कुल्लू: देशभर में सावन माह के चलते शिवालयों में भक्तों का तांता लगा हुआ है. भक्त सावन माह के अवसर पर भगवान भोलेनाथ के दर्शन करने पहुंच रहे हैं. कुल्लू में ब्यास और पार्वती नदी के संगम के पास एक ऊंचे पर्वत के ऊपर बिजली महादेव के प्राचीन मंदिर में भी सावन माह के चलते मंदिर में भक्तों का सैलाब उमड़ा हुआ है. विभिन्न संस्थाएं श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए लंगर का आयोजन कर रही हैं. बिजली महादेव में भक्तों को मक्खन से बने शिवलिंग के दर्शन होते हैं.
कुल्लू शहर से बिजली महादेव की पहाड़ी लगभग 7 किलोमीटर दूर है. खराहल घाटी के शीर्ष पर बसा बिजली महादेव का मंदिर आज भी देश-विदेश से आने वाले लाखों लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है. कुल्लू घाटी में ऐसी मान्यता है कि यह घाटी एक विशालकाय सांप का रूप है. इस सांप का वध भगवान शिव ने किया था. मान्यता है कि पहाड़ी रूप का दैत्य दोबारा जनमानस को कष्ट न पहुंचा सके, इसके लिए पहाड़ी के ऊपर शिवलिंग को स्थापित किया गया है और देवराज इंद्र को आदेश दिया गया कि वह हर 12 साल बाद शिवलिंग पर बिजली गिराएं. इसलिए भगवान भोलेनाथ का यह मंदिर आसमानी बिजली गिरने के लिए प्रसिद्ध है.
मक्खन से जोड़ा जाता है शिवलिंग
इतिहासकार डॉ. सूरत ठाकुर ने बताया कि मन्दिर के भीतर स्थापित शिवलिंग पर हर 12 साल बाद भयंकर आसमानी बिजली गिरती है. बिजली गिरने से मंदिर का शिवलिंग खंडित हो जाता है. यहां के पुजारी खंडित शिवलिंग के टुकड़े एकत्रित कर मक्खन के साथ इसे जोड़ देते हैं, कुछ ही माह बाद शिवलिंग पुराने स्वरूप में परिवर्तित हो जाता है. बिजली शिवलिंग पर गिरने के बारे में कहा जाता है कि भगवान शिव नहीं चाहते चाहते थे कि जब बिजली गिरे तो जन-धन को इससे नुक्सान पहुंचे। भोलेनाथ लोगों को बचाने के लिए इस बिजली को अपने ऊपर गिरवाते हैं। इसी वजह से भगवान शिव को यहां बिजली महादेव कहा जाता है।
भगवान शिव ने किया था दैत्य का बध
इतिहासकार डॉ. सूरत ठाकुर ने बताया कि बहुत पहले यहां कुलांत नामक दैत्य रहता था. दैत्य कुल्लू के पास नागणधार से अजगर का रूप धारण कर मंडी की घोग्घरधार से होता हुआ मथाण गांव आ गया। दैत्य रूपी अजगर कुंडली मार कर ब्यास नदी के प्रवाह को रोक कर इस जगह को पानी में डुबोना चाहता था, ताकि सभी जीव-जंतु पानी में डूब कर मर जाएं. भगवान शिव कुलांत के इस विचार से चिंतित हो गए. उसके बाद भगवान शिव ने उस राक्षस रूपी अजगर का वध किया था. कुलांत का पूरा शरीर एक पर्वत में बदल गया था. कुल्लू घाटी में बिजली महादेव से रोहतांग दर्रा और मंडी के घोग्घरधार तक की घाटी कुलांत के शरीर से निर्मित मानी जाती है। कुलांत से ही कुलूत और इसके बाद कुल्लू नाम के पीछे यही किवदंती कही जाती है.
सर्दियों में होती है भारी बर्फबारी
बिजली महादेव समुद्रतल से 2450 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और सर्दियों में यहां भारी बर्फबारी होती है. बिजली महादेव का अपना ही महात्म्य और इतिहास है। ऐसा लगता है कि बिजली महादेव के इर्द-गिर्द समूचा कुल्लू का इतिहास घूमता है और हर मौसम में दूर-दूर से लोग बिजली महादेव के दर्शन करने आते हैं।
बिजली महादेव के कारदार विनेंद्र जंबाल ने बताया कि देवता की पूरी घाटी में मान्यता है और देवता के त्योहार भी लोगो के द्वारा मिलजुल कर मनाए जाते हैं। ऐसे में सावन माह में श्रद्धालु दूर दूर से दर्शनों के लिए यहां आ रहें हैं और उनकी सुविधा का भी पूरा ख्याल रखा जा रहा हैं.