भरतपुर. दुनिया भर में पक्षियों के स्वर्ग के रूप में पहचाने जाने वाले केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में बीते कई दशक से जल संकट चल रहा है. जो पानी यहां लिया जा रहा है, वो प्रदूषित है. पानी में पहुंच रहे प्रदूषण की वजह से धीरे-धीरे घना का हैबिटेट खराब हो रहा है. साथ ही गोवर्धन ड्रेन के पानी में पक्षियों के लिए फूड भी नहीं पहुंच रहा. जबकि घना के लिए जरूरी पांचना बांध का पानी करीब दो दशक से नहीं मिल पा रहा. यही वजह है कि घना से कई प्रजाति के पक्षियों ने मुंह मोड़ लिया है. वहीं कई प्रजाति के पक्षियों की संख्या में भारी कमी आई है. हालात ये हैं कि किसी समय घना में लाखों की संख्या में पक्षी पहुंचते थे लेकिन अब ये संख्या लाखों से सिमटकर हजारों में रह गई है.
पर्यावरणविद भोलू अबरार खान ने बताया कि जिस समय गंभीरी नदी (पांचना बांध), रूपारेल और बाणगंगा नदी से प्राकृतिक पानी मिलता था तब तक घना में लाखों की संख्या में पक्षी आते थे, लेकिन जब से प्राकृतिक जल स्रोतों से पानी मिलना बंद हुआ है, पक्षियों की यह संख्या लाखों से घटकर हजारों में रह गई है. पक्षी गणना के आंकड़ों के अनुसार घना में अब औसतन 55 से 57 हजार तक पक्षी ही आते हैं.
इन पक्षियों ने मुंह मोड़ा : पर्यावरणविद भोलू अबरार ने बताया कि घना में साइबेरियन सारस ने तो दो दशक पहले ही आना बंद कर दिया था. इसके अलावा कॉमन क्रेन की संख्या भी ना के बराबर रह गई है. पहले ये बड़ी संख्या में घना आते थे. लार्ज कॉर्वेंट पहले अच्छी संख्या में आते थे लेकिन अब नहीं आ रहा. ब्लैक नेक्ड स्टॉर्क पहले अच्छी संख्या में आता था लेकिन अब मुश्किल से एक दो जोड़ा नजर आता है. पेंटेड स्टॉर्क की संख्या में भी काफी कमी आई है.
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राजहंस ने बदला ठिकाना : पर्यावरणविद डॉ. के पी सिंह ने बताया कि पहले राष्ट्रीय उद्यान में फ्लेमिंगो यानी राजहंस अच्छी संख्या में पहुंचते थे, लेकिन अब उद्यान में फ्लेमिंगो के लिए ना तो पर्याप्त हैबिटेट मिल पा रहा है और ना ही उपयुक्त पानी. फ्लेमिंगो को नमकीन और स्वच्छ पानी की जरूरत होती है, लेकिन यहां गोवर्धन ड्रेन के प्रदूषित पानी की वजह से फ्लेमिंगो का हैबिटेट खराब हो रहा है. यही वजह है कि अब उद्यान में ना के बराबर फ्लेमिंगो पहुंच रहा है, जबकि घना से 35 किमी दूर उत्तर प्रदेश के जोधपुर झाल बर्ड सेंचुरी में प्राकृतिक पानी और अच्छा हैबिटेट उपलब्ध होने की वजह से सैकड़ों की संख्या में फ्लेमिंगो पहुंचते हैं.
पांचना बांध के पानी से ही बचाव : पर्यावरणविद भोलू अबरार खान और डॉ. के पी सिंह का कहना है कि यदि घना को बचाना है और पक्षियों को फिर से आकर्षित करना है तो पांचना बांध का पानी बहुत जरूरी है. यदि पांचना बांध का पानी नहीं मिला तो घना का पूरा हैबिटेट खराब हो जाएगा और इसकी पहचान पर बहुत बड़ा संकट खड़ा हो जाएगा.