पटना : हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है. चैत्र नवरात्रि का आज दूसरा दिन है. आज मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है. यह मां दुर्गा का दूसरा स्वरूप और नव शक्तियों में से दूसरी शक्ति हैं. इस दिन देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा अर्चना करने का विधान है.
नवरात्रि का दूसरा दिन आज : आचार्य रामशंकर दूबे ने बताया कि माता के नाम से उनकी शक्तियों के बारे में जानकारी मिलती है. 'ब्रह्म' का अर्थ है 'तपस्या' और 'चारिणी' का अर्थ है 'आचरण करने वाली' अर्थात 'तप का आचरण करने वाली'. ब्रह्मचारिणी की पूजा अर्चना कर भक्त आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. मां ब्रह्मचारिणी को ज्ञान ज्ञान और वैराग्य की देवी कहा जाता है.
ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि : मां ब्रह्मचारिणी की पूजा अर्चना करने से पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करके फूल, अक्षत, लौंग, इलायची, मेवा मिष्ठान और गाय के दूध का पंचामृत बनाकर के भोग लगाना चाहिए. मां ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ में जप की माला व बाएं हाथ में कