शिमला: हिमाचल प्रदेश की सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार सीपीएस मामले में हाइकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख करेगी. दरअसल बुधवार को हाइकोर्ट ने हिमाचल प्रदेश सीपीएस एक्ट को निरस्त कर दिया है. जिसके बाद सीपीएस को अपने पद और सुविधाओं को छोड़ना होगा. हिमाचल सरकार के एडवोकेट जनरल अनूप रतन ने बताया कि सरकार ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में SLP दाखिल करने का निर्णय लिया है. राज्य सरकार का मानना है कि असम के विमलांशु राय केस से हिमाचल का सीपीएस एक्ट अलग है लिहाजा हिमाचल सरकार हाइकोर्ट के फैसले को SLP के जरिये सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी.
एडवोकेट जनरल अनूप रतन ने बताया कि "CPS से जुड़ा हिमाचल प्रदेश का एक्ट असम से बिल्कुल भिन्न है. असम में सीपीएस को मंत्रियों की पावर थी और फाइलों पर हस्ताक्षर कर सकते थे लेकिन हिमाचल में सीपीएस को मंत्री की पावर नहीं थी. वो सिर्फ मंत्री को सलाह दे सकते थे. हम बहुत जल्द सुप्रीम कोर्ट का रुख करेंगे और इस मामले की जल्द सुनवाई की अपील भी करेंगे"
सीपीएस मामले में हिमाचल प्रदेश हाइकोर्ट में सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने दलील दी थी कि याचिकाकर्ता बीजेपी विधायक सतपाल सिंह सत्ती एक समय में खुद भी भाजपा सरकार के दौरान मुख्य संसदीय सचिव रह चुके हैं. वीरभद्र सरकार के समय ये एक्ट बना था और पहले भी हिमाचल में सीपीएस की नियुक्ति होती रही है. हालांकि 2017 से 2022 के बीच भाजपा सरकार के दौरान सीपीएस नहीं बनाए गए थे. गौरतलब है कि बीजेपी की ओर से पहले डिप्टी सीएम के पद को भी चुनौती दी गई थी लेकिन बाद में उस याचिका को वापस ले लिया गया था.
एडवोकेट जनरल अनूप रतन ने बताया कि "सीपीएस मामले पर हिमाचल प्रदेश हाइकोर्ट ने असम के विमलांशु राय केस में सुप्रीम कोर्ट की जजमेंट की तर्ज पर फैसला लिया है. हाइकोर्ट कोर्ट ने मुख्य संसदीय सचिव और संसदीय सचिव एक्ट 2006 की वैधता को खत्म कर दिया है. इस फैसले के साथ ही ये पद समाप्त हो गए हैं और उन सुविधाओं को वापस लेने का आदेश भी कोर्ट ने दिया है. इस फैसले के खिलाफ जल्द ही हिमाचल सरकार सुप्रीम कोर्ट का रुख करेगी."