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पाषाण काल की धरोहर, एक लाख साल से भी पुरानी विरासत, अनूठी है हजारीबाग की संस्कृति म्यूजियम एवं आर्ट गैलरी - Sanskriti Museum and Art Gallery - SANSKRITI MUSEUM AND ART GALLERY

Hazaribag Sanskriti Museum and Art Gallery. हजारीबाग का संस्कृति म्यूजियम एवं आर्ट गैलरी अनोखा है. यहां एक लाख साल पुराने धरोहर संजो कर रखे गए हैं, खास बात यह है कि यह म्यूजियम निजी है और इसे पद्मश्री बुलु इमाम ने तैयार किया है.

Hazaribag Sanskriti Museum and Art Gallery
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Aug 8, 2024, 10:57 AM IST

Updated : Aug 8, 2024, 11:30 AM IST

हजारीबाग: म्यूजियम वर्तमान और आने वाली पीढ़ी को हमारी सभ्यता और संस्कृति की जानकारी देता है. देशभर में कई म्यूजियम हैं जिनका रख-रखाव सरकार या कोई अन्य संस्था कर रही है, लेकिन आज हम आपको एक ऐसे म्यूजियम के बारे में बताने जा रहे हैं जिसे पद्मश्री बुलु इमाम और उनके परिवार ने बड़ी लगन से तैयार किया है, जहां मध्यपाषाण काल ​​से लेकर नवपाषाण काल ​​तक की धरोहर को संजो कर रखा गया है. हजारीबाग के दीपूगढ़ में उनका म्यूजियम शोधकर्ताओं के लिए किसी संस्थान से कम नहीं है. हजारीबाग के संस्कृति म्यूजियम एवं आर्ट गैलरी ने करीब 1 लाख साल की पुरातात्विक धरोहर को संजो कर रखा है.

म्यूजियम से जानकारी देते संवाददाता गौरव प्रकाश (ईटीवी भारत)

1991 में हुई थी म्यूजियम की स्थापना

संस्कृति म्यूजियम एवं आर्ट गैलरी की स्थापना पद्मश्री बुलु इमाम ने 1991 में की थी, इस म्यूजियम की आधारशिला रखने के पीछे एक दिलचस्प घटना है. जब पद्मश्री बुलु इमाम ने बड़कागांव स्थित इस्को में जिले की पहली रॉक आर्ट की खोज की, इसके बाद ही उनके मन में म्यूजियम बनाने का विचार आया. उन्होंने करीब 10000 साल पहले की सोहराई कोहबर रॉक आर्ट की खोज की और इसे विश्व पटल पर रखा. आज यह लोक कला पूरी दुनिया में अपनी पहचान बना रही है.

उनके और उनके परिवार की वजह से ही इस कलाकृति को जीआई टैग भी मिला है, जिससे इसकी पहचान दूर-दूर तक पहुंच गई है. इस म्यूजियम में 200 से अधिक सोहराई कलाकृतियां प्रदर्शित हैं, जिन्हें यहां के कुशल कलाकारों ने बनाया है. झारखंड के उत्तरी कर्णपुरा घाटी के प्रागैतिहासिक पुरातत्व समेत एक दर्जन से अधिक मेसो-ताम्रपाषाण काल ​​की शैल कला को प्रकाश में लाया गया.

Hazaribag Sanskriti Museum and Art Gallery
संस्कृति म्यूजियम में ये है खास (ईटीवी भारत)

पुरापाषाण काल ​​से लेकर नवपाषाण काल तक के संग्रह मौजूद

संस्कृति म्यूजियम में पुरापाषाण काल ​​से लेकर नवपाषाण काल ​​के पत्थर के औजार, माइक्रोलिथ और कांस्य से लेकर लौह युग तक की कलाकृतियों का व्यापक संग्रह प्रदर्शित है. जिसमें हजारीबाग क्षेत्र के मिट्टी के बर्तन और बौद्ध पुरावशेष शामिल हैं. इसमें बिरहोर, संथाल और उरांव को समर्पित नृवंशविज्ञान गैलरी भी है, साथ ही उनके जीवन, लोककथाओं, गीतों, नृवंशविज्ञान पर संकलित मोनोग्राफ भी हैं. जो म्यूजियम के शोध अभिलेखागार और पुस्तकालय में उपलब्ध हैं.

इसमें स्थानीय शिल्प और वस्त्रों की एक गैलरी और एक आर्ट गैलरी भी है. म्यूजियम में बुद्ध काल की एक मूर्ति भी है, जो इटखोरी की है. म्यूजियम में तीन शीशे के बक्से आकर्षण का केंद्र हैं, जहां हजारों साल पुराने पत्थर के औजार, मिट्टी के बर्तन आदि रखे हुए हैं. यहां विभिन्न विश्वविद्यालयों से छात्र अध्ययन करने आते हैं.

निजी भवन में स्थित है म्यूजियम

म्यूजियम वर्तमान में पद्मश्री बुलु इमाम के निजी भवन में स्थित है, जो ब्रिटिश शासन के दौरान 1919 में चाय बागान जिला श्रमिक संघ का भवन हुआ करता था. पद्मश्री बुलु इमाम का परिवार 1952 में यहां पहुंचा था. यह भवन करीब 104 साल पुराना है और अपने आप में पुरातात्विक महत्व रखता है.

बुलु इमाम के बेटे का कहना है कि पहले वह भवन डाइनिंग हॉल हुआ करता था. बाद में उनके पिता ने इसे म्यूजियम बना दिया. इस म्यूजियम को देखने के लिए देश ही नहीं बल्कि विदेश से भी लोग आते हैं, जिनमें अमेरिका, फ्रांस और जापान के छात्र भी शामिल हैं. म्यूजियम में प्रवेश करते समय बड़े-बड़े पेड़ और पहाड़ी रास्ता लोगों को आकर्षित करता है. पूरे परिसर में किसी भी तरह की छेड़छाड़ नहीं की गई है. परिसर में पुरानी इमारत आज भी जीवंत है और कहीं न कहीं म्यूजियम होने का एहसास कराती है.

पद्मश्री बुलु इमाम के बेटे गुस्ताफ इमाम ने संस्कृति म्यूजियम के बारे में जानकारी देते हुए कई बातें साझा की हैं. उनके भाई जस्टिस इमाम, जो अब इस दुनिया में नहीं हैं, उन्होंने भी म्यूजियम को तैयार करने में अहम योगदान दिया है. गुस्ताफ इमाम कलेक्शन क्यूरेटर हैं. उन्होंने लंदन से अपनी पढ़ाई पूरी की है. भारत आने के बाद वे अपना ज्यादातर समय हजारीबाग में ही बिताते हैं. लोगों को हजारीबाग से जुड़ी सभ्यता और संस्कृति के बारे में बताना उनका शौक रहा है.

यह भी पढ़ें:

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सिमडेगा के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर को संजोने में जुटा प्रशासन, बीरूगढ़ सूर्य मंदिर का कराया जाएगा जीर्णोद्धार

हजारीबाग: म्यूजियम वर्तमान और आने वाली पीढ़ी को हमारी सभ्यता और संस्कृति की जानकारी देता है. देशभर में कई म्यूजियम हैं जिनका रख-रखाव सरकार या कोई अन्य संस्था कर रही है, लेकिन आज हम आपको एक ऐसे म्यूजियम के बारे में बताने जा रहे हैं जिसे पद्मश्री बुलु इमाम और उनके परिवार ने बड़ी लगन से तैयार किया है, जहां मध्यपाषाण काल ​​से लेकर नवपाषाण काल ​​तक की धरोहर को संजो कर रखा गया है. हजारीबाग के दीपूगढ़ में उनका म्यूजियम शोधकर्ताओं के लिए किसी संस्थान से कम नहीं है. हजारीबाग के संस्कृति म्यूजियम एवं आर्ट गैलरी ने करीब 1 लाख साल की पुरातात्विक धरोहर को संजो कर रखा है.

म्यूजियम से जानकारी देते संवाददाता गौरव प्रकाश (ईटीवी भारत)

1991 में हुई थी म्यूजियम की स्थापना

संस्कृति म्यूजियम एवं आर्ट गैलरी की स्थापना पद्मश्री बुलु इमाम ने 1991 में की थी, इस म्यूजियम की आधारशिला रखने के पीछे एक दिलचस्प घटना है. जब पद्मश्री बुलु इमाम ने बड़कागांव स्थित इस्को में जिले की पहली रॉक आर्ट की खोज की, इसके बाद ही उनके मन में म्यूजियम बनाने का विचार आया. उन्होंने करीब 10000 साल पहले की सोहराई कोहबर रॉक आर्ट की खोज की और इसे विश्व पटल पर रखा. आज यह लोक कला पूरी दुनिया में अपनी पहचान बना रही है.

