बस्तर : छत्तीसगढ़ का आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र बस्तर अपनी कला, संस्कृति, वेशभूषा, लोक गीत, लोक नृत्य के साथ ही अनोखी परम्पराओं और तीज त्योहारों के लिए देशभर में मशहूर है. बस्तर के रीति रिवाज आदिवासियों को अनोखी पहचान देती है. इन दिनों बस्तर में दियारी त्यौहार की धूम मची हुई है. दियारी त्यौहार बस्तर के आदिवासियों के लिए सालभर का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण त्यौहार होता है. जिसके लिए सालभर का इंतजार बस्तर के निवासी करते हैं.
किनके लिए होता है दियारी त्यौहार : बस्तरवासियों ने बताया कि यह दियारी त्यौहार घर के गाय बैलों और भैंस के लिए होता है. क्योंकि ये घर के मवेशी साल भर खेतों में मेहनत करते हैं. खेत जोतने से लेकर, फसल लगाने, निंजाई करने, मिंजाई में महत्वपूर्ण भूमिका इनकी रहती है. इसीलिए जब खेतों की फसल पक जाती है तो स्थानीय देवी देवताओं की पूजा अर्चना के बाद दियारी त्यौहार मनाया जाता है.जिसमें पहले सम्मान स्वरूप मवेशियों को माला बांधते हैं. जिसे गेटा कहा जाता है.
बच्चे गाय के भोजन से निकालते हैं निवाला : इसके बाद अगले दिन बांस की बनी टोकरी सूपा में सबसे पहले खिचड़ी बनाकर पशुओं को खिलाया जाता है. खिचड़ी को चांवल, उड़द दाल, अरहर दाल, मेथी, कुम्हड़ा और 7 प्रकार की भाजी, कोचई, गुड़, सेमी, मटर, धनिया,हरी सब्जी डालकर बनाया जाता है. खिचड़ी जब गाय बैलों को खिलाया जाता है. उस दौरान बच्चे उनकी टोकरी से निवाला उठाकर खाया करते हैं और उत्साह मनाते हैं.
गाय बैलों की होती है सजावट : लोगों ने बताया कि देशभर में मनाए जाने वाले दीवाली पर्व को बस्तर के नागरिक राजा दियारी कहते हैं. दियारी के दिन घरों को सजाया जाता है. चांवल आटे से गाय बैलों के पैर का निशान बनाया जाता है. छोटे बच्चों के पैरों का निशान बनाया जाता है. हाथों का निशान दिवालों में बनाया जाता है. सुबह धान की बालियों घरों के सामने लगाने के लिए कला कृतियां बनाई जाती है.
क्या है पौराणिक मान्यता ?: मान्यताओं के अनुसार पुराने समय में केवल दिवाली राजा का परिवार ही मनाया करता था और बाजार से खरीदारी भी करता था. इस कारण बस्तर के नागरिक इस त्योहार को राजा दियारी कहते हैं. लेकिन धान फसल के पकने के बाद मनाए जाने वाला त्यौहार बस्तरवासियों का त्योहार है. जिसे दियारी कहा जाता है. जो साल भर का सबसे बड़ा धान का त्यौहार होता है. इससे पहले नयाखानी और हरेली त्यौहार भी बस्तर के आदिवासी मनाते हैं.
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