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बिहार के इंजीनियर का कमाल! 'अब 11 लीटर दूध देने वाली गाय देगी 20 लीटर दूध', ऐसा आया आइडिया - Success Story - SUCCESS STORY

Healthy diet for animals: बिहार के अनूप आनंद वेस्ट फूड से पशु आहार बनाते हैं. आमतौर पर जूठन भोजन को फेंक दिया जाता है लेकिन अनूप आनंद ने इसे बचाने के लिए पहल शुरू की है. कंपनी का दावा है कि इस पशु आहार के खाने से दूध उत्पादन में बढ़ोतरी होगी. जानें क्या है वेस्ट फूड से बना यह पशु आहार?

Animal Feed From Waste Food
अनूप आनंद (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Aug 31, 2024, 7:25 AM IST

Updated : Aug 31, 2024, 1:38 PM IST

वेस्ट फूड से पशु आहार बनाने अनूप आनंद (ETV Bharat)

पटना : कहते हैं कि जीवन में ऐसा कोई टर्निंग पॉइंट होता है, जिसके बाद पूरा जीवन बदल जाता है. कुछ ऐसा ही हुआ बिहार के मोतिहारी के रहने वाले अनूप आनंद के साथ. अनूप आनंद पेशे से मैकेनिकल इंजीनियर हैं लेकिन उनके जीवन में ऐसा वाकया हुआ कि उन्होंने पूरी इंजीनियरिंग छोड़कर लोगों के बचे हुए जूठन खाने को इकट्ठा करने लगे और उससे बनाई एक बड़ी कंपनी.

बड़े काम का है ये वेस्ट फूड प्रोसेसिंग प्रोजेक्ट : यह कंपनी वेस्ट फूड की प्रोसेसिंग कंपनी है और इसको वेस्टेज फूड को प्रोसेस करके यह पशु आहार बनाते हैं. इनका दावा है की जो वेस्टेज फूड होते हैं उससे बने हुए पशु आहार काफी बेहतर होते हैं. इसे जब आपका पालतू जानवर खाएगा तो दोगुना दूध देगा. हालांकि अनूप आनंद अभी इसमें कई और प्रयोग कर रहे हैं, लेकिन उन्होंने पुख्ता तौर पर यह बताया कि जो हमारी यूनिट चल रही है उससे बहुत ज्यादा उत्पादन तो नहीं हो रहा है.

Animal Feed From Waste Food
अनूप आनंद का वेस्ट फूड प्रोसेसिंग प्रोजेक्ट (ETV Bharat)
अनूप आनंद बताते हैं कि ''यह कॉमन प्रैक्टिस है फूड वेस्ट. हमारे घर से लेकर आप कहीं भी देख सकते हैं. सब्जी मंडी में भी वेस्ट होता है. यह सभी न्यूट्रीशनल चीज है. बहुत सी ऐसी चीज हैं जो प्राय: आम आदमी को भी नहीं मिलती है.''

वेस्ट फूड खाना फेंकना गलतः होटल का खाना काफी न्यूट्रीशनल होता है. काजू, किशमिश और बहुत सारे मसाले होते हैं. वह फूड बच जाता है तो उसे फेंक देते हैं. उसे कलेक्ट करके कचरे में डाल दिया जाता है. यही होता रहा है पूरी दुनिया में. उस बचे हुए खाने को फेंक दिया जाता है. यह प्रकृति के लिए, वातावरण के लिए अच्छी चीज नहीं है. जैसे-जैसे सड़ना शुरू होता है बीमारियां फैलनी शुरू हो जाती हैं.

क्या है प्रोसेस?: अब तक जो प्रक्रिया ट्रेडिशनल होता रहा है, उसको प्रोसेस करके उसका इस्तेमाल किया जाता है. कमर्शियली इसके खरीददार नहीं मिलते हैं. ड्राई वेस्ट के लिए बहुत से प्राइवेट प्लेयर्स हैं. प्लास्टिक-पेपर को प्रोसेस करते हैं और नई-नई चीजें बना लेते है. उसमें वैल्यू एडिशन वेस्ट का बहुत बढ़िया है. उसमें प्राइवेट प्लेयर्स हैं लेकिन जो गीले वेस्टेज हैं, उससे खाद बनेगा जो ₹2 किलो मिलेगा और उसका कोई खरीदार नहीं मिलता है.

