ETV Bharat / state

SHARAD PURNIMA: आज चंद्रमा से होगी अमृत वर्षा, रात में करिए ये जरूरी काम...

आज शरद पूर्णिमा का त्यौहार मनाया जाएगा. किस तरह से आपको यह पर्व मनाना है और क्या है इसका तरीका जान लीजिए.

Etv Bharat
शरद पूर्णिमा पर आज चंद्रमा से होगी अमृत वर्षा (Etv Bharat)
author img

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Oct 16, 2024, 10:22 AM IST

वाराणसी: सनातन धर्म में शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व है क्योंकि ऋतु के परिवर्तन के साथ ही शरद पूर्णिमा का पर्व हल्की गुलाबी ठंड के होने का भी एहसास करने लग जाता है. यह पर्व धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों दृष्टि से महत्वपूर्ण है एक तरफ जहां धार्मिक पक्ष भगवान की उपासना का रास्ता दिखाता है, तो वैज्ञानिक पक्ष चंद्रमा की खीर से निकलने वाली करने के जरिए शरीर को मिलने वाली ऊर्जा और स्वस्थ रहने के तरीकों को दर्शाता है.

शरद पूर्णिमा और कोजागरी पूर्णिमा एक ही दिन: ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी ने बताया, कि सनातन धर्म में आश्विन शुक्ल पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के रूप में जाना जाता है. इस बार आश्विन शुक्ल पूर्णिमा दो दिन 16 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा और कोजागरी पूर्णिमा, 17 अक्टूबर को स्नान-दान की पूर्णिमा एक मास तक अर्थात आश्विन शुक्ल पूर्णिमा से कार्तिक पूर्णिमा तक चलने वाला व्रत-यम-नियम का प्रारंभ होगा. इसी दिन 17 अक्टूबर को ही महर्षि वाल्मिकी जयंती होगी. आश्विन पूर्णिमा तिथि 16 अक्टूबर को रात्रि 07 बजकर 47 मिनट पर लगेगी. जो 17 अक्टूबर को सायं 05 बजकर 23 मिनट तक रहेगी. शास्त्र सम्मत है, कि शरद पूर्णिमा को प्रदोष और निशिथकाल होने वाली पूर्णिमा ली जाती है, तो कोजागरी व्रत की पूर्णिमा में निशिथव्यापिनी होनी चाहिए. अत: इस बार शरद पूर्णिमा और कोजागरी पूर्णिमा दोनों 16 अक्टूबर ही होगी.

रात्रि में आकाश से होती है अमृत की वर्षा: ज्योतिषशास्त्र के अनुसार शरद पूर्णिमा को सम्पूर्ण वर्ष भर में केवल इसी दिन चंद्रमा षोडशकलाओं (16) का होता है. इसी कारण श्रृंगार रस के साक्षात स्वरूप भगवान श्रीकृष्ण ने इसी अवसर पर रासोत्सव का समय उपयुक्त माना था. मान्यता है, कि इसी रात्रि में आकाश से अमृत की वर्षा होती है. शरद पूर्णिमा को प्रभात के समय आराध्य देव को श्वेत वस्त्र एवं आभूषण आदि से सुशोभित करके पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन करना चाहिए. रात्रि के समय गौदुग्ध से बनी खीर, घी और मिष्ठान मिलाकर अद्र्धरात्रि के समय भगवान को अर्पण करें. साथ ही पूर्णचंद्रमा के मध्य आकाश में स्थित होने पर उनका विधिवत पूजन करें. इसके बाद उनको खीर का नैवेद्य अर्पण करें. दूसरे दिन उसका भोजन प्रसाद के रूप में ग्रहण करें.

इसे भी पढ़े-यूपी का एक गांव, जहां पितृ पक्ष में ब्राह्मणों की एंट्री बैन; कोई भी नहीं करता श्राद्ध, वजह कर देगी हैरान - Pitra Paksh 2024

ऐसे करें विधिवत पूजा: आयुर्वेद के अनुसार औषधियों का स्वामी नक्षत्राधिपति चंद्रमा को माना जाता है. इसीलिए इस दिन चंद्र के प्रकाश से आने वाली किरणों में औषधियों का अमृतमयी गुण खीर में आ जाता है, जिससे जीवनी शक्ति मजबूत होती है. इसी दिन कोजागरी व्रत भी किया जायेगा. मान्यता के अनुसार तिथि विशेष पर ऐरावत पर आरूढ़ भगवान इंद्र और महालक्ष्मी का पूजन करके उपवास करें, रात्रि के समय घी से भरा हुआ दीपक और गंध, पुष्पादि से पूजन करें. यथा शक्ति दीप प्रज्ज्वलित कर देवमंदिरों, बाग-बगिचों, तुलसी, पीपल, आवास के अगल-बगल चौराहा-गली, आवास के छतों पर दीपक रखें.

17 अक्टूबर को प्रात:काल स्नानादि कर इंद्र एवं महालक्ष्मी का पूजन कर ब्राह्मणों को घी-शक्कर मिश्रित खीर का भोजन कराकर वस्त्र एवं दक्षिणादि देनी चाहिए. कोजागरी व्रत को करने से अनंत फल की प्राप्ति होती है. रात्रि के समय इंद्र व माता महालक्ष्मी घर-घर जाकर देखते और कहते हैं कि 'को जागृति", अर्थात कौन जाग रहा है. इसके उत्तर में उनका पूजन और दीपों का प्रकाश जिस घर में दिखता है उस घर में जीवन भर स्थिर रूप में माता लक्ष्मी का आशीर्वाद बना रहता है और मां लक्ष्मी उसे अचल पूंजी, धन-धान्य से परिपूर्ण कर देती हैं. यहां तक की मां लक्ष्मी स्थिर लक्ष्मी के रूप में घर में सदैव विराजमान रहती है.

इसे भी पढ़े-90 करोड़ से बदल गया बनारस का सारनाथ, अब नए कलेवर में आएगा नजर, पर्यटकों को मिलेगी ये सुविधा

वाराणसी: सनातन धर्म में शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व है क्योंकि ऋतु के परिवर्तन के साथ ही शरद पूर्णिमा का पर्व हल्की गुलाबी ठंड के होने का भी एहसास करने लग जाता है. यह पर्व धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों दृष्टि से महत्वपूर्ण है एक तरफ जहां धार्मिक पक्ष भगवान की उपासना का रास्ता दिखाता है, तो वैज्ञानिक पक्ष चंद्रमा की खीर से निकलने वाली करने के जरिए शरीर को मिलने वाली ऊर्जा और स्वस्थ रहने के तरीकों को दर्शाता है.

शरद पूर्णिमा और कोजागरी पूर्णिमा एक ही दिन: ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी ने बताया, कि सनातन धर्म में आश्विन शुक्ल पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के रूप में जाना जाता है. इस बार आश्विन शुक्ल पूर्णिमा दो दिन 16 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा और कोजागरी पूर्णिमा, 17 अक्टूबर को स्नान-दान की पूर्णिमा एक मास तक अर्थात आश्विन शुक्ल पूर्णिमा से कार्तिक पूर्णिमा तक चलने वाला व्रत-यम-नियम का प्रारंभ होगा. इसी दिन 17 अक्टूबर को ही महर्षि वाल्मिकी जयंती होगी. आश्विन पूर्णिमा तिथि 16 अक्टूबर को रात्रि 07 बजकर 47 मिनट पर लगेगी. जो 17 अक्टूबर को सायं 05 बजकर 23 मिनट तक रहेगी. शास्त्र सम्मत है, कि शरद पूर्णिमा को प्रदोष और निशिथकाल होने वाली पूर्णिमा ली जाती है, तो कोजागरी व्रत की पूर्णिमा में निशिथव्यापिनी होनी चाहिए. अत: इस बार शरद पूर्णिमा और कोजागरी पूर्णिमा दोनों 16 अक्टूबर ही होगी.

रात्रि में आकाश से होती है अमृत की वर्षा: ज्योतिषशास्त्र के अनुसार शरद पूर्णिमा को सम्पूर्ण वर्ष भर में केवल इसी दिन चंद्रमा षोडशकलाओं (16) का होता है. इसी कारण श्रृंगार रस के साक्षात स्वरूप भगवान श्रीकृष्ण ने इसी अवसर पर रासोत्सव का समय उपयुक्त माना था. मान्यता है, कि इसी रात्रि में आकाश से अमृत की वर्षा होती है. शरद पूर्णिमा को प्रभात के समय आराध्य देव को श्वेत वस्त्र एवं आभूषण आदि से सुशोभित करके पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन करना चाहिए. रात्रि के समय गौदुग्ध से बनी खीर, घी और मिष्ठान मिलाकर अद्र्धरात्रि के समय भगवान को अर्पण करें. साथ ही पूर्णचंद्रमा के मध्य आकाश में स्थित होने पर उनका विधिवत पूजन करें. इसके बाद उनको खीर का नैवेद्य अर्पण करें. दूसरे दिन उसका भोजन प्रसाद के रूप में ग्रहण करें.

इसे भी पढ़े-यूपी का एक गांव, जहां पितृ पक्ष में ब्राह्मणों की एंट्री बैन; कोई भी नहीं करता श्राद्ध, वजह कर देगी हैरान - Pitra Paksh 2024

ऐसे करें विधिवत पूजा: आयुर्वेद के अनुसार औषधियों का स्वामी नक्षत्राधिपति चंद्रमा को माना जाता है. इसीलिए इस दिन चंद्र के प्रकाश से आने वाली किरणों में औषधियों का अमृतमयी गुण खीर में आ जाता है, जिससे जीवनी शक्ति मजबूत होती है. इसी दिन कोजागरी व्रत भी किया जायेगा. मान्यता के अनुसार तिथि विशेष पर ऐरावत पर आरूढ़ भगवान इंद्र और महालक्ष्मी का पूजन करके उपवास करें, रात्रि के समय घी से भरा हुआ दीपक और गंध, पुष्पादि से पूजन करें. यथा शक्ति दीप प्रज्ज्वलित कर देवमंदिरों, बाग-बगिचों, तुलसी, पीपल, आवास के अगल-बगल चौराहा-गली, आवास के छतों पर दीपक रखें.

17 अक्टूबर को प्रात:काल स्नानादि कर इंद्र एवं महालक्ष्मी का पूजन कर ब्राह्मणों को घी-शक्कर मिश्रित खीर का भोजन कराकर वस्त्र एवं दक्षिणादि देनी चाहिए. कोजागरी व्रत को करने से अनंत फल की प्राप्ति होती है. रात्रि के समय इंद्र व माता महालक्ष्मी घर-घर जाकर देखते और कहते हैं कि 'को जागृति", अर्थात कौन जाग रहा है. इसके उत्तर में उनका पूजन और दीपों का प्रकाश जिस घर में दिखता है उस घर में जीवन भर स्थिर रूप में माता लक्ष्मी का आशीर्वाद बना रहता है और मां लक्ष्मी उसे अचल पूंजी, धन-धान्य से परिपूर्ण कर देती हैं. यहां तक की मां लक्ष्मी स्थिर लक्ष्मी के रूप में घर में सदैव विराजमान रहती है.

इसे भी पढ़े-90 करोड़ से बदल गया बनारस का सारनाथ, अब नए कलेवर में आएगा नजर, पर्यटकों को मिलेगी ये सुविधा

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.