रांची: झारखंड बनने के बाद वर्ष 2004, 2009, 2014 और 2019 में लोकसभा के आम चुनाव हुए हैं. इस सभी चार आम चुनाव और जमशेदपुर सीट पर हुई उपचुनाव को मिला दें तो सिर्फ और सिर्फ 04 महिला नेता ही लोकसभा पहुंच पाई है. वर्ष 2000 के बाद यानि राज्य गठन के बाद हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की दो महिला नेता लोकसभा सदस्य बनीं हैं. वहीं, झामुमो और भाजपा के टिकट पर एक एक महिला नेता को लोकसभा पहुंचने का मौका मिला है. समझा जा सकता है कि आज जब प्रायः सभी राजनीतिक पार्टियां आधी आबादी को उनका पूरा हक देने की बात करती हो उस स्थिति में भी राज्य निर्माण के बाद से सिर्फ चार महिलाएं ही ऐसी भाग्यशाली साबित हुई हैं जो लोकसभा पहुंच पाई.
आइए जानते हैं कि राज्य गठन के बाद कौन कौन महिला नेता बन पायीं लोकसभा सदस्य
सुशीला केरकेट्टा (खूंटी लोकसभा)
वर्ष 2004 के लोकसभा आम चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार सुशीला केरकेट्टा ने जीत हासिल की थीं. उस वर्ष 13 महिलाएं चुनाव मैदान में उतरी थीं लेकिन जीत सिर्फ सुशीला केरकेट्टा की हुई थी.
सुमन महतो (जमशेदपुर लोकसभा)
राज्य गठन के बाद 2004 लोकसभा चुनाव में झामुमो के सुनील महतो की जीत हुई थी. मार्च 2007 में सुनील महतो की हत्या के बाद उनकी पत्नी सुमन महतो उपचुनाव जीत कर सांसद बनीं.
अन्नपूर्णा देवी (कोडरमा लोकसभा)
राजद की प्रदेश अध्यक्ष और लालू प्रसाद की बेहद करीबी नेताओं में से एक अन्नपूर्णा देवी 2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा में शामिल होकर कोडरमा से उम्मीदवार बनीं और बाबूलाल मरांडी को पराजित कर सांसद बन गयीं. इस बार भी अन्नपूर्णा देवी कोडरमा से चुनाव मैदान में हैं.
गीता कोड़ा- (सिंहभूम लोकसभा सीट)
झारखंड गठन के बाद राज्य से लोकसभा पहुंचने वाली चौथी महिला नेता गीता कोड़ा हैं. पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा 2019 में सिंहभूम लोकसभा सीट से कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की थी. तब उन्होंने कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे गीता कोड़ा को मात देकर सांसद बनीं थी. इस बार वह दल बदल कर भाजपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में हैं.
राज्य की महिला नेताओं की नजर में क्यों लोकसभा जाने से पिछड़ जा रही है आधी आबादी
झारखंड में जनजातीय समाज की आबादी 26% के करीब है. इस समाज में घर गृहस्थी को आगे बढ़ाने में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. बावजूद इसके जिस समाज में महिलाएं राजनीति में पिछड़ जाती हैं.
झामुमो के राज्यसभा सांसद और ख्यातिलब्ध साहित्यकार महुआ माजी कहती हैं कि झारखंड की राजनीति में महिलाओं के पिछड़ेपन की मुख्य वजह राज्य में भाजपा का लंबे दिनों का शासन रहा है. उनके नेता हेमंत सोरेन ने पंचायत स्तर पर महिलाओं को 50% आरक्षण देकर आधी आबादी को राजनीतिक रूप से समृद्ध करने की शुरुआत की है. अब धीरे धीरे स्थितियां बदलेंगी, पहले विधानसभा चुनाव में ज्यादा से ज्यादा महिला विधायक बनेगी फिर सांसद. महुआ माजी ने कहा कि राजनीति में महिलाओं की भागीदारी राष्ट्रीय स्तर पर भी कम है. संसद में सिर्फ 14% महिला सांसद हैं, लेकिन अब जब महिलाएं पढ़ लिखकर आगे बढ़ रही हैं तो राजनीति में भी उनकी संख्या बढ़ेगी.
जीत का समीकरण बैठाने की वजह से ही टिकट पाने में ही पिछड़ जाती हैं महिलाएं- नेली नाथन
कांग्रेस सेवा दल की प्रदेश प्रेसिडेंट नेली नाथन कहती है कि लोकसभा चुनाव जीत कर संसद पहुंचने वाली महिलाओं के पिछड़ने की वजह एक नहीं कई हैं. लेकिन सबसे महत्वपूर्ण कारण यह है कि सभी पार्टियां चुनाव जीतने के लिए प्रत्याशी उतारती हैं, ऐसे में टिकट पाने की होड़ में ही महिलाएं पीछे छूट जाती हैं. उन्होंने कहा कि कांग्रेस चाहती है कि आधी आबादी को इलेक्टोरल पॉलिटिक्स में पूरी हिस्सेदारी मिले लेकिन चुनावी जीत का गणित महिलाओं को पीछे ले जाता है.
मुगलों के शासनकाल की वजह से पिछड़ गयी महिलाएं- उषा पांडेय
झारखंड महिला भाजपा की पूर्व प्रदेश अध्यक्ष, भाजपा की उपाध्यक्ष और समाज कल्याण बोर्ड की अध्यक्ष रहीं प्रदेश भाजपा कार्यकारिणी सदस्य उषा पांडेय कहती हैं कि प्राचीनकाल में महिलाओं को पूरा हक और अधिकार प्राप्त थे, लेकिन मुगल काल मे पर्दा प्रथा की वजह से महिलाएं कमजोर होती हैं. समाज से कटकर वह घर की दहलीज तक सिमट कर रह गयीं. इसका असर झारखंड की राजनीति पर भी हुआ है और महिलाएं राजनीति में पिछड़ गयीं. उन्होंने कहा कि राजनीति की डगर आसान नहीं है, पथरीली राह पर महिलाओं को आगे बढ़ने के लिए सहारे की जरूरत है. इसलिए पीएम मोदी ने 33% आरक्षण का प्रावधान किया है. धीरे धीरे परिस्थितियां बदलेंगी और आधी आबादी की पूरी हिस्सेदारी लोकसभा और विधानसभा में भी देखने को मिलेगा.
इस वर्ष 20 से अधिक महिला उम्मीदवार हैं चुनाव मैदान में
लोकसभा आम चुनाव 2024 में झारखंड में 20 से अधिक महिला नेता, जनता का विश्वास जीतने के लिए चुनाव मैदान में हैं. इनमें सात ऐसी उम्मीदवार हैं जो निर्णायक लड़ाई में हैं. गीता कोड़ा, जोबा मांझी, यशश्विनी सहाय, सीता सोरेन, अन्नपूर्णा देवी, अनुपमा सिंह और ममता भुईयां में से कोई नया चेहरा चुनाव में जीत हासिल कर लोकसभा पहुंचने में सफल होती हैं यह तो 04 जून को ही पता चलेगा. फिलहाल यह कहा जा सकता है कि राज्य की आधी आबादी को अभी लोकसभा में बराबरी की भागीदारी के लिए और संघर्ष करना होगा.
ये भी पढ़ें: