जयपुर : विश्व अंगदान दिवस, जो हर साल 13 अगस्त को मनाया जाता है, यह दिन विश्व स्तर पर महत्वपूर्ण महत्व रखता है. यह समर्पित दिन अंगदान की महत्वपूर्ण आवश्यकता के बारे में जागरूकता बढ़ाने और व्यक्तियों को अंग दाता बनने पर विचार करने के लिए प्रेरित करने के लिए एक शक्तिशाली मंच के रूप में कार्य करता है. विश्व अंगदान दिवस पर ETV भारत आप को मिलाता है जयपुर की सामाजिक कार्यकर्ता भावना जगवानी से, जिन्होंने 27 साल की उम्र में अपनी आंखों की रोशनी खो दी थी, 25 दिन बाद उनकी आंखों की रोशनी वापस आ गई, लेकिन उन अंधेरे 25 दिनों में उजाले की अहमियत समझ नहीं आई बल्कि जीवन जीने का एक नया उद्देश्य मिला. भावना ने जयपुर का पहला नेत्र बैंक और बाद में एक एनजीओ स्थापित कर अंगदान के लिए जागरूक करने की नई शुरुआत की.
कहानी 25 साल पहले की : भावना जगवानी 1992 में गर्भावस्था की तीसरी तिमाही में थी, जब एक दवा के रिएक्शन के कारण उनकी आंखों की रोशनी चली गई. देश के बड़े बड़े डॉक्टरों ने घोषणा कर दी थी कि वह अपने बच्चे को कभी नहीं देख पाएगी. एक बार के लिए उस समय 27 वर्षीय ज्वेलरी डिजाइनर भावना की दुनिया तबाह हो गई थी, लेकिन कहते हैं ना ईश्वर की मर्जी आगे सब कुछ फेल है, लगभग 25 दिन बाद अचानक ही भावना की आंखों की रोशनी वापस लौट आई, वैसे भावना का जीवन फिर से सामान्य हो गया था, लेकिन उन 25 दिनों के अंधेरे ने ज्वेलरी डिजाइनर भावना जगवानी के जीवन जीने के उद्देश्य को बदल दिया. भावना ईटीवी भारत से खास बात करते हुए कहती हैं कि जब आंखों के आगे अंधेरा छाया तो उजाले की अहमियत समझ आई. जब डॉक्टरों ने मुझे बताया कि मैं फिर से नहीं देख पाऊंगी, तो मैं सदमे में आ गई थी, मैं बस फर्श पर बैठ जाती थी और ध्यान करती थी. लोग मुझे देखकर रो पड़ते थे, यह बहुत दर्दनाक अनुभव था.
उन्होंने कहा कि एक दिन माँ ने कहा रात को जब उठ कर वॉशरूम जाए तो बता देना, मैंने माँ से कहा मुझे तो पता ही नहीं चलता कब दिन है और कब रात, मेरे लिए हर समय ही रात है, लेकिन हर चीज का एक उद्देश्य होता है. भावना कहती हैं कि जब मेरे तीसरा बच्चा होने वाला था तो एक गलत दवा से आंखों की रौशनी चली गई, देश के अच्छे से अच्छे, बड़े से बड़े डॉक्टर को दिखाया, लेकिन सब का जवाब सिर्फ और सिर्फ एक ही था कि अब में अपने तीसरे बच्चे को कभी नहीं देख पाऊंगी, लेकिन 25 दिन बाद अचानक फिर से मुझे दिखने लगा. सब कुछ पहले की तरह सामान्य हो गया था, लेकिन बस कुछ बदला तो वो था मेरे जीवन का उद्देश्य. अंधेरे के इन दिनों ने ही मुझे जीवन में एक नया उद्देश्य दिया.
पहला नेत्र बैंक स्थापित : जगवानी कहती हैं जब डिलीवरी हो गई और कुछ समय निकल गया तो मैंने सबसे पहले बॉम्बे में अपनी उन्हीं आंखों को दान किया जो एक चमत्कार की तरह वापस लौट आई थी, कुछ समय बाद जयपुर शिफ्ट हो गए, जब लगा की अब मरना भी यहीं है तो क्यों न आंखे भी जयपुर में ही दान करें तो जब आंखें दान करने के लिए गई तो पता लगा राजस्थान में तो कोई आई बैंक ही नहीं है, यहां तो किसी ने पहले कभी आंखें दान ही नहीं की, उसके बाद बॉम्बे के एक हॉस्पिटल के साथ जुड़ कर जयपुर का पहला नेत्र बैंक स्थापित किया. 2002 में जगवानी ने राजस्थान नेत्र बैंक सोसायटी (EBSR) की स्थापना की, कॉर्निया संग्रह के प्राथमिक उद्देश्य से स्थापित ESBR की टीम पिछले 22 वर्षों में राजस्थान में लगभग 14,000 नेत्रदान सुनिश्चित करने में सक्षम रही है.
अपने अनुभव को साझा करते हुए भावना कहती हैं कि आई बैंक की स्थापना की शुरुआत के तीन महीने कोई भी नेत्रदान के लिए आगे नहीं आया, कुछ साथियों ने कहा कि यह बहुत मुश्किल है, नहीं होगा बंद करते हैं, लेकिन जिद्द थी कि अब करना तो यही है, इसके बाद में एक दिन जयपुर एसएमएस अस्पताल की मोर्चरी गई जहां पर शवों को रखा जाता है, मैंने एक मृतक के परिजनों से बड़े डरते-डरते बात की, ग्रामीण क्षेत्र के लोग थे, एक बार के लिए लगा आज बहुत पीटने वाले हैं लेकिन वो बड़ी आसानी से तैयार हो गए. यहीं से सफर शुरू हुआ जो अभी जारी है. नेत्रदान में राजस्थान शून्य से नंबर वन तक पहुंच गया.
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पिता की मौत ने दी दिशा : भावना जगवानी कहती है कि नेत्रदान के साथ साथ अंगदान के लिए भी जागरूक करने की दिशा में काम करने का मन हो रहा था. 14 साल की उम्र में पिता का देहांत हो गया था. भावना कहती हैं कि जब वो 14 साल की तब पिता लन्दन ऑर्गन ट्रांसप्लांट के लिए जा रहे थे, उस समय भारत में ऑर्गन ट्रांसप्लांट नहीं होते थे, लेकिन रास्ते में पिता जी मौत हो गई थी, वो बात हमेशा से दिमाग में थी कि एक दिन अंगदान के लिए भी काम करना है, 2014 में इसकी शुरुआत की. एक गैर सरकारी संगठन मोहन फाउंडेशन - जयपुर सिटीजन्स फोरम (एमएफजेसीएफ) की उन्होंने स्थापना की, जिसके जरिये अंगदान को लेकर जागरूक किया जाता है. राज्य में पहला शव अंगदान छह वर्षीय मोहित नामक लड़के का था. जगवानी ने उसके माता-पिता जो अलवर में रहते हैं, को बच्चे की किडनी, लीवर और आंखें दान करने के लिए राजी किया.
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शहरी से ज्यादा ग्रामीण लोग जागरूक : भावना जगवानी कहती हैं कि नेत्रदान का विषय हो या फिर अंगदान का, ग्रामीण क्षेत्र के लोग इसमें ज्यादा आगे आते हैं. शहरी क्षेत्र के लोग बहुत ज्यादा स्वार्थी होते हैं, अब तक के अनुभव के आधार पर कह सकती हूं कि जितने भी नेत्रदान और अंगदान हुए हैं, उसमें ग्रामीण क्षेत्र के लोगों की ज्यादा भूमिका रही है. इसके साथ भावना जगवानी कहती हैं कि अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नीतियां होने की वजह से कई बार अंगदान की प्रक्रिया में उलझने पैदा हो जाती है, सामाजिक संगठन तो अपने स्तर पर कार्य कर रहे हैं, लेकिन सरकार को भी चाहिए कि वह इस दिशा में एक स्पष्ट नीति के साथ कार्य करें. कई बार सरकारी कामकाज की वजह से दिक्कतें सामने आती है, राजस्थान भले ही रूढ़िवादी सोच के लिए अपनी पहचान रखता हो, लेकिन यहां के लोग आज भी मानवीय दृष्टिकोण के साथ काम करते हैं.
उन्होंने कहा कि अगर सामाजिक संगठन सरकार दोनों की बराबर भूमिका के साथ काम किया जाए तो हम और बेहतर तरीके से काम कर सकते हैं. इतना ही नहीं, भावना ने अपनी संस्था के जरिये देश के पहले अंगदान स्मारक भी जयपुर में टोंक रोड सेंट्रल पार्क तिराहे के पास बनाया. जहां अंगदान करने वालों को याद किया जाता है. भावना कहती हैं कि स्मारक 'एक खामोशी -अनेक मुस्कान , आओ करें अंगदान' के रूप में लोगों को अंगदान के लिए प्रेरित करता है.