कोटा. कोटा शहर और आसपास की आबादी में सालों से मैन वर्सेस क्रोकोडाइल जैसे हालात बने हुए हैं, लेकिन वन विभाग और वन्य जीव प्रेमी इसे मानने से इनकार करते हैं. मानवीय आबादी के साथ ही क्रोकोडाइल का कुनबा भी कोटा शहर के नदी नालों में पनप रहा है. अब ये हालत बिगड़ते नजर आ रहे हैं, क्योंकि लगातार क्रोकोडाइल की संख्या बढ़ती जा रही है. बीते 9 सालों में यानी 2016-17 से अब तक 313 मगरमच्छ का रेस्क्यू फॉरेस्ट डिपार्टमेंट ने किया है. इसके साथ ही 18 मगरमच्छ मृत अवस्था में भी मिले हैं. इनमें शहर की सड़कों, खाली प्लाटों और आबादी इलाकों से इन्हें पकड़ा गया है. यह भोजन या सुरक्षित स्थान की तलाश में वाटर बॉडी से निकलकर बाहर पहुंचे थे. हालांकि इस संबंध में फिलहाल कोई समाधान नहीं निकलता नजर आ रहा, क्योंकि मगरमच्छ कोटा शहर में स्थाई बसेरा बना चुके हैं.
वन विभाग के लाडपुरा रेंजर संजय नागर ने कहा कि मगरमच्छ की निश्चित संख्या नहीं बता सकते हैं, लेकिन अंदाजन हजारों की तादाद में मगरमच्छ कोटा को आसपास के एरिया में हैं, लेकिन चंबल और चंद्रसेल नदी के आसपास कोटा शहर की नहरों, वितरिकाओं और तालाबों के अलावा नालों में भी बड़ी तादाद में मगरमच्छ हैं.
पानी के भीतर नहीं होता रेस्क्यू : रेंजर संजय नागर का कहना है कि कोटा शहर में 14 से 16 फीट लंबे मगरमच्छों का रेस्क्यू किया गया है. इनका वजन ढाई सौ किलो के आसपास था. आमतौर पर 5 से 8 फीट के मगरमच्छ का रेस्क्यू किया जाता है, जिनमें बच्चे, अवयस्क व वयस्क मगरमच्छ शामिल है. जब बारिश होती है, तब मगरमच्छ ज्यादा नजर आते हैं. जल प्लावन होने पर यह आबादी वाले एरिया में प्रवेश कर जाते हैं. बहाव ज्यादा होने पर मगरमच्छ पानी से निकलकर किनारों पर आ जाते हैं. दूसरी तरफ दलदल भी बहाव के चलते आगे बढ़ जाता है, इससे बचने के लिए ही मगरमच्छ बाहर निकलता है. ये सूखे एरिया में पहुंच जाते हैं. तभी इनका रेस्क्यू होता है. पानी के भीतर रेस्क्यू नहीं किया जा सकता.
कोटा का पानी बन रहा सहायक, मिल रहा भोजन : लाडपुरा रेंजर संजय नागर का कहना है कि मगरमच्छ की तादाद हर साल बढ़ने का कारण है कि कोटा का पानी इन्हें सूट करता है. इसके अलावा यहां के नाले, वाटर बॉडीज और नदियों में दलदली पानी रहता है. जहां पर पर्याप्त भोजन भी मगरमच्छ को मिल जाता है. खाने के लिए पर्याप्त मछली भी इन एरिया में मिल जाती है. इन नालों में मरे हुए जानवरों की लाश भी इनका प्रमुख भोजन होता है. इसके चलते लगातार इनकी संख्या भी बढ़ रही है. करीब तीन से चार गुना आबादी इनकी हर साल बढ़ जाती है.
इन कॉलोनी में सबसे ज्यादा खतरा : कैटल गार्ड और क्रोकोडाइल रेस्क्यू टीम के लीडर वीरेंद्र सिंह हाड़ा का कहना है कि कोटा शहर के कुछ इलाके बोरखेड़ा, बजरंग नगर, रायपुरा, थेकड़ा डीसीएम रोड, काला तालाब, रंग तालाब, सोगरिया, भदाना, नयागांव और चंद्रसेल में सबसे ज्यादा क्रोकोडाइल के रेस्क्यू किए जाते हैं. रेंजर संजय नागर का कहना है कि मादा मगरमच्छ 4 से 5 दर्जन अंडे हर साल देती है. इसमें से अंडों की करीब 30 फीसदी सर्वाइवल रेट होती है और इनमें से वयस्क करीब 20 फ़ीसदी बनते हैं. ऐसे में मगरमच्छों की आबादी तीन से चार गुनी हर साल हो रही है.
खेतों में कट गई आवासीय प्लांनिग, इसलिए दिख रहे मगरमच्छ : चंबल संसद के कोऑर्डिनेटर व वन्यजीव प्रेमी बृजेश विजयवर्गीय का कहना है कि कोटा शहर की वाटर बॉडीज में पहले से ही मगरमच्छों की उपस्थिति रही है. शिकार के बाद आसपास के खाली जगह पर धूप सेंकने या फिर बारिश के समय जब नाले या वाटर बॉडीज ओवरफ्लो होती है, तब अपनी सुरक्षा करते हैं, इसलिए ऊपरी एरिया में ये बिना तेज बहाव वाले पानी में पहुंच जाते हैं. इसी के चलते यह खाली प्लॉट या फिर उनमें भरे हुए पानी में पहुंच जाते हैं, लेकिन अभी नालों और वाटर बॉडीज के आसपास के इन इलाकों में मौजूद खेतों में आवासीय योजनाएं काट दी गई है. यहां के प्लॉटों में लोगों ने मकान बना लिए हैं और सघन आबादी भी हो गई है. इसीलिए मगरमच्छ नजर आने पर ये लोग डर जाते हैं.
इसे भी पढ़ें : Special : पक्षियों के लिए जहर गोवर्धन ड्रेन, नहीं मिली संजीवनी - Keoladeo National Park
पहले से सरवाइव कर रहा है क्रोकोडाइल : वन्य जीव प्रेमी बृजेश विजयवर्गीय का यह भी कहना है कि मगरमच्छ पानी के अलावा कहीं भी व्यक्ति पर हमला नहीं करता है. कोटा में एक दो कुछ एक मामले ही मैन वर्सेस क्रोकोडाइल के सामने आए हैं. पानी के बाहर आने पर मगरमच्छ खुद अपने बचाव के लिए आता है, ऐसे में वह किसी पर हमला नहीं करता है. जबकि लंबे समय से कोटा की अधिकांश वाटर बॉडीज में मगरमच्छ सरवाइव कर रहा है और शांतिपूर्वक रहता भी है. इसीलिए लोगों को इससे घबराने की आवश्यकता नहीं है. लोगों को मगरमच्छ नुकसान नहीं पहुंचा रहा है और लोग भी मगरमच्छों को नुकसान नहीं पहुंचाएं. कोई मगरमच्छ दिखता है तो उसे फॉरेस्ट विभाग को सूचना देकर रेस्क्यू करवा दें.
टीम लीड कर रहे कैटल गार्ड वीरेंद्र सिंह हाड़ा का कहना है कि कोटा से पकड़े जाने वाले मगरमच्छों में छोटी उम्र होने पर उन्हें देवली अरब में बने क्रोकोडाइल व्यू प्वाइंट पर छोड़ा जा रहा है. बड़े होने पर सावन भादो डैम और किशोर सागर तालाब पर छोड़ा जाता है. ज्यादा बड़े डैम को जवाहर सागर सेंचुरी और चंबल नदी में भी छोड़ा जा रहा है. इसके लिए पूरी टीम 24 घंटे तैनात रहती है. क्रोकोडाइल रेस्क्यू के स्थानीय निवासियों के वन विभाग के अधिकारियों के पास फोन आते हैं. इसके अलावा पुलिस कंट्रोल रूम और जिला प्रशासन के जरिए भी सूचनाओं मिलती है.
पॉल्यूशन से भी परेशन रहते हैं क्रोकोडाइल : बृजेश विजयवर्गीय का कहना है कि इंडस्ट्रियल एरिया से आ रहे नालों में भी बड़ी संख्या क्रोकोडाइल मौजूद हैं. इन नालियों में इंडस्ट्रियल वेस्ट का पॉल्यूटेड पानी आ रहा है, जिसके चलते भी यह मगरमच्छ काफी परेशान होते हैं. दूसरी तरफ पॉलिथीन भी उनके लिए एक बड़ा संकट नालों में बनता जा रहा है. कई बार मृत मिले मगरमच्छ के पोस्टमार्टम में उनके पेट से भारी मात्रा में पॉलिथीन निकल रही है. मगरमच्छ को पानी का राजा कहा जाता है. ऐसे में कोटा शहर के नदी नालों में भी इनका संरक्षण काफी जरूरी है. वन विभाग को इसके लिए विस्तृत योजना बनाकर संरक्षित करना चाहिए.