Animal Feed From Waste Food
वेस्ट फूड से पशु आहार (ETV Bharat)

वैल्यू एडिशन पर जोड़ देना: अनूप बताते हैं कि मैं हैदराबाद में इसको लेकर विजिट किया था, हैदराबाद वालों ने बहुत कम्पोस्ट बनाया था, अंबार लगा दिया था लेकिन, खेत में कोई लेने को तैयार नहीं था. मुफ्त में भी कोई नहीं ले रहा था. वह मिट्टी बन गया. कंपोस्ट वैल्यू का पीरियड होता है, 6 महीने 1 साल बाद मिट्टी बन जाता है फिर, हमने इसमें रिसर्च करना शुरू किया और फिर हमने इसमें सोचना शुरू किया कि इसमें वैल्यू एडिशन क्या हो सकता है.

ये भी पढ़ेंः इसे कहते हैं कामयाबी... 15 हजार की नौकरी छोड़ी, अब कर रहे हैं 10 करोड़ का टर्नओवर - Success Story

गाय और मछली के लिए फायदेमंदः बारीकी से जब हमने सब कुछ शुरू किया. प्रोडक्ट जब तैयार होना शुरू हुआ और हमने अपने पशुओं को देना शुरू किया. पहले मार्केट में नहीं दिया ताकि उसका क्या इफ़ेक्ट होगा. अपने पशुओं को खिलाया. अपनी गायों को देने के बाद मेरी खुद की गाय 12 लीटर दूध दिया करती थी वह, 18 से 22 लीटर दूध देने लगी. फिर हमने इसे मछली पर ट्राई किया तो मछली 4 महीने में ढाई सौ ग्राम की होती थी. वह 3 महीने में होना शुरू हो गया.

Animal Feed From Waste Food
बिहार के अनूप आनंद का आइडिया (ETV Bharat)

पोल्ट्री में भी फायदेमंदः पोल्ट्री में भी यह बहुत बेहतर काम करने लगा. इसका रीजन यही है कि यह बहुत न्यूट्रीशनल होता है. यह टेक्नोलॉजी है और इस टेक्नोलॉजी को हम पेटेंट कर रहे हैं. अभी पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू किया है इसको. मैंने सारी मशीन खुद से तैयार की है. खुद से बनाया है. जो छोटी-छोटी मशीन लगाई थी अब हमने बड़ी मशीन लगाई है. एक तरफ से फूड वेस्ट को हम लोग डालेंगे और दूसरी तरफ से पशु आहार निकलेगा. मेरा उद्देश्य यह है कि आज का वेस्ट जो है आज ही खत्म कर दिया जाए.

ये भी पढ़ेंः रिस्क लेकर छोड़ी नौकरी और खुद बना बॉस, आज 520 करोड़ टर्नओवर.. आखिर नवनीत सिंह ने ऐसा क्‍या किया? - Success Story

'पशु आहार में केमिकल नहीं' : अनूप आनंद बताते हैं कि जब हमने शुरू किया तो पटना नगर निगम ने थोड़ा इंक्रीज किया था. यहां एक बल्क वेस्ट जनरेटर होते हैं. बल्क वेस्ट जनरेटर का मतलब यह होता है कि जिनके यहां 100 किलों से ज्यादा वेस्ट निकलता है. जैसे बडे अपार्टमेंट में, बड़े होटल में ज्यादा वेस्टेज निकलता है. मेरे प्रोजेक्ट में कई होटल ने इंटरेस्ट लिया था.

बड़े होटल से इकट्ठा करते हैं वेस्ट फूडः मौर्य होटल, पनाश होटल, इन तमाम लोगों ने अपना वेस्ट देना शुरू किया था. हम अपनी गाड़ियां भेजते थे और वह कलेक्ट करके, हम अपना प्रोसेस करते हैं. मैं अपने पशु आहार में कोई भी केमिकल का यूज नहीं करता. देखिए, पशु के आहार के तौर पर हमने इसलिए शुरू किया क्योंकि ह्यूमन इंस्टाइन से एनिमल स्ट्रॉंग होता है. ये शुरू से होता रहा है कि जब घर में भोजन यदि थोड़ा कुछ खराब होता है तो, गाय या बकरी को दे देते हैं. हम लोगों ने इस पर रिसर्च शुरू किया.

6 महीना तक खराब नहीं होता पशु आहार : बाद में लैब में इसे टेस्ट कराया तो, रिजल्ट अच्छा आया था और उसमें न्यूट्रीशनल वैल्यू चेक किया था वह काफी बेहतर आए थे. हमारे प्रोडक्ट की जो लाइफ है वह 6 महीने की है. बरसात के दिनों में थोड़ा कम लाइफ होता है लेकिन, ड्राई जगह पर यह 6 महीना तक आराम से चलता है और पशु खा सकते हैं. हमने यह शुरुआत तो किया लेकिन, यह 500 से 1000 किलो तक का हम प्रोडक्ट निकाल पाते थे.

वेस्ट फूस से पशु आहार बनाने वाली कंपनी
वेस्ट फूस से पशु आहार बनाने वाली कंपनी (ETV Bharat)

''यह बड़ा प्रोजेक्ट है और हम चाह रहे हैं कि इसमें म्युनिसिपल भी सामने आए और इसमें बहुत बड़ा फायदा है. वेस्ट के लिए वह परेशान रहते हैं कि इसकी प्रोसेसिंग नहीं हो पाती है. यह प्रोसेसिंग हो सकती है. प्रोसेसिंग को लेकर रिक्वायर्ड यह होता है कि उस टेक्नोलॉजी को समझने वाला कोई हो और उसको इंप्लीमेंट करने वाला है, उनकी यह चाहत होनी चाहिए कि यह वेस्ट स्टोर नहीं करना है, इसको रिड्यूस करना है.''- अनूप आनंद

रोज एक टन से ज्यादा वेस्टेज : हम लोगों ने इतना काम कर लिया है कि आज का वेस्ट 24 घंटे के अंदर अगले दिन के कलेक्शन के पहले खत्म किया जा सकता है. देखिए पटना नगर निगम के पास जो डाटा है उनके पास हजार से ज्यादा ब्लक वेस्ट जनरेटर हैं. जब हम लोग कलेक्ट करते हैं तो होटल मौर्य और पनाश का 1 टन से ऊपर वेस्टेज जाता है.

पशुपति पशु आहार ही क्यों? : अनूप आनंद आगे बताते है कि देखिए, यह एनिमल से रिलेटेड था और हम लोग हिंदू हैं और हिंदू धर्म में भगवान शंकर को सबके देवता हैं. पशुपति पशु आहार के नाम से इसको इंट्रोड्यूस किया और यह प्रोडक्ट वाकई बहुत अच्छा निकला. अभी तक इसको कमर्शियल हम लोगों ने किया नहीं है. आज कोई 100 बैग मांगते हैं तो हम 10 बैग दे पाते हैं. हम अभी इसको बदल बदल कर अलग अलग लोगों से उपयोग करा रहे हैं कि कहीं से कोई कंप्लेन आए तो, उसे पर काम किया जा सके. अभी कमाई कुछ हो नहीं पा रही है लेकिन उम्मीद है कि आने वाले समय में यह बेहतर काम करेगा.

ये भी पढ़ेंः बिहार के राकेश से मिलिए, अखबार बेचते-बेचते प्रोफेसर बन गए, जानें संघर्ष की कहानी - SUCCESS STORY

'मैं बायोलॉजी, बायोकेमेस्ट्री पढ़ने लगा' : ''2017 में जब हमने अपने पेरेंट्स का 58th एनिवर्सरी मनाया था. उस समय फूड वेस्ट बहुत ज्यादा बचा हुआ था. उस फूड वेस्ट को हम लोग चाहते थे कहीं कंज्यूम हो जाए और इसे पड़ोसी को भी देना चाहा लेकिन, कोई इंटरेस्ट अपना शो नहीं कर रहा था. हमने दरिद्र नारायण को देना चाहा तो वहां भी बहुत नहीं ले पाए. बाद में उस फूड वेस्ट को फेंकना पड़ा. यह बहुत ही अखरा था. इतनी पौष्टिक चीज, इतनी अच्छी चीज, हम लोगों को फेंकना पडा, सब बर्बाद हो गया.

वेस्ट फूस से पशु आहार बनाने वाली कंपनी को मिला सर्टिफिकेट
वेस्ट फूस से पशु आहार बनाने वाली कंपनी को मिला सर्टिफिकेट (ETV Bharat)

''हमें लगा कि यह तो मेरे यहां की सिर्फ बात नहीं है. हमारे यहां तो एक दिन फंक्शन है. जहां रोज फंक्शन होते हैं मैरिज हॉल, बैंक्विट हॉल, होटल रेस्टोरेंट जहां रोज फंक्शन होते हैं, वहा तो बहुत फूड वेस्ट होता है. तब मुझे लगा कि इसमें कुछ करना चाहिए. हमने बहुत पढ़ाई की. मैकेनिकल इंजीनियर था. मैंने बायोलॉजी, बायोकेमेस्ट्री भी पढ़ने लगा. जहां-जहां जो जो चीज उपलब्ध थी, सब कुछ हमने पढ़ा. इंटरनेट पर सब कुछ उपलब्ध था और तब मुझे लगा कि यह सब चीज पॉसिबल हैं.''- अनूप आनंद

'पेटेंट के लिए अप्लाई किया' : हम लोगों ने ट्राई करना शुरू किया तो, शुरू में गाय खाती नहीं थी, कुत्ता, पक्षी कोई नहीं खा रहा था, डायरेक्टली वह खा नहीं रहे थे. फिर धीरे-धीरे हमने उसमें वैल्यू एड शुरू किया. फाइनल रिजल्ट पर हमारा प्रोजेक्ट सक्सेसफुल है. फिर हमने अप्लाई किया पेटेंट के लिए. फिर हमने मशीन बनाकर प्रोडक्शन करना शुरू किया. बहुत अच्छे रिजल्ट आने लगे.

अब बिहार सरकार से मदद की आस : अनूप बताते हैं कि इस वर्क के लिए बिहार सरकार ने उन्हें स्टार्टअप अवार्ड से सम्मानित भी किया है. वह पैसे भी दे रहे हैं लेकिन कुछ पैसे बाकी भी हैं. म्युनिसिपल वाले इसको अप्रिशिएट तो करते हैं लेकिन, जितनी सुविधा चाहिए यहां नहीं मिल पाती हैं.

प्रोसेसिंग बड़ी परेशानी : होटल वाले भी अप्रिशिएट करते हैं लेकिन, गवर्नमेंट रूल के मुताबिक उनके वेस्ट को खुद ही प्रोसेस करना है. यदि वह खुद नहीं कर सकते हैं तो किसी प्रोफेशनल से उसे प्रोसेसिंग कराना होता है. अब ऐसा है कि वह चाहते हैं कि हम फ्री ऑफ कॉस्ट जाकर उनका वेस्टेज उठाएं, यह सर्विस प्रोवाइड करूं तो, यह पॉसिबल नहीं है, यह चार्जेबल होगा. क्योंकि मैं अपनी गाड़ी भेजता हूं, मजदूर होते हैं, कर्मचारी होते हैं और प्रोसेस भी करना होता है.

इस तरह से ज्यादा प्रोसेस करने की जरूरत नहीं : हमारे यहां तो विजिट करने के लिए सारी टीम आती हैं. नगर निगम वाले भी अपनी टीम भेजते हैं कि काम हो रहा है कि नहीं. लोगों ने देखा कि यह कचरा उठाते हैं और पैसा भी लेते हैं तो, दूसरे लोगों ने कचरा उठाने शुरू कर दिये, पैसा भी लेते थे लेकिन, वह उस कचरे को डंपिंग यार्ड में फेंक देते है. क्योंकि उनके पास प्रोसेसिंग करने की कोई मशीन नहीं होती है. सोच है हम जो करना चाहते हैं उसमें यह हो सकता है कि वह अपने वेस्टेज को लाकर हमे दे दें, या फिर इसकी एक फीस होगी जो, उनके वेस्टेज को हम उठा पाएंगे यदि, सही समय पर और सही फूड वेस्टेज फूड पहुंचाते हैं तो, हमें ज्यादा प्रोसेस करने की जरूरत नहीं होती है.

'मशीन को खुद से बनाया' : हमने जो मशीन बनाई है वह गेम चेंजिंग मशीन है. हम लोग एक चुटकुला बोलते हैं ना कि 'इधर से आलू डालो उधर से सोना निकलेगा.' इस कॉन्सेप्ट पर इस मशीन को बनाया गया है. इधर से 'वेस्टेज डालो उधर से कंपोस्ट निकलेगा.' हम लोग अब फ्रेंचाइजी भी देना चाहते हैं कि कोई फ्रेंचाइजी यदि लेता है तो उन्हें हम सारी सुविधा मुहैया करेंगे. उनको ट्रेनिंग देंगे, जो उन्हें रिक्वायर्ड है वह रेगुलर बेसिस पर देंगे. इस प्रक्रिया में हम लोग उतरने की कोशिश में लगे हैं.

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वेस्ट फूड से पशु आहार बनाने अनूप आनंद (ETV Bharat)

पटना : कहते हैं कि जीवन में ऐसा कोई टर्निंग पॉइंट होता है, जिसके बाद पूरा जीवन बदल जाता है. कुछ ऐसा ही हुआ बिहार के मोतिहारी के रहने वाले अनूप आनंद के साथ. अनूप आनंद पेशे से मैकेनिकल इंजीनियर हैं लेकिन उनके जीवन में ऐसा वाकया हुआ कि उन्होंने पूरी इंजीनियरिंग छोड़कर लोगों के बचे हुए जूठन खाने को इकट्ठा करने लगे और उससे बनाई एक बड़ी कंपनी.

बड़े काम का है ये वेस्ट फूड प्रोसेसिंग प्रोजेक्ट : यह कंपनी वेस्ट फूड की प्रोसेसिंग कंपनी है और इसको वेस्टेज फूड को प्रोसेस करके यह पशु आहार बनाते हैं. इनका दावा है की जो वेस्टेज फूड होते हैं उससे बने हुए पशु आहार काफी बेहतर होते हैं. इसे जब आपका पालतू जानवर खाएगा तो दोगुना दूध देगा. हालांकि अनूप आनंद अभी इसमें कई और प्रयोग कर रहे हैं, लेकिन उन्होंने पुख्ता तौर पर यह बताया कि जो हमारी यूनिट चल रही है उससे बहुत ज्यादा उत्पादन तो नहीं हो रहा है.

Animal Feed From Waste Food
अनूप आनंद का वेस्ट फूड प्रोसेसिंग प्रोजेक्ट (ETV Bharat)
अनूप आनंद बताते हैं कि ''यह कॉमन प्रैक्टिस है फूड वेस्ट. हमारे घर से लेकर आप कहीं भी देख सकते हैं. सब्जी मंडी में भी वेस्ट होता है. यह सभी न्यूट्रीशनल चीज है. बहुत सी ऐसी चीज हैं जो प्राय: आम आदमी को भी नहीं मिलती है.''

वेस्ट फूड खाना फेंकना गलतः होटल का खाना काफी न्यूट्रीशनल होता है. काजू, किशमिश और बहुत सारे मसाले होते हैं. वह फूड बच जाता है तो उसे फेंक देते हैं. उसे कलेक्ट करके कचरे में डाल दिया जाता है. यही होता रहा है पूरी दुनिया में. उस बचे हुए खाने को फेंक दिया जाता है. यह प्रकृति के लिए, वातावरण के लिए अच्छी चीज नहीं है. जैसे-जैसे सड़ना शुरू होता है बीमारियां फैलनी शुरू हो जाती हैं.

क्या है प्रोसेस?: अब तक जो प्रक्रिया ट्रेडिशनल होता रहा है, उसको प्रोसेस करके उसका इस्तेमाल किया जाता है. कमर्शियली इसके खरीददार नहीं मिलते हैं. ड्राई वेस्ट के लिए बहुत से प्राइवेट प्लेयर्स हैं. प्लास्टिक-पेपर को प्रोसेस करते हैं और नई-नई चीजें बना लेते है. उसमें वैल्यू एडिशन वेस्ट का बहुत बढ़िया है. उसमें प्राइवेट प्लेयर्स हैं लेकिन जो गीले वेस्टेज हैं, उससे खाद बनेगा जो ₹2 किलो मिलेगा और उसका कोई खरीदार नहीं मिलता है.

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वेस्ट फूड से पशु आहार (ETV Bharat)

वैल्यू एडिशन पर जोड़ देना: अनूप बताते हैं कि मैं हैदराबाद में इसको लेकर विजिट किया था, हैदराबाद वालों ने बहुत कम्पोस्ट बनाया था, अंबार लगा दिया था लेकिन, खेत में कोई लेने को तैयार नहीं था. मुफ्त में भी कोई नहीं ले रहा था. वह मिट्टी बन गया. कंपोस्ट वैल्यू का पीरियड होता है, 6 महीने 1 साल बाद मिट्टी बन जाता है फिर, हमने इसमें रिसर्च करना शुरू किया और फिर हमने इसमें सोचना शुरू किया कि इसमें वैल्यू एडिशन क्या हो सकता है.

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गाय और मछली के लिए फायदेमंदः बारीकी से जब हमने सब कुछ शुरू किया. प्रोडक्ट जब तैयार होना शुरू हुआ और हमने अपने पशुओं को देना शुरू किया. पहले मार्केट में नहीं दिया ताकि उसका क्या इफ़ेक्ट होगा. अपने पशुओं को खिलाया. अपनी गायों को देने के बाद मेरी खुद की गाय 12 लीटर दूध दिया करती थी वह, 18 से 22 लीटर दूध देने लगी. फिर हमने इसे मछली पर ट्राई किया तो मछली 4 महीने में ढाई सौ ग्राम की होती थी. वह 3 महीने में होना शुरू हो गया.

Animal Feed From Waste Food
बिहार के अनूप आनंद का आइडिया (ETV Bharat)

पोल्ट्री में भी फायदेमंदः पोल्ट्री में भी यह बहुत बेहतर काम करने लगा. इसका रीजन यही है कि यह बहुत न्यूट्रीशनल होता है. यह टेक्नोलॉजी है और इस टेक्नोलॉजी को हम पेटेंट कर रहे हैं. अभी पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू किया है इसको. मैंने सारी मशीन खुद से तैयार की है. खुद से बनाया है. जो छोटी-छोटी मशीन लगाई थी अब हमने बड़ी मशीन लगाई है. एक तरफ से फूड वेस्ट को हम लोग डालेंगे और दूसरी तरफ से पशु आहार निकलेगा. मेरा उद्देश्य यह है कि आज का वेस्ट जो है आज ही खत्म कर दिया जाए.

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'पशु आहार में केमिकल नहीं' : अनूप आनंद बताते हैं कि जब हमने शुरू किया तो पटना नगर निगम ने थोड़ा इंक्रीज किया था. यहां एक बल्क वेस्ट जनरेटर होते हैं. बल्क वेस्ट जनरेटर का मतलब यह होता है कि जिनके यहां 100 किलों से ज्यादा वेस्ट निकलता है. जैसे बडे अपार्टमेंट में, बड़े होटल में ज्यादा वेस्टेज निकलता है. मेरे प्रोजेक्ट में कई होटल ने इंटरेस्ट लिया था.

बड़े होटल से इकट्ठा करते हैं वेस्ट फूडः मौर्य होटल, पनाश होटल, इन तमाम लोगों ने अपना वेस्ट देना शुरू किया था. हम अपनी गाड़ियां भेजते थे और वह कलेक्ट करके, हम अपना प्रोसेस करते हैं. मैं अपने पशु आहार में कोई भी केमिकल का यूज नहीं करता. देखिए, पशु के आहार के तौर पर हमने इसलिए शुरू किया क्योंकि ह्यूमन इंस्टाइन से एनिमल स्ट्रॉंग होता है. ये शुरू से होता रहा है कि जब घर में भोजन यदि थोड़ा कुछ खराब होता है तो, गाय या बकरी को दे देते हैं. हम लोगों ने इस पर रिसर्च शुरू किया.

6 महीना तक खराब नहीं होता पशु आहार : बाद में लैब में इसे टेस्ट कराया तो, रिजल्ट अच्छा आया था और उसमें न्यूट्रीशनल वैल्यू चेक किया था वह काफी बेहतर आए थे. हमारे प्रोडक्ट की जो लाइफ है वह 6 महीने की है. बरसात के दिनों में थोड़ा कम लाइफ होता है लेकिन, ड्राई जगह पर यह 6 महीना तक आराम से चलता है और पशु खा सकते हैं. हमने यह शुरुआत तो किया लेकिन, यह 500 से 1000 किलो तक का हम प्रोडक्ट निकाल पाते थे.

वेस्ट फूस से पशु आहार बनाने वाली कंपनी
वेस्ट फूस से पशु आहार बनाने वाली कंपनी (ETV Bharat)

''यह बड़ा प्रोजेक्ट है और हम चाह रहे हैं कि इसमें म्युनिसिपल भी सामने आए और इसमें बहुत बड़ा फायदा है. वेस्ट के लिए वह परेशान रहते हैं कि इसकी प्रोसेसिंग नहीं हो पाती है. यह प्रोसेसिंग हो सकती है. प्रोसेसिंग को लेकर रिक्वायर्ड यह होता है कि उस टेक्नोलॉजी को समझने वाला कोई हो और उसको इंप्लीमेंट करने वाला है, उनकी यह चाहत होनी चाहिए कि यह वेस्ट स्टोर नहीं करना है, इसको रिड्यूस करना है.''- अनूप आनंद

रोज एक टन से ज्यादा वेस्टेज : हम लोगों ने इतना काम कर लिया है कि आज का वेस्ट 24 घंटे के अंदर अगले दिन के कलेक्शन के पहले खत्म किया जा सकता है. देखिए पटना नगर निगम के पास जो डाटा है उनके पास हजार से ज्यादा ब्लक वेस्ट जनरेटर हैं. जब हम लोग कलेक्ट करते हैं तो होटल मौर्य और पनाश का 1 टन से ऊपर वेस्टेज जाता है.

पशुपति पशु आहार ही क्यों? : अनूप आनंद आगे बताते है कि देखिए, यह एनिमल से रिलेटेड था और हम लोग हिंदू हैं और हिंदू धर्म में भगवान शंकर को सबके देवता हैं. पशुपति पशु आहार के नाम से इसको इंट्रोड्यूस किया और यह प्रोडक्ट वाकई बहुत अच्छा निकला. अभी तक इसको कमर्शियल हम लोगों ने किया नहीं है. आज कोई 100 बैग मांगते हैं तो हम 10 बैग दे पाते हैं. हम अभी इसको बदल बदल कर अलग अलग लोगों से उपयोग करा रहे हैं कि कहीं से कोई कंप्लेन आए तो, उसे पर काम किया जा सके. अभी कमाई कुछ हो नहीं पा रही है लेकिन उम्मीद है कि आने वाले समय में यह बेहतर काम करेगा.

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'मैं बायोलॉजी, बायोकेमेस्ट्री पढ़ने लगा' : ''2017 में जब हमने अपने पेरेंट्स का 58th एनिवर्सरी मनाया था. उस समय फूड वेस्ट बहुत ज्यादा बचा हुआ था. उस फूड वेस्ट को हम लोग चाहते थे कहीं कंज्यूम हो जाए और इसे पड़ोसी को भी देना चाहा लेकिन, कोई इंटरेस्ट अपना शो नहीं कर रहा था. हमने दरिद्र नारायण को देना चाहा तो वहां भी बहुत नहीं ले पाए. बाद में उस फूड वेस्ट को फेंकना पड़ा. यह बहुत ही अखरा था. इतनी पौष्टिक चीज, इतनी अच्छी चीज, हम लोगों को फेंकना पडा, सब बर्बाद हो गया.

वेस्ट फूस से पशु आहार बनाने वाली कंपनी को मिला सर्टिफिकेट
वेस्ट फूस से पशु आहार बनाने वाली कंपनी को मिला सर्टिफिकेट (ETV Bharat)

''हमें लगा कि यह तो मेरे यहां की सिर्फ बात नहीं है. हमारे यहां तो एक दिन फंक्शन है. जहां रोज फंक्शन होते हैं मैरिज हॉल, बैंक्विट हॉल, होटल रेस्टोरेंट जहां रोज फंक्शन होते हैं, वहा तो बहुत फूड वेस्ट होता है. तब मुझे लगा कि इसमें कुछ करना चाहिए. हमने बहुत पढ़ाई की. मैकेनिकल इंजीनियर था. मैंने बायोलॉजी, बायोकेमेस्ट्री भी पढ़ने लगा. जहां-जहां जो जो चीज उपलब्ध थी, सब कुछ हमने पढ़ा. इंटरनेट पर सब कुछ उपलब्ध था और तब मुझे लगा कि यह सब चीज पॉसिबल हैं.''- अनूप आनंद

'पेटेंट के लिए अप्लाई किया' : हम लोगों ने ट्राई करना शुरू किया तो, शुरू में गाय खाती नहीं थी, कुत्ता, पक्षी कोई नहीं खा रहा था, डायरेक्टली वह खा नहीं रहे थे. फिर धीरे-धीरे हमने उसमें वैल्यू एड शुरू किया. फाइनल रिजल्ट पर हमारा प्रोजेक्ट सक्सेसफुल है. फिर हमने अप्लाई किया पेटेंट के लिए. फिर हमने मशीन बनाकर प्रोडक्शन करना शुरू किया. बहुत अच्छे रिजल्ट आने लगे.

अब बिहार सरकार से मदद की आस : अनूप बताते हैं कि इस वर्क के लिए बिहार सरकार ने उन्हें स्टार्टअप अवार्ड से सम्मानित भी किया है. वह पैसे भी दे रहे हैं लेकिन कुछ पैसे बाकी भी हैं. म्युनिसिपल वाले इसको अप्रिशिएट तो करते हैं लेकिन, जितनी सुविधा चाहिए यहां नहीं मिल पाती हैं.

प्रोसेसिंग बड़ी परेशानी : होटल वाले भी अप्रिशिएट करते हैं लेकिन, गवर्नमेंट रूल के मुताबिक उनके वेस्ट को खुद ही प्रोसेस करना है. यदि वह खुद नहीं कर सकते हैं तो किसी प्रोफेशनल से उसे प्रोसेसिंग कराना होता है. अब ऐसा है कि वह चाहते हैं कि हम फ्री ऑफ कॉस्ट जाकर उनका वेस्टेज उठाएं, यह सर्विस प्रोवाइड करूं तो, यह पॉसिबल नहीं है, यह चार्जेबल होगा. क्योंकि मैं अपनी गाड़ी भेजता हूं, मजदूर होते हैं, कर्मचारी होते हैं और प्रोसेस भी करना होता है.

इस तरह से ज्यादा प्रोसेस करने की जरूरत नहीं : हमारे यहां तो विजिट करने के लिए सारी टीम आती हैं. नगर निगम वाले भी अपनी टीम भेजते हैं कि काम हो रहा है कि नहीं. लोगों ने देखा कि यह कचरा उठाते हैं और पैसा भी लेते हैं तो, दूसरे लोगों ने कचरा उठाने शुरू कर दिये, पैसा भी लेते थे लेकिन, वह उस कचरे को डंपिंग यार्ड में फेंक देते है. क्योंकि उनके पास प्रोसेसिंग करने की कोई मशीन नहीं होती है. सोच है हम जो करना चाहते हैं उसमें यह हो सकता है कि वह अपने वेस्टेज को लाकर हमे दे दें, या फिर इसकी एक फीस होगी जो, उनके वेस्टेज को हम उठा पाएंगे यदि, सही समय पर और सही फूड वेस्टेज फूड पहुंचाते हैं तो, हमें ज्यादा प्रोसेस करने की जरूरत नहीं होती है.

'मशीन को खुद से बनाया' : हमने जो मशीन बनाई है वह गेम चेंजिंग मशीन है. हम लोग एक चुटकुला बोलते हैं ना कि 'इधर से आलू डालो उधर से सोना निकलेगा.' इस कॉन्सेप्ट पर इस मशीन को बनाया गया है. इधर से 'वेस्टेज डालो उधर से कंपोस्ट निकलेगा.' हम लोग अब फ्रेंचाइजी भी देना चाहते हैं कि कोई फ्रेंचाइजी यदि लेता है तो उन्हें हम सारी सुविधा मुहैया करेंगे. उनको ट्रेनिंग देंगे, जो उन्हें रिक्वायर्ड है वह रेगुलर बेसिस पर देंगे. इस प्रक्रिया में हम लोग उतरने की कोशिश में लगे हैं.

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Last Updated : Aug 31, 2024, 1:38 PM IST
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