उनके और उनके परिवार की वजह से ही इस कलाकृति को जीआई टैग भी मिला है, जिससे इसकी पहचान दूर-दूर तक पहुंच गई है. इस म्यूजियम में 200 से अधिक सोहराई कलाकृतियां प्रदर्शित हैं, जिन्हें यहां के कुशल कलाकारों ने बनाया है. झारखंड के उत्तरी कर्णपुरा घाटी के प्रागैतिहासिक पुरातत्व समेत एक दर्जन से अधिक मेसो-ताम्रपाषाण काल ​​की शैल कला को प्रकाश में लाया गया.

Hazaribag Sanskriti Museum and Art Gallery
संस्कृति म्यूजियम में ये है खास (ईटीवी भारत)

पुरापाषाण काल ​​से लेकर नवपाषाण काल तक के संग्रह मौजूद

संस्कृति म्यूजियम में पुरापाषाण काल ​​से लेकर नवपाषाण काल ​​के पत्थर के औजार, माइक्रोलिथ और कांस्य से लेकर लौह युग तक की कलाकृतियों का व्यापक संग्रह प्रदर्शित है. जिसमें हजारीबाग क्षेत्र के मिट्टी के बर्तन और बौद्ध पुरावशेष शामिल हैं. इसमें बिरहोर, संथाल और उरांव को समर्पित नृवंशविज्ञान गैलरी भी है, साथ ही उनके जीवन, लोककथाओं, गीतों, नृवंशविज्ञान पर संकलित मोनोग्राफ भी हैं. जो म्यूजियम के शोध अभिलेखागार और पुस्तकालय में उपलब्ध हैं.

इसमें स्थानीय शिल्प और वस्त्रों की एक गैलरी और एक आर्ट गैलरी भी है. म्यूजियम में बुद्ध काल की एक मूर्ति भी है, जो इटखोरी की है. म्यूजियम में तीन शीशे के बक्से आकर्षण का केंद्र हैं, जहां हजारों साल पुराने पत्थर के औजार, मिट्टी के बर्तन आदि रखे हुए हैं. यहां विभिन्न विश्वविद्यालयों से छात्र अध्ययन करने आते हैं.

निजी भवन में स्थित है म्यूजियम

म्यूजियम वर्तमान में पद्मश्री बुलु इमाम के निजी भवन में स्थित है, जो ब्रिटिश शासन के दौरान 1919 में चाय बागान जिला श्रमिक संघ का भवन हुआ करता था. पद्मश्री बुलु इमाम का परिवार 1952 में यहां पहुंचा था. यह भवन करीब 104 साल पुराना है और अपने आप में पुरातात्विक महत्व रखता है.

बुलु इमाम के बेटे का कहना है कि पहले वह भवन डाइनिंग हॉल हुआ करता था. बाद में उनके पिता ने इसे म्यूजियम बना दिया. इस म्यूजियम को देखने के लिए देश ही नहीं बल्कि विदेश से भी लोग आते हैं, जिनमें अमेरिका, फ्रांस और जापान के छात्र भी शामिल हैं. म्यूजियम में प्रवेश करते समय बड़े-बड़े पेड़ और पहाड़ी रास्ता लोगों को आकर्षित करता है. पूरे परिसर में किसी भी तरह की छेड़छाड़ नहीं की गई है. परिसर में पुरानी इमारत आज भी जीवंत है और कहीं न कहीं म्यूजियम होने का एहसास कराती है.

पद्मश्री बुलु इमाम के बेटे गुस्ताफ इमाम ने संस्कृति म्यूजियम के बारे में जानकारी देते हुए कई बातें साझा की हैं. उनके भाई जस्टिस इमाम, जो अब इस दुनिया में नहीं हैं, उन्होंने भी म्यूजियम को तैयार करने में अहम योगदान दिया है. गुस्ताफ इमाम कलेक्शन क्यूरेटर हैं. उन्होंने लंदन से अपनी पढ़ाई पूरी की है. भारत आने के बाद वे अपना ज्यादातर समय हजारीबाग में ही बिताते हैं. लोगों को हजारीबाग से जुड़ी सभ्यता और संस्कृति के बारे में बताना उनका शौक रहा है.

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Last Updated : Aug 8, 2024, 11:30 AM IST
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