जगदलपुर: छत्तीसगढ़ का बस्तर हमेशा से ही स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर जूझता रहा है. बस्तर में संभाग का सबसे बड़ा मेडिकल कॉलेज खोला गया पर अस्पताल में डॉक्टरों की कमी हमेशा बनी रही.लेकिन अब बस्तर का बेटा ही बस्तर के लोगों की मुश्किल दूर करने न्यूरोसर्जन बनकर अस्पताल आया है.
सुकमा का बेटा बना न्यूरोसर्जन: जगदलपुर मेडिकल कॉलेज में न्यूरोसर्जन के पद पर पदस्थ डॉक्टर का नाम पवन बृज है. वह सुकमा के बारसेरास गांव में पैदा हुए. प्रायमरी की पढ़ाई गांव में की. इसके बाद दंतेवाड़ा के मॉडल स्कूल में आगे की पढ़ाई की. बस्तर में लोगों को इलाज के लिए भटकते देख डॉक्टर बनने की सोची और इस राह पर चल पड़े. एमबीबीएस की पढ़ाई रायपुर के पंडित जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज से की. मास्टर ऑफ सर्जरी की पढ़ाई असम के डिब्रूगढ़ से की. कोर्स पूरा करने के बाद एमसीएच (सुपर स्पेशलिस्ट न्यूरोसर्जन) रायपुर के डीकेएस पीजीआई से की.
डॉक्टर बन कर बस्तर के लोगों का इलाज का था सपना: बस्तर का स्थानीय होने और यहां के लोगों को इलाज के लिए भटकते देखने के कारण शुरू से ही बस्तर के लोगों के इलाज का सपना देखा और इसी सपने को पूरा करने का उद्देश्य लेकर जगदलपुर मेडिकल कॉलेज में ड्यूटी शुरू की. पवन बृज का सपना है कि मरीजों को बस्तर के बाहर जाकर इलाज के लिए ना भटकना पड़े.
नक्सलगढ़ में ड्यूटी नहीं करना चाह रहे थे डॉक्टर: मेडिकल कॉलेज सह डिमरापाल अस्पताल में न्यूरोसर्जन की लगातार कमी चल रही थी. बस्तर में कोई भी न्यूरोसर्जन आना नहीं चाह रहे थे. ऐसे में बस्तर में लगातार होने वाले सड़क हादसे से लेकर दिमाग मे जमने वाले खून के थक्के को निकालने के लिए मरीजों को रायपुर या फिर विशाखापत्तनम जाना पड़ता था. कुछ दिनों पहले बस्तर के डिमरापाल अस्पताल में न्यूरोसर्जन डॉक्टर पवन बृज की नियुक्ति की गई. उनके आने के बाद से ही सप्ताहभर में छह मरीजों की न्यूरोसर्जरी की. जिसमें से तीन डिस्चार्ज होकर अपने घर भी जा चुके हैं.
जगदलपुर मेडिकल कॉलेज में न्यूरोसर्जन के आ जाने से सिर में चोट, रीढ़ की हड्डी का चोट, लकवा, कमर दर्द (सियाटिका/स्लिप डिस्क), मिर्गी के दौरे, हाथ पैर सुन्नपन, बच्चों के सिर का असामान्य रूप से बढ़ना, दिमाग की नस का फटना, ब्रेन स्ट्रोक बीमारियों का इलाज मेकाज में संभव हो गया.