रांची: झारखंड की राजनीति में सोरेन परिवार का हमेशा से दबदबा रहा है. राज्य बनने के बाद थोड़े-थोड़े समय के लिए ही सही लेकिन झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन तीन बार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराज चुके हैं. विरासत जब उनके पुत्र हेमंत सोरेन के हाथों में आई तो उन्होंने पार्टी को अबतक के सबसे ऊंचे मुकाम तक पहुंचाया.
भाजपा से नाता तोड़ा और कांग्रेस के समर्थन से साल 2013 में पहली बार मुख्यमंत्री बने. लेकिन 2019 का चुनाव आते आते उन्हें खुद को इतना मजबूत बना लिया कि रघुवर दास को भनक तक नहीं लगी कि उनकी कुर्सी जाने वाली है. झारखंड की राजनीति में स्थिर सरकार का दूसरा अध्याय हेमंत सोरेन के नेतृत्व में शुरु हुआ. यह अलग बात है कि लैंड स्कैम मामले में 31 जनवरी 2024 को उनकी गिरफ्तारी हो गई. लेकिन इस गिरफ्तारी से झारखंड की राजनीतिक हवा बदल गई है.
ऐसा पहली बार हुआ है, जब बाबूलाल मरांडी के खिलाफ सोरेन परिवार आक्रामक नजर आ रहा है. हेमंत सोरेन के छोटे भाई बसंत सोरेन खुले तौर पर बाबूलाल मरांडी पर निशाना साध रहे हैं. उन्हें कहीं से भी लोकसभा सीट जीतने की चुनौती दे रहे हैं. लेकिन सवाल है कि उनके दावे में कितना दम है.
बाबूलाल मरांडी पर सोरेन परिवार हमलावर
लोकसभा का चुनाव सिर पर है. भाजपा ने आजसू के साथ मिलकर सभी चौदह सीटों पर जीत की तैयारी शुरु कर दी है. प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी मोर्चा संभाले हुए हैं. वह भाजपा की ओर से इकलौते ऐसे नेता हैं जो शिबू सोरेन समेत उनके पूरे परिवार पर खुलकर निशाना साधते रहे हैं. उनका हमला अब भी जारी है. खदान, बालू, जमीन, बेलगाम अपराध और भ्रष्टाचार के खिलाफ मुखर रहे हैं. लेकिन दिलचस्प बात ये है कि अब सोरेन परिवार भी फ्रंट फुट पर आ गया है. बसंत सोरेन पहली बार खुलकर बाबूलाल मरांडी को चुनौती दे रहे हैं.
जामताड़ा में उन्होंने यहां तक कह दिया कि जिसका अपने परिवार का ही अता पता नहीं, वो परिवार की क्या बात करेगा. बसंत ने बाबूलाल मरांडी को चुनौती देते हुए कह दिया कि वह 14 में से किसी एक लोकसभा सीट से चुनाव लड़कर और जीतकर दिखा दें. सोरेन परिवार की ओर से ऐसा हमला पहली बार हुआ है. इससे पहले बाबूलाल मरांडी के आरोपों का जवाब झामुमो के स्तर पर दिया जाता था. वहीं हेमंत सोरेन के जेल में जाने के बाद उनकी पत्नी कल्पना सोरेन ने चुनावी नैया को पार कराने में सहानुभूति की पतवार थाम ली है. अलग-अलग सभाओं में बता रही हैं कि साजिश के तहत राज्य के बेटे हेमंत को जेल में भेजा गया है.
शिबू सोरेन और रुपी सोरेन को हरा चुके हैं बाबूलाल
वर्तमान हालात में बसंत सोरेन ने बाबूलाल मरांडी को भले ही लोकसभा चुनाव जीतने की चुनौती दी हो लेकिन वह अच्छी तरह जानते हैं कि बाबूलाल मरांडी एक मात्र ऐसे नेता हैं जिन्होंने उनके पिता शिबू सोरेन को 1998 और मां रुपी सोरेन को 1999 के मध्यावधि चुनाव में हराया था. उनके नेतृत्व में भाजपा ने झारखंड की 14 में से 12 सीटों पर जीत दर्ज की थी. उन्हें राज्य का पहला मुख्यमंत्री बनने का गौरव हासिल है. वह ऐसे नेता हैं जो भाजपा छोड़ने के बाद अपने बूते जेवीएम नाम से पार्टी खड़ी कर दी और विधानसभा चुनाव का समीकरण बदलते रहे. अलग बात है कि वह अपने विधायकों को टूटने से नहीं रोक पाए. अब वह भाजपा में नई जिम्मेदारियों के साथ आए हैं. वह पहले ऐसे संथाली नेता हैं जो सोरेन परिवार पर सीधा हमला बोलते हैं. इसबार के लोकसभा चुनाव में उनकी भी अग्नि परीक्षा होनी है. वह लगातार जनसंपर्क अभियान चला रहे हैं.
लोकसभा में एसटी की पांच सीटें बनेंगी चुनौती!
झारखंड में लोकसभा की कुल 14 सीटें हैं. इनमें पांच सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं. वर्तमान में इन पांच सीटों में से राजमहल और चाईबासा को छोड़कर शेष तीन सीटों मसलन, खूंटी, लोहरदगा और दुमका में भाजपा के सांसद हैं. इसबार भाजपा ने लोहरदगा सीट से वर्तमान सासंद सुदर्शन भगत का टिकट काटकर समीर उरांव को प्रत्याशी बनाया है. जबकि चाईबासा से कांग्रेस की टिकट पर चुनाव जीतने वाली गीता कोड़ा को प्रत्याशी बनाकर मैदान में उतारा है.
जानकारों का कहना है कि हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी से आदिवासी समाज में नाराजगी है. इसका सीधा असर पांचों रिजर्व सीटों पर दिख सकता है. इंडिया गठबंधन को भी उम्मीद है कि उसे इसका फायदा मिलेगा. लेकिन सभी जानते हैं कि चुनाव के वक्त परसेप्शन सबसे ज्यादा मायने रखता है. अगर भाजपा एसटी सीटों पर बढ़त बना लेती है तो इसका सीधा असर आगामी विधानसभा चुनाव में दिखेगा. वैसे इस बार की राह इतनी भी आसान नहीं है जितना दिखाने की कोशिश हो रही है. जानकारों का कहना है कि सबकुछ इसबात पर निर्भर करेगा कि गठबंधन कितनी मजबूती से मैदान में उतरता है क्योंकि सभी जानते हैं कि लोकसभा चुनाव में स्थानीय मामले ज्यादा प्रभावी नहीं हो पाते. लड़ाई दिल्ली की है. एक तरफ मोदी हैं तो दूसरी तरफ चेहरे को लेकर सस्पेंस.
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