधानिक करार दिया है. सरकार के पास इस फैसले को चुनौती देने का विकल्प खुला है.

इस केस में कई दिलचस्प पहलू देखने को मिले. राज्य सरकार ने जब विधानसभा में विधेयक लाकर वाटर सेस लागू करने का फैसला लिया तो दावा किया गया कि पानी स्टेट सब्जेक्ट है और ऐसा कानून बनाने का संबंधित राज्य को हक है. बाद में केंद्र सरकार के ऊर्जा मंत्रालय से एक चिट्ठी आई और सरकारों के मुख्य सचिवों को कहा गया कि वाटर सेस लगाने वाला कानून न बनाएं. वहीं, हरियाणा सरकार व पंजाब सरकार भी अड़ गई कि वो इस कानून का विरोध करेंगी.

राज्य सरकार ने पंजाब व हरियाणा को मनाने का असफल प्रयास किया. फिर हिमाचल सरकार ने वाटर सेस कमीशन बना दिया. कमीशन में नियुक्तियां हो गई और कुछ कंपनियों ने वाटर सेस जमा करवाना शुरू कर दिया. राज्य सरकार उत्साहित हो गई कि अब रेवेन्यू जुटाने का मामला सिरे चढ़ने लगेगा. इस बीच, कई पावर कंपनियां हाईकोर्ट चली गई थीं. एक कंपनी जेएसडब्ल्यू की तरफ से वकील अभिषेक मनु सिंघवी थे. सिंघवी एक तरह से केस जीत गए. कांग्रेस नेता होते हुए भी वे कांग्रेस सरकार के खिलाफ केस लड़े थे. वे राज्यसभा सीट के कांग्रेस से उम्मीदवार थे.

वहीं, राज्य सरकार के केस हारने पर बागी नेता सुधीर शर्मा ने अदालती फैसले की सराहना की. एक तरह से जिन सुधीर शर्मा ने सिंघवी के खिलाफ वोट डाला, वो उन्हीं के द्वारा जीते गए केस को लेकर अदालत की सराहना कर रहे हैं. इस तरह वाटर सेस केस में कई रोचक पहलू देखने को मिले हैं. फिलहाल सुखविंदर सरकार का सपना पानी में मिल गया है, वैसे मुहावरा सपना मिट्टी में मिलने का है. खैर, आने वाले समय में सुक्खू सरकार इस पर आगे का कानूनी स्टेप लेगी.

ये भी पढ़ें: हिमाचल सरकार को बड़ा झटका, वाटर सेस कानून को असंवैधानिक बताते हुए हाईकोर्ट ने किया रद्द

Last Updated : Mar 7, 2024, 1:25 PM IST
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