देहरादून: राजनीतिक दल यूं तो संसदीय क्षेत्र के हर हिस्से में पहुंचकर प्रचार प्रसार के जरिए मतदाताओं को रिझाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन पार्टियों की लोकसभा चुनाव में मुख्य परीक्षा विरोधी दल के गढ़ को फतह करने की है. उत्तराखंड की पांच लोकसभा सीटों पर भी ऐसी कई विधानसभा सीटें हैं, जो राजनीतिक दलों का गढ़ मानी जाती हैं और यहां हर हालत में एक ही दल का दबदबा रहा है. ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट में जानिए कौन से हैं उत्तराखंड के राजनीतिक गढ़.
लोकसभा चुनाव 2024 के लिए वैसे तो राजनीतिक दलों के सामने कई चुनौतियां हैं, लेकिन इनमें सबसे बड़ी परीक्षा राजनीतिक विरोधी दल के गढ़ को फतह करने की है. ऐसा गढ़ जो हर तरह के राजनीतिक हालात में जीत से दूर रहा है. प्रदेश में पिछले चुनाव के आंकड़ों को देखें तो ऐसी कई विधानसभा सीटें हैं, जहां पिछले कई चुनावों से लगातार भाजपा जीत हासिल करती रही है. वहीं कई विधानसभा सीटों के मतदाता हर चुनाव में कांग्रेस को ही अपनी पसंद बनाते रहे हैं. हालांकि इस मामले में कांग्रेस के खाते में कम विधानसभा सीटें ही दिखाई देती हैं, जबकि भाजपा के गढ़ में कई विधानसभा सीटें शामिल हैं.
आंकड़ों पर एक नजर:
- बीते दो विधानसभा चुनावों में बीजेपी लगातार जीत कर अपनी पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बना रही है.
- राज्य की पांच लोकसभा सीटों पर भी भाजपा 2014 और 2019 में लगातार दो बार क्लीन स्वीप कर चुकी है.
- लोकसभा चुनाव 2014 में 70 में से 63 विधानसभा सीटों में भाजपा को बढ़त मिली.
- सात विधानसभा सीटों में ही कांग्रेस को बीजेपी से अधिक वोट मिले थे.
- साल 2019 के लोकसभा चुनाव में केवल 5 विधानसभा सीटों पर ही कांग्रेस ने भाजपा प्रत्याशी से ज्यादा वोट पाए थे.
- 65 विधानसभा सीटों पर भाजपा का प्रत्याशी अधिक वोट पाने में सफल रहा.
- साल 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस मात्र 11 सीटों पर ही सिमट गई थी.
- वहीं इस चुनाव में बीजेपी ने रिकॉर्ड तोड़ 57 सीटों पर अपनी जीत दर्ज कराई थी.
- साल 2022 के विधानसभा चुनाव कांग्रेस 19 सीटें जीतने में कामयाबी हुई थी.
- बीजेपी ने 47 विधानसभा सीटें जीतकर फिर से पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी.
कांग्रेस का कब्जा बरकरार: अब आपको उन विधानसभा सीटों के बारे में बताते हैं, जहां बीते चार चुनावों में कांग्रेस ने बढ़त बनाई हुई है. मोदी लहर के बावजूद भी बीजेपी देहरादून जिले की चकराता, हरिद्वार जिले की भगवानपुर, ज्वालापुर, मंगलौर और पिरान कलियर विधानसभा सीटों में अपनी बढ़त नहीं बना पाई है. यानी ये कहा जाए कि इन पांच सीटों पर कांग्रेस का वर्चस्व बरकरार है तो इसमें कोई दो राय नहीं होगी.
बीजेपी का गढ़: वहीं पिछले चार चुनावों में 15 से ज्यादा विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां बीजेपी का कब्जा बरकरार है. इनमें देहरादून जिले की मसूरी, देहरादून कैंट, डोईवाला, ऋषिकेश, हरिद्वार जिले की हरिद्वार, BHEL, पौड़ी जिले की यमकेश्वर, चौबट्टाखाल, लैंसडाउन, पिथौरागढ़ जिले की डीडीहाट, बागेश्वर, अल्मोड़ा जिले की सल्ट, उधमसिंह नगर जिले की काशीपुर, गदरपुर, रुद्रपुर, सितारगंज जैसी विधानसभा सीटें हैं, जिन्हें बीजेपी का गढ़ कहा जा सकता है.
मोदी लहर में भी यहां कांग्रेस को नहीं हुआ नुकसान: साल 2014 में मोदी लहर होने के बावजूद भी कांग्रेस अपने गढ़ को बचाने में न केवल कामयाब रही, बल्कि विधानसभा चुनाव में इन पांच विधानसभा सीटों पर कांग्रेस ने जीत हासिल की थी. इन सीटों पर कांग्रेस की शक्ति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 2014 और 2019 में भाजपा की एक तरफा जीत के दौरान भी इन विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस का दबदबा कायम रहा है. बहरहाल भाजपा कांग्रेस के दुर्ग को भेदने के लिए किलेबंदी में जुटी है और इसके लिए पार्टी के कई बड़े नेताओं को इन विधानसभा सीटों पर फोकस भी किया गया है. पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान चुनावी आंकड़ों के क्या रहे नतीजे यह भी जानिए...
- साल 2014 के लोकसभा चुनाव में पांचों सीटों पर भाजपा ने 8 लाख 64 हजार 117 मतों के अंतर से जीत हासिल की.
- जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सभी पांच सीटों पर जीत का अंतर बढ़ाकर 13 लाख 88 हजार 429 किया.
- साल 2019 में सभी बड़ी जीत नैनीताल लोकसभा सीट पर अजय भट्ट के नाम रही. उन्होंने 3 लाख से ज्यादा मतों से कांग्रेस प्रत्याशी को हराया था.
- भाजपा के गढ़ सबसे ज्यादा देहरादून और उधमसिंहनगर जिले में मौजूद विधानसभा सीटें हैं.
- कांग्रेस के गढ़ वाली विधानसभा सीटें हरिद्वार जिले में अधिक हैं.
लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी और कांग्रेस की सबसे बड़ी अग्नि परीक्षा एक-दूसरे के गढ़ में सेंधमारी करना ही है. हालांकि कांग्रेस गढ़ में जीत का स्वाद चखने के लिए बीजेपी के खास रणनीति भी बनाई है. ताकि बीजेपी मिथक तोड़ते हुए जीत हासिल कर सके. राजनीतिक गढ़ पर फतह करने के लिए भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस के मुकाबले ज्यादा तैयारी करती हुई दिखाई देती है. हालांकि कांग्रेस का इस लोकसभा चुनाव में भाजपा के दुर्ग को जीतने के पीछे अपना एक अलग तर्क दे रही है.
कांग्रेस की मानें तो लोकसभा चुनाव 2024 में भारतीय जनता पार्टी केवल ध्यान भटकाने के लिए सांप्रदायिक मुद्दों को रखकर चुनाव में जीत हासिल करना चाहती है, जबकि कांग्रेस केवल विकास के मुद्दों और जनहित से जुड़े विषयों को उठा रही है. ऐसे में कांग्रेस को पूरी उम्मीद है कि जनता के मुद्दे और विकास की बात करने वाली पार्टी को ही जनता जीत दिलवाएगी. इसी की बदौलत कांग्रेस के नेता भाजपा के गढ़ को भी ध्वस्त करने का दम भर रहे हैं.
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