बेतिया: बिहार की बेटी श्वेता शाही ने संघर्षों से अपना मुकाम बनाया है. आज वो स्पोर्ट्स कोटे से बिहार पुलिस में दारोगा हैं. उन्होंने बिहार सरकार के मेडल लाओ नौकरी पाओ स्कीम की तारीफ की और कहा कि अगर आपमें खेलने का जज्बा है तो आप खेलकर भी मेरी तरह नौकरी हासिल कर सकते हो. आज वो जिस शिखर पर हैं उसे पाने के लिए संघर्षों की भट्टी में तपना पड़ता है.
बिहार पुलिस में दारोगा बनी श्वेता: श्वेता शाही नालंदा जिले के सिलाव की रहने वाली हैं. उनकी पोस्टिंग दारोगा के रूप में बेतिया में हुई. एक किसान परिवार में जन्मी श्वेता शाही एशिया के विभिन्न देशों में अपना लोहा मनवा चुकी हैं. उनकी इसी उपलब्धि पर बिहार सरकार ने उन्हें 25 लाख का पुरस्कार देकर सम्मानित भी किया.
'लोगों की नहीं अपनी सुनो': श्वेता शाही बताती हैं कि उन्हें देश सेवा और समाज सेवा में आनंद आ रहा है. उन्होंने अपने संघर्षों के बारे में बताया कि उन्होंने सिर्फ खेल पर फोकस किया और उनके पिता ने समाज के तानों से उन्हें दूर रखा. उन्होंने कहा कि जब गांव में वो हाफ पैंट पहनकर दौड़ा करतीं थी तो लोग भद्दे-भद्दे कमेंट करते थे. लेकिन उनके पिता ने कभी उनपर ध्यान नहीं दिया.
''मेरी कामयाबी के पीछे मेरे पिता का सबसे बड़ा हाथ है. मेरे पिता को गांव के लोग ताना मारते थे. पिता ने इसकी तनिक भी परवाह नहीं की और मेरे साथ कदम से कदम मिलाकर चलते रहे. पिता का साथ मिला और आज मैंने यह मुकाम हासिल कर लिया.'' - श्वेता शाही, दारोगा, बिहार पुलिस
'पिता ने बनाया कामयाब': दारोगा श्वेता ने पिता को अपनी कामयाबी का श्रेय देते हुए कहा कि लोक-लाज के कारण हम रात को 3:00 बजे उठते थे. मेरे साथ मेरे पिता भी दौड़ने जाते थे और सुबह होते ही 5:00 बजे तक अंधेरा खत्म होने से पहले ही अपने घर पर चले आते थे. क्योंकि लोग मेरे पिता को ताना मारते थे कि बेटी को लेकर सुबह-सुबह दौड़ते हैं. लेकिन मेरे पिता ने इसकी परवाह नहीं की और हर कदम वह मेरे साथ रहे. मेरे पिता मेरे लिए मजबूती से खड़े रहे.
गांव की गलियों से शुरू किया सफर: गांव की गलियों में छोटे से मैदान से शुरू किया सफर आज श्वेता देश के लिए विदेशी ग्राउंड पर खेल रही हैं. कभी उनको गांव में हाफ पैंट पर प्रैक्टिस करता देख लोग ताने मारते थे, लोग तब पूछा करते थे कि न जाने अपनी बेटी को क्या बनाएगा. आज श्वेता की सफलता ने उन सभी सवालों का जवाब दे दिया. आज बताने की जरूरत नहीं क्योंकि श्वेता आज युवाओं के लिए एक रोल मॉडल बन चुकी हैं.
''खेल ने मेरी पूरी जिंदगी बदल दी और आज मैं मेडल लेकर आई और 'मेडल लाओ, नौकरी पाओ' के तहत मैं 25 अगस्त 2024 को मुझे सरकारी नौकरी मिली वह भी बिहार पुलिस में. आज मैं पश्चिम चंपारण जिले के बेतिया में सब-इंस्पेक्टर के पद पर कार्यरत हूं. जो मेरे लिए बड़े गर्व की बात है कि खेल के साथ-साथ मुझे देश सेवा का भी मौका मिला है.''- श्वेता शाही, दारोगा, बिहार, पुलिस
क्या कहते हैं श्वेता शाही के पिता: श्वेता के पिता सुजीत शाही ने कहा कि को इस मुकाम पर पहुंचाने के लिए उन्हें बहुत कुछ सहना पड़ा. लोगों के ताने सुनने पड़े. जब मैं घर से निकलता था तो लोग ताने मारते थे. आज बेटी मेरी कामयाब हो गई है, तो वही लोग मिलने के लिए तरसते हैं.
''हमारे यहां कोई खेल ग्राउंड नहीं है. ना ही कोई संसाधन था. लेकिन मैं कभी भी संसाधन का रोना नहीं रोया और अपनी बेटी का साथ दिया. बिना संसाधन के ही मैं अपनी बेटी को लेकर यहां तक पहुंचा. आज उसने देश और बिहार का नाम रोशन किया. मुझे अपनी बेटी पर गर्व है.''- सुजीत कुमार शाही, श्वेता शाही के पिता
'बेटिया बोझ नहीं, एक मौका तो दीजिए': एक पिता के लिए इससे बड़े गर्व की बात और क्या हो सकती है कि आज मेरी बेटी बिहार ही नहीं, देश ही नहीं बल्कि विदेश में तक जाकर खेल चुकी है और नाम रोशन कर चुकी है. बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने तीन-तीन बार मेरी बेटी को सम्मान दिया. इनाम दिया. इससे बड़ी बात एक पिता के लिए गर्व क्या होगी. बेटी को बोझ नहीं समझना चाहिए.
श्वेता शाही का शानदार सफर: दारोगा श्वेता शाही को वर्ष 2023 में चीन के हैग्जहऊ में आयोजित एशियन गेम्स में 7वां स्थान प्राप्त हुआ. जबकि दोहा कतर में 2023 में आयोजित एशियन वुमेन सातवीं रग्बी ट्रॉफी में दूसरा स्थान. वर्ष 2019 और 2022 में इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में आयोजित एशियन वुमेन सातवीं रग्बी ट्रॉफी दूसरा स्थान मिला. वहीं फिलिपिंस राजधानी मनिला में उन्होंने तीसरा स्थान प्राप्त किया था. 2016 में UAE की राजधानी दुबई में आयोजित अंडर-18 गर्ल्स रग्बी चैम्पियनशिप में तीसरा स्थान प्राप्त किया था. इसके अलावे श्वेता शाही लगभग दो दर्जन से ज्यादा राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भी हिस्सा ले चुकी हैं.