सिरमौर: जिला सिरमौर की सबसे ऊंची चोटी चूड़धार स्थित शिरगुल महाराज के मंदिर में 11 अक्टूबर को धार्मिक अनुष्ठान यानी शांद महायज्ञ का आयोजन किया जाएगा. करीब 50 साल बाद चूड़धार चोटी पर इस तरह का बड़ा धार्मिक आयोजन हो रहा है. यहां 11:00 बजे से लेकर 1:00 बजे के बीच कुरुड़ स्थापित किया जाएगा. इस दौरान क्षेत्र से शिरगुल महाराज की 12 पालकियां चूड़धार पहुंचेगी. इस अनुष्ठान में 30 हजार से अधिक श्रद्धालुओं के जुटने की संभावना है.
चूड़धार मंदिर के जीर्णोंद्धार का कार्य पिछले 20-22 वर्षों से किया जा रहा है. मंदिर का निर्माण कार्य अब पूरा हो चुका है. मंदिर में लकड़ी की अद्भुत नक्काशी की गई है.
शांद महायज्ञ का आयोजन चूड़ेश्वर सेवा समिति के अलावा कुपवी, नेरवा, हामल व चौपाल परगने की दर्जनों पंचायतों के लोगों की ओर से करवाया जा रहा है. इन दिनों अनुष्ठान की तैयारियां जोरों से चल रही हैं. चूड़धार में शिरगुल मंदिर को दुल्हन की तरह सजाया जा रहा है. मंदिर को सजाने के लिए पांच क्विंटल फूल मंगवाए गए है. सजावटी फूलों पर करीब एक लाख 25 हजार की राशि खर्च की जा रही है.
कंबलों पर खर्च होंगे 5 से 6 लाख
अनुष्ठान के लिए बनने वाले भोजन के लिए बर्तनों की व्यवस्था चूड़ेश्वर समिति की ओर से की जा रही है. समिति ने बर्तनों की खरीदारी कर ली है. हालांकि, समिति के पास चूड़धार में हजारों कंबलों की व्यवस्था है, मगर अनुष्ठान में श्रद्धालुओं को ठहरने में दिक्कत न हो, इसलिए आयोजन के लिए समिति लगभग 1,000 नए कंबलों की खरीदारी कर रही है. समिति कंबलों की खरीदारी पर लगभग 5 से 6 लाख तक खर्च कर रही है.
50 सालों बाद हो रहा ये यज्ञ
शांद महायज्ञ के दौरान कार सेवकों के लिए लगभग ढाई हजार से अधिक पर्ने बनाए जा रहे हैं, जिसका अनुमानित खर्च लगभग 75,000 रुपये है. केंद्रीय समिति की ओर से सभी वॉलंटियर्स और कार सेवकों के लिए पहचान पत्र भी उपलब्ध करवाए जा रहे हैं. चूड़धार में यह धार्मिक अनुष्ठान करीब 50 वर्षों के बाद आयोजित किया जा रहा है. अनुष्ठान में शिमला, सोलन व सिरमौर जिले के अलावा पड़ोसी राज्य उत्तराखंड से करीब 30 हजार से अधिक श्रद्धालु शिरकत कर सकते हैं. यदि मौसम साफ रहा तो आंकड़ा 40 हजार भी पार कर सकता है.
क्या है शांद यज्ञ
महिषासुर के वध के बाद महाशक्ति का रूप विकराल हो गया. उन्होंने सृष्टि का संहार करना शुरू कर दिया. महाशक्ति को शांत करने के लिए शिव भदवान उनके रास्ते में लेट गए. देवी जब उधर से गुजरी तो अनजाने में ही उनका एक पांव शिव की छाती पर पड़ गया. महाशक्ति को जब अपनी भूल का एहसास हुआ और उन्होंने अपनी इस भूल की शिवजी से क्षमा मांगी. इसके बाद देवी का भयंकर रूप एक दम से शांत हो गया. इसी के बाद शांत या शांद महायज्ञ का आयोजन होने लगा. शांत महायज्ञ का आयोजन भुंडा उत्सव की भांति 12 सालों के बाद होता है. इसका संचालन ‘खूंद’ (खश जाति की एक बहादुर शाखा) के हाथों सौंपा जाता है.
ये भी पढ़ें: "विक्रमादित्य ने की 'योगी मॉडल' लागू करने की बात, कांग्रेस ने लगाई फटकार, राहुल-प्रियंका कैंप में दो फाड़"