नई दिल्ली: देश में हर रोज लाखों मैट्रिक टन कूड़ा जेनरेट होता है और यही कूड़ा लोगों के घरों से होता हुआ लैंडफिल साइट तक पहुंचता है. मौजूदा दौर में जब प्रदूषण अपने चरम पर है, ऐसे में कचरों के निस्तारण और उसकी रिसाइक्लिंग की सख्त आवश्यकता है. हालांकि, देशभर में कूड़े के निस्तारण के लिए तमाम योजनाएं चल रही हैं. आज देश में कई नौजवानों ने कूड़े कचरे से पर्यावरण में हो रहे बदलाव को देखते हुए खुद का स्टार्टअप शुरू किया है.
प्लास्टिक बैग और प्लास्टिक बोतल से शुरू किया स्टार्टअपः इसी कड़ी में आज हम आपको 26 वर्षीय आशय भावे के स्टार्टअप और एक कंपनी के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने सिर्फ 23 वर्ष की उम्र में इस स्टार्टअप की शुरुआत की थी. उन्होंने अपने स्टार्टअप के बदौलत कूड़े से जूते बना दिए. यह कोई आम जूते नहीं है, उनकी क्वालिटी और मजबूती किसी ब्रांडेड जूतों से कम नहीं है. आशय भावे की दूरदर्शी पर्यावरण को बचाने की सोच से आज कुछ हद तक पर्यावरण में तो उनकी भूमिका तो है ही. साथ ही साथ समाज में एक अच्छा उदाहरण भी है कि आप कूड़े का निस्तारण कर उसको उपयोग में भी ला सकते हैं.
भावे ने जुलाई 2021 में स्टार्टअप की शुरुआत की थी, जिसको उन्होंने थैले (Thaely) कंपनी का नाम दिया. कंपनी ने हजारों प्लास्टिक बैग और प्लास्टिक बोतल से पदार्थ का दोबारा इस्तेमाल किया है और उनकी मदद से चमड़े की तरह दिखने वाले सुंदर चमकते जूते बना दिए. अब जूतों के बाजार में थैले (Thaely) ब्रांड देश के कई राज्यों के स्टोर में खरीदारों के लिए उपलब्ध है.
कूड़े का तीन महत्वपूर्ण फार्मूला रिड्यूस, रीयूज और रीसाइकिलः केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एवं दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति के सदस्य डॉ अनिल कुमार गुप्ता ने ETV Bharat से कहा कि कोई भी युवा या उद्यमी अगर पर्यावरण संरक्षण पर काम करता है तो हम क्या सभी देशवासियों को उसका स्वागत करना चाहिए. आज पूरा विश्व ओजोन डिप्लेशन, प्लास्टिक वेस्ट की समस्या से जूझ रहा है.
उन्होंने बताया कि कूड़े के तीन महत्वपूर्ण फार्मूला हैं, जिसमें उसे रिड्यूस, रीयूज, रीसाइकिल यानी किसी भी प्रकार के प्लास्टिक के कचरे, कूड़े को कम किया जाए. चाहे वह किसी भी प्रकार का हो उसे दोबारा इस्तेमाल किया जाए और उसको दोबारा रिप्रोसेस किया जाए. इस बात की खुशी होती है कि जब अपने देश के युवा इस तरीके के स्टार्टअप शुरू करते हैं और विशेष रूप से पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए ये काफी अच्छी पहल है.
प्लास्टिक डी-कंपोज होने में लगते हैं हजारों सालः डॉ गुप्ता ने बताया कि हम सभी लोग जानते हैं प्लास्टिक डी-कंपोज नहीं होता है. सबसे ज्यादा पर्यावरण प्लास्टिक से ग्रसित है, क्योंकि वह मिट्टी में नहीं मिलता और ना ही डीकंपोज होता है. हजारों लाखों साल ऐसे ही बना रहता है, जो पानी और हवा को दूषित करता है. लेकिन आज के समय में टेक्नोलॉजी काफी अधिक है. प्लास्टिक की बोतल- थैलिया, पीवीसी की बोतल, कैसी भी प्लास्टिक को पाउडर बनाकर उसका रेक्सीन बनाकर अगर ब्रांडेड जूते बना रहे हैं तो सही मायने में पर्यावरण की दृष्टि से एक बहुत ही सराहनीय कदम है.
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युवाओं के पर्यावरण सहयोगी कार्यों की करते हैं सराहनाः केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एवं दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति का कहना है कि हम ऐसे सोच वाले नौजवानों को सलाम करते हैं और उन ग्राहकों का भी धन्यवाद करना चाहते हैं जो उनके यह जूते खरीद रहे हैं. इस तरह की सोच और लोगों को प्रोत्साहित करना चाहिए.
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