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अरविंद की मौत के बाद नक्सलियों का टूटा भरोसा, कैसे बिखरने लगे माओवादी कमांडर, जानिए पूरी कहानी - Maoist Commander Arvind death

Maoist Commanders in Palamu. पलामू के बूढ़ापहाड़ में माओवादियों के टॉप कमांडर अरविंद की मौत के बाद सभी कमांडर बिखरते चले गए. इसके पीछे कई कारण रहे. चाहे वह वर्चस्व की लड़ाई हो, या लेवी के पैसों का लालच. जानिए अरविंद के मौत के बाद की पूरी कहानी.

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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Jul 8, 2024, 4:16 PM IST

Maoist Commanders in Palamu
ईटीवी भारत ग्राफिक्स इमेज (ईटीवी भारत)

पलामू: बूढ़ापहाड़ में अब माओवादियों का वर्चस्व पूरी तरह खत्म हो चुका है. पूरा इलाका अब सुरक्षाबलों के कब्जे में है. बूढ़ापहाड़ से माओवादियों के खात्मे की कोशिश तो काफी समय से की जा रही थी. लेकिन इसकी शुरुआत इसके कमांडर अरविंद की मौत के साथ हुई थी. 2018 में झारखंड-बिहार सीमा पर बूढ़ापहाड़ पर एक करोड़ रुपये का इनामी माओवादी देव कुमार सिंह उर्फ ​​अरविंद मारा गया था. अरविंद माओवादियों की केंद्रीय समिति का सदस्य होने के साथ-साथ पीएलजीए का सुप्रीम कमांडर भी था.

अरविंद की मौत माओवादियों के लिए एक दशक में सबसे बड़ा झटका थी. अरविंद की मौत के बाद माओवादी बिखर गए और आज वे झारखंड और बिहार में अपनी आखिरी सांसें गिन रहे हैं. सुरक्षा बलों ने बूढ़ापहाड़ पर कब्जा कर लिया है और माओवादी इलाके से भाग गए हैं. अरविंद मूल रूप से बिहार के जहानाबाद का रहने वाला था और माओवादियों की स्थापना और विलय में शामिल था.

अरविंद की मौत के बाद बदले गए कई कमांडर

देव कुमार सिंह उर्फ ​​अरविंद की मौत के बाद माओवादियों ने बूढ़ापहाड़ इलाके में कई कमांडरों को जिम्मेदारी सौंपी. लेकिन वर्चस्व की लड़ाई और पैसे के लालच में माओवादी कमांडर बिखरते चले गए. अरविंद की मौत के बाद माओवादियों ने झारखंड, बिहार और उत्तरी छत्तीसगढ़ की जिम्मेदारी तेलंगाना के टॉप कमांडर सुधाकरण और उसकी पत्नी को सौंपी थी. 2019-20 में सुधाकरण ने अपनी पूरी टीम के साथ तेलंगाना में सरेंडर कर दिया. उसके बाद मिथिलेश मेहता को कमान सौंपी गई, जिसे बिहार में गिरफ्तार कर लिया गया. मिथिलेश मेहता के बाद सौरव उर्फ ​​मार्कस बाबा को जिम्मेदारी दी गई, जिसे भी बिहार में गिरफ्तार कर लिया गया. इस दौरान माओवादियों ने विमल यादव और नवीन यादव को भी जिम्मेदारी सौंपी, लेकिन दोनों ने सरेंडर कर दिया.

"अरविंद की मौत तक सभी ने नियमों का पालन किया, अरविंद के मरते ही किसी ने किसी की नहीं सुनी. स्थानीय लोग सुधाकरण की भाषा नहीं समझ पाते थे. अरविंद की मौत के बाद विमल गांव वालों के बीच मशहूर हो गया था, लेकिन उसकी भी किसी ने नहीं सुनी. बूढ़ापहाड़ पर अपने आखिरी दिनों में मार्कस बाबा अकेला पड़ गया था. अरविंद और विमल के अलावा दूसरे कमांडरों ने स्थानीय ग्रामीणों को खूब परेशान किया." - सुलेमान, ग्रामीण, बूढ़ापहाड़ क्षेत्र

अरविंद की मौत के बाद कमांडरों में पैसे का लालच बढ़ गया था, सुधाकरण को समझने वाला कोई नहीं था. झारखंड और बिहार के माओवादी सुधाकरण को अपना कमांडर मानने को तैयार नहीं थे. कमांडरों में संगठन के बजाय दूसरों के प्रति समर्पण की भावना थी. अरविंद के करीबी कमांडरों को प्रताड़ित किया जा रहा था. - एक पूर्व माओवादी़

लेवी के लिए माओवादी कमांडरों का बना है अलग-अलग गुट

माओवादी संगठन में लेवी के पैसे को लेकर कई गुट बन गए हैं. बूढ़ापहाड़ और छकरबंधा से जुड़े कॉरिडोर में यह गुट मौजूद है. 2018 के बाद बूढ़ापहाड़ और छकरबंधा से जुड़े दो दर्जन से अधिक कमांडरों ने सरेंडर किया है. ये सभी इनामी और बड़े नाम हैं. बूढ़ापहाड़ से ही माओवादी झारखंड, बिहार और उत्तरी छत्तीसगढ़ के लिए अपनी रणनीति बनाते थे.

"पुलिस लगातार माओवादी कमांडरों से मुख्यधारा में शामिल होने की अपील कर रही है, इलाके में पुलिस का अभियान भी जारी है. माओवादियों की हर गतिविधि पर पुलिस की नजर है. इलाके में शांति व्यवस्था कायम रखने में पुलिस और सुरक्षा बल लगे हुए हैं." - वाईएस रमेश, डीआईजी पलामू

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अरविंद की मौत माओवादियों के लिए एक दशक में सबसे बड़ा झटका थी. अरविंद की मौत के बाद माओवादी बिखर गए और आज वे झारखंड और बिहार में अपनी आखिरी सांसें गिन रहे हैं. सुरक्षा बलों ने बूढ़ापहाड़ पर कब्जा कर लिया है और माओवादी इलाके से भाग गए हैं. अरविंद मूल रूप से बिहार के जहानाबाद का रहने वाला था और माओवादियों की स्थापना और विलय में शामिल था.

अरविंद की मौत के बाद बदले गए कई कमांडर

देव कुमार सिंह उर्फ ​​अरविंद की मौत के बाद माओवादियों ने बूढ़ापहाड़ इलाके में कई कमांडरों को जिम्मेदारी सौंपी. लेकिन वर्चस्व की लड़ाई और पैसे के लालच में माओवादी कमांडर बिखरते चले गए. अरविंद की मौत के बाद माओवादियों ने झारखंड, बिहार और उत्तरी छत्तीसगढ़ की जिम्मेदारी तेलंगाना के टॉप कमांडर सुधाकरण और उसकी पत्नी को सौंपी थी. 2019-20 में सुधाकरण ने अपनी पूरी टीम के साथ तेलंगाना में सरेंडर कर दिया. उसके बाद मिथिलेश मेहता को कमान सौंपी गई, जिसे बिहार में गिरफ्तार कर लिया गया. मिथिलेश मेहता के बाद सौरव उर्फ ​​मार्कस बाबा को जिम्मेदारी दी गई, जिसे भी बिहार में गिरफ्तार कर लिया गया. इस दौरान माओवादियों ने विमल यादव और नवीन यादव को भी जिम्मेदारी सौंपी, लेकिन दोनों ने सरेंडर कर दिया.

"अरविंद की मौत तक सभी ने नियमों का पालन किया, अरविंद के मरते ही किसी ने किसी की नहीं सुनी. स्थानीय लोग सुधाकरण की भाषा नहीं समझ पाते थे. अरविंद की मौत के बाद विमल गांव वालों के बीच मशहूर हो गया था, लेकिन उसकी भी किसी ने नहीं सुनी. बूढ़ापहाड़ पर अपने आखिरी दिनों में मार्कस बाबा अकेला पड़ गया था. अरविंद और विमल के अलावा दूसरे कमांडरों ने स्थानीय ग्रामीणों को खूब परेशान किया." - सुलेमान, ग्रामीण, बूढ़ापहाड़ क्षेत्र

अरविंद की मौत के बाद कमांडरों में पैसे का लालच बढ़ गया था, सुधाकरण को समझने वाला कोई नहीं था. झारखंड और बिहार के माओवादी सुधाकरण को अपना कमांडर मानने को तैयार नहीं थे. कमांडरों में संगठन के बजाय दूसरों के प्रति समर्पण की भावना थी. अरविंद के करीबी कमांडरों को प्रताड़ित किया जा रहा था. - एक पूर्व माओवादी़

लेवी के लिए माओवादी कमांडरों का बना है अलग-अलग गुट

माओवादी संगठन में लेवी के पैसे को लेकर कई गुट बन गए हैं. बूढ़ापहाड़ और छकरबंधा से जुड़े कॉरिडोर में यह गुट मौजूद है. 2018 के बाद बूढ़ापहाड़ और छकरबंधा से जुड़े दो दर्जन से अधिक कमांडरों ने सरेंडर किया है. ये सभी इनामी और बड़े नाम हैं. बूढ़ापहाड़ से ही माओवादी झारखंड, बिहार और उत्तरी छत्तीसगढ़ के लिए अपनी रणनीति बनाते थे.

"पुलिस लगातार माओवादी कमांडरों से मुख्यधारा में शामिल होने की अपील कर रही है, इलाके में पुलिस का अभियान भी जारी है. माओवादियों की हर गतिविधि पर पुलिस की नजर है. इलाके में शांति व्यवस्था कायम रखने में पुलिस और सुरक्षा बल लगे हुए हैं." - वाईएस रमेश, डीआईजी पलामू

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