शहडोल। शहडोल संभाग आदिवासी बाहुल्य संभाग है. जंगलों से घिरा हुआ क्षेत्र है. खनिज संपदा की भरमार है और आज हम आपको एक ऐसे फूल के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसकी खासियत ऐसी है कि उस फूल की रखवाली के लिए लोग उस पेड़ के नीचे रात भर गुजारने को भी तैयार हो जाते हैं. रात भर उसकी सुरक्षा करते हैं और फिर उस फूल को इकट्ठा करते हैं. हम बात कर रहे हैं, यहां के जंगलों में बहुतायत में पाए जाने वाले महुआ के फूल की. जो आदिवासियों के आय का एक साधन है. महुआ का ये फूल आदिवासी महिलाओं के लिए बटुआ का भी काम करता है.
बड़े काम का महुआ फूल
इन दिनों यहां के जंगलों में खेतों में आप जहां भी जाएंगे, आदिवासी समुदाय के लोगों को महुआ के फूल बटोरते पा जाएंगे, क्योंकि ये महुआ के फूल सिर्फ एक फूल नहीं हैं, बल्कि इनके लिए बहुत बहुमूल्य है. इन दिनों महुआ के फूल का सीजन चल रहा है. आदिवासी अंचल में आदिवासी समाज के लोग बड़े उत्साह के साथ महुआ के फूल बटोरने का काम कर रहे हैं. यह महुआ का फूल इनके लिए बहुत कीमती है, क्योंकि बाजार में यह अच्छे दामों में बिकता है. इसे बेचकर संकट के समय पैसे का ये लोग इस्तेमाल करते हैं.
रात भर करते हैं रखवाली
आदिवासी समाज के लोगों के बीच महुआ के फूल के सीजन में महुआ के फूल को बिनने का इतना क्रेज होता है, कि इसे बिनने के लिए छोटा और बड़े से लेकर बुजुर्ग सभी बड़े उत्साह के साथ जाते हैं. इस सीजन को वो एक त्यौहार की तरह लेते हैं. बड़े उत्साह के साथ रात भर जाकर इसके फूल की रखवाली करते हैं, क्योंकि महुआ के फूल जैसे-जैसे गर्मी बढ़ता है, पेड़ से गिरता जाता है. उसे मवेशी भी खाते हैं और इसीलिए इसकी सुरक्षा के लिए वो रात भर इसकी रखवाली करने को मजबूर भी हो जाते हैं.
कई महुआ के फूल ऐसे होते हैं, जो रात में ही गिर जाते हैं. कई सुबह तो कई दिन में गिरते हैं. ऐसे महुआ के फूल जो रात में गिरते हैं. उनकी रखवाली के लिए यह लोग रात भर उस पेड़ के नीचे गुजारते हैं. उसकी सुरक्षा करते हैं और फिर उसे दिनभर बिनते हैं और घर लाकर सुखाते हैं. इसके फूल के लिए जिस तरह से यह आदिवासी समाज के लोग मेहनत करते हैं.
चोर और मवेशियों से बचाने रखवाली जरूरी
रामखेलावन बैगा बताते हैं की एरा प्रथा चल रहा है. मवेशी दिन रात घूमते रहते हैं और महुआ की ये फूल इन मवेशियों को भी खूब पसंद है. बड़े चाव के साथ खाते हैं, इसलिए उसकी रखवाली के लिए उन्हें रात भी पेड़ के नीचे ही गुजारना पड़ता है. इसके अलावा अगर वो महुआ की रखवाली के लिए नहीं जाएंगे, तो ये इतना बहुमूल्य और कीमती होता है कि दूसरे लोग इसे चुरा कर ले जाते हैं.
महिलाओं का 'बटुआ'
महुआ का फूल एक तरह से कहा जाए तो आदिवासी महिलाओं का बटुआ भी है, इस आदिवासी अंचल में बड़े उत्साह के साथ लोग महुआ के फूल को बटोरते हैं, उसे सुखाते हैं. अपने पास सुरक्षित रखते हैं कुछ तो खाने के लिए अपने पास बचा लेते हैं. बाकी जरूरत से ज्यादा बेच देते हैं. महुआ के फूल को आदिवासी समाज की महिलाओं का बटुआ कहें या पर्स कहें तो गलत नहीं होगा, क्योंकि ज्यादातर जगहों पर महुआ के फूल पर आदिवासी समाज की महिलाओं का ही एकाधिकार होता है. इसमें पुरुष वर्ग बिल्कुल भी हक नहीं जमाता है. इस महुआ को बेचकर महिलाएं इस पैसे को अपने पास सहेज कर रखती हैं. संकट के समय इसे इस्तेमाल करते हैं.
बड़े काम का महुआ का पेड़
एक तरह से देखा जाए तो पूरा महुआ का पेड़ ही बहुत काम का होता है. आयुर्वेद के तौर पर देखें तो महुआ का छाल, महुआ का फूल और महुआ का फल, महुआ की पत्ती, सभी का उपयोग आयुर्वेद में होता है. इससे कई अलग-अलग मर्ज के लिए औषधि भी तैयार की जाती है. इसके अलावा महुआ का फूल अच्छे दामों पर बाजार में बिकता है. इससे बहुत ही पौष्टिक व्यंजन भी बनाए जाते हैं. आदिवासी समाज के लोग अलग-अलग तरीके से इसका सेवन भी करते हैं, जो उनके स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा होता है. साथ ही फूल के बाद जब महुआ में फल लगते हैं, तो वो भी बहुत कीमती होता है. इसका तेल सेहत के लिए बहुत अच्छा होता है. आदिवासी समाज के कुछ लोग इसके तेल को खाने में भी इस्तेमाल करते हैं. साथ ही कुछ लोग इसको शरीर में लगाने में इस्तेमाल करते हैं.
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महुआ के आगे दूसरे काम फेल
आदिवासी समाज के बीच महुआ के फूल की कितनी अहमियत है. इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि जब महुआ का सीजन आता है, तो ना तो आपको काम करने के लिए मजदूर मिलेंगे, ना ही कोई दूसरा काम आदिवासी समाज के लोग इस सीजन में करना पसंद करते हैं. महुआ के सीजन को ये लोग त्योहार की तरह लेते हैं. बड़े ही उत्साह के साथ महुआ बिनने के लिए जंगलों में खेतों में पूरे परिवार के साथ जाते हैं. इस सीजन में ज्यादातर परिवार के लोग काम करना ही बाहर छोड़ देते हैं, क्योंकि काम करने से ज्यादा पैसा इन्हें महुआ से मिल जाता है.
महुआ के फूल पर कुदरत का कहर
महुआ के फूल बिन रहे आदिवासियों ने बताया कि मौजूदा सीजन में वो इस बार महुआ के फूल ज्यादा नहीं बिन पाए हैं, क्योंकि इस बार इस फसल पर भी कुदरत का कहर टूटा है, आए दिन मौसम बदलता है, कभी बदली हो जाती है, कभी बारिश होती है, कभी बिजली चमकती है, जिसकी वजह से महुआ की फसल बर्बाद हो गई है, और इस बार अच्छी खासी फसल नहीं हुई है, जिसे लेकर आदिवासी समाज के ये लोग निराश भी हैं और हताश भी हैं.