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आत्मनिर्भर भारत: चूल्हे और गोबर से स्कूटी और स्मार्ट फोन तक आदिवासी महिलाओं के हौसलों की उड़ान - SELF RELIANT INDIA

सरगुजा की आदिवासी महिलाएं अब न सिर्फ खुद आत्मनिर्भर बन रहीं हैं, बल्कि वह दूसरी महिलाओं को भी स्वरोजगार के लिए प्रेरित कर रहीं हैं.

Self reliant tribal women of CG
आदिवासी महिलाओं के हौसलों की उड़ान (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Nov 20, 2024, 2:32 PM IST

Updated : Nov 22, 2024, 3:20 PM IST

सरगुजा : छत्तीसगढ़ के सरगुजा की आदिवासी ग्रामीण महिलाओं ने तरक्की के सफर की नई राह चुनी है. ये वो महिलाएं हैं, जो कभी घर की चार दीवारी में रहती थीं. चूल्हे में खाना बनाना, बच्चों को संभालना, मिट्टी के घर को गोबर से लीपना, यही इनका जीवन हुआ करता था. अब इनका जीवन पूरी तरह बदल गया है.

चूल्हे से स्कूटी और मोबाइल तक का सफर : पहले जो महिलाएं किसी से बात करने में भी घबराती थीं, वो आज स्कूटी चलाती हैं. मोबाइल में सोशल मीडिया के विभिन्न हैंडल ऑपरेट करती हैं. शहर के बैंक जाकर सारा लेन देन अकेले कर लेती हैं. घर के चूल्हे और गोबर से स्कूटी और मोबाइल तक का सफर जागरूकता से जुड़ा है.

आत्मनिर्भर भारत की मिसाल बनती महिलाएं (ETV BHARAT)

आत्मनिर्भर होती आदिवासी महिलाएं : सरगुजा की आदिवासी महिलाएं अब इतनी जागरूक हो चुकी हैं कि किसी भी मंच पर जाकर बेझिझक बात कर सकती हैं. यह महिलाएं आत्मनिर्भर हैं. घर में जरूरत के महंगे सामान भी खुद खरीदकर ले आती हैं.

सरगुजा की आत्मनिर्भर महिला का सफर : कुछ ऐसी ही कहानी है, सरगुजा जिले के घंघरी में रहने वाली सोनी पैकरा की. इस महिला की उम्र 28 साल है.सोनी पैकरा ने कभी कॉलेज की शक्ल नहीं देखी. 12 वीं तक की पढ़ाई करने के बाद तुरंत ही 2013 में परिवार ने सोनी का विवाह करा दिया था. सोनी आज आत्मनिर्भर हैं. सरकार की बिहान योजना से जुड़कर बैंक से लोन लिया और बकरी पालन शुरू किया. कुछ जमीन में सब्जियां लगाई.

अन्य महिलाओं को कर रही प्रेरित : जब कमाई होने लगी तो सोनी ने सबसे पहले अपने लिये स्कूटी खरीदी. फिर घर में टीवी, फ्रीज, कूलर वॉसिंग मशीन जैसी महंगी वस्तुएं भी खरीदी. जब सोनी आत्मनिर्भर बन गईं तो अन्य महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बनाने का मन बनाया और बिहान में आरबीके (रिसोर्स बुक कीपर) बन गईं. सोनी आज 10 ग्राम पंचायतों की करीब 200 से 250 महिलाओं को बिहान से जोड़कर स्वरोजगार शुरू करा चुकी हैं.

पहले घरेलू महिला थी, लेकिन समूह से जुड़कर लोन लिया और उस पैसे से खेती और बकरी पालन शुरू किया, जिससे अच्छी आमदनी हुई. अब समूह में काम करते हुए राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन में आरबीके (रिसोर्स बुक कीपर) बन चुकी हूं. स्वरोजगार की कमाई के साथ साथ प्रोत्साहन राशि भी मिलती है : सोनी पैकरा, रिसोर्स बुक कीपर

बिहान के कारण लोगों का जीवन बदला : सोनी पैकरा कहती हैं कि बिहान के कारण हम लोगों का जीवन बदल चुका है. सभी आत्मनिर्भर बन चुकी हैं. घर खर्च के लिये भी किसी पर आश्रित नही रहना पड़ता है. पहले गांव में महिला सिर्फ एक दूसरे से चुगली करती थी, अब सब काम करती हैं. मैं 10 गांव देखती हूं. इनमें करीब 200 से 250 महिलाओं को बिहान से जोड़ चुकी हूं.

सोनी पैकरा ने मेहनत की और सफल हुई हैं. उनको देखकर मैं भी समूह से जुड़ी हूं. अब मैं भी स्वरोजगार करती हूं : माधवी, समूह की कार्यकर्ता

सोनी ने एक आदिवासी होकर भी घर से बाहर निकलकर नाम और पैसा कमाया है, जिस कारण आज उनको सब जानते हैं. घूंघट से बाहर निकलकर आज वो स्कूटी से घूमकर काम करती हैं : सपना बैरागी, प्रोफेशनल रिसोर्स पर्सन

सैकड़ों महिलाओं का जीवन बदला : राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के जिला समन्वयक नीरज नामदेव बताते हैं कि सोनी समूह से 2014 में जुड़ी थी, लेकिन सफलता नहीं मिली. जब 2017 में समूह को नए स्वरूप में विकसित किया गया, तब उसने दोबारा प्रयास किया और आज वो बेहतर जीवन जी रही है. उसने अपने साथ ही आसपास की सैकड़ों महिलाओं का जीवन बदला है. राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन से जिले में ऐसी कई सोनी पैकरा बनी हैं जो आज आत्मनिर्भर हैं.

छत्तीसगढ़ ने मत्स्य पालन में फिर लहराया परचम, इस जिले को मिलेगा बेस्ट इनलैंड डिस्ट्रिक्ट अवार्ड
धान खरीदी का आंकड़ा 3 लाख टन के पार, किसानों को 502.53 करोड़ रूपए का भुगतान
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय का दिल्ली दौरा, हवाई सेवाओं के विस्तार और औद्योगिक विकास पर चर्चा

सरगुजा : छत्तीसगढ़ के सरगुजा की आदिवासी ग्रामीण महिलाओं ने तरक्की के सफर की नई राह चुनी है. ये वो महिलाएं हैं, जो कभी घर की चार दीवारी में रहती थीं. चूल्हे में खाना बनाना, बच्चों को संभालना, मिट्टी के घर को गोबर से लीपना, यही इनका जीवन हुआ करता था. अब इनका जीवन पूरी तरह बदल गया है.

चूल्हे से स्कूटी और मोबाइल तक का सफर : पहले जो महिलाएं किसी से बात करने में भी घबराती थीं, वो आज स्कूटी चलाती हैं. मोबाइल में सोशल मीडिया के विभिन्न हैंडल ऑपरेट करती हैं. शहर के बैंक जाकर सारा लेन देन अकेले कर लेती हैं. घर के चूल्हे और गोबर से स्कूटी और मोबाइल तक का सफर जागरूकता से जुड़ा है.

आत्मनिर्भर भारत की मिसाल बनती महिलाएं (ETV BHARAT)

आत्मनिर्भर होती आदिवासी महिलाएं : सरगुजा की आदिवासी महिलाएं अब इतनी जागरूक हो चुकी हैं कि किसी भी मंच पर जाकर बेझिझक बात कर सकती हैं. यह महिलाएं आत्मनिर्भर हैं. घर में जरूरत के महंगे सामान भी खुद खरीदकर ले आती हैं.

सरगुजा की आत्मनिर्भर महिला का सफर : कुछ ऐसी ही कहानी है, सरगुजा जिले के घंघरी में रहने वाली सोनी पैकरा की. इस महिला की उम्र 28 साल है.सोनी पैकरा ने कभी कॉलेज की शक्ल नहीं देखी. 12 वीं तक की पढ़ाई करने के बाद तुरंत ही 2013 में परिवार ने सोनी का विवाह करा दिया था. सोनी आज आत्मनिर्भर हैं. सरकार की बिहान योजना से जुड़कर बैंक से लोन लिया और बकरी पालन शुरू किया. कुछ जमीन में सब्जियां लगाई.

अन्य महिलाओं को कर रही प्रेरित : जब कमाई होने लगी तो सोनी ने सबसे पहले अपने लिये स्कूटी खरीदी. फिर घर में टीवी, फ्रीज, कूलर वॉसिंग मशीन जैसी महंगी वस्तुएं भी खरीदी. जब सोनी आत्मनिर्भर बन गईं तो अन्य महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बनाने का मन बनाया और बिहान में आरबीके (रिसोर्स बुक कीपर) बन गईं. सोनी आज 10 ग्राम पंचायतों की करीब 200 से 250 महिलाओं को बिहान से जोड़कर स्वरोजगार शुरू करा चुकी हैं.

पहले घरेलू महिला थी, लेकिन समूह से जुड़कर लोन लिया और उस पैसे से खेती और बकरी पालन शुरू किया, जिससे अच्छी आमदनी हुई. अब समूह में काम करते हुए राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन में आरबीके (रिसोर्स बुक कीपर) बन चुकी हूं. स्वरोजगार की कमाई के साथ साथ प्रोत्साहन राशि भी मिलती है : सोनी पैकरा, रिसोर्स बुक कीपर

बिहान के कारण लोगों का जीवन बदला : सोनी पैकरा कहती हैं कि बिहान के कारण हम लोगों का जीवन बदल चुका है. सभी आत्मनिर्भर बन चुकी हैं. घर खर्च के लिये भी किसी पर आश्रित नही रहना पड़ता है. पहले गांव में महिला सिर्फ एक दूसरे से चुगली करती थी, अब सब काम करती हैं. मैं 10 गांव देखती हूं. इनमें करीब 200 से 250 महिलाओं को बिहान से जोड़ चुकी हूं.

सोनी पैकरा ने मेहनत की और सफल हुई हैं. उनको देखकर मैं भी समूह से जुड़ी हूं. अब मैं भी स्वरोजगार करती हूं : माधवी, समूह की कार्यकर्ता

सोनी ने एक आदिवासी होकर भी घर से बाहर निकलकर नाम और पैसा कमाया है, जिस कारण आज उनको सब जानते हैं. घूंघट से बाहर निकलकर आज वो स्कूटी से घूमकर काम करती हैं : सपना बैरागी, प्रोफेशनल रिसोर्स पर्सन

सैकड़ों महिलाओं का जीवन बदला : राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के जिला समन्वयक नीरज नामदेव बताते हैं कि सोनी समूह से 2014 में जुड़ी थी, लेकिन सफलता नहीं मिली. जब 2017 में समूह को नए स्वरूप में विकसित किया गया, तब उसने दोबारा प्रयास किया और आज वो बेहतर जीवन जी रही है. उसने अपने साथ ही आसपास की सैकड़ों महिलाओं का जीवन बदला है. राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन से जिले में ऐसी कई सोनी पैकरा बनी हैं जो आज आत्मनिर्भर हैं.

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Last Updated : Nov 22, 2024, 3:20 PM IST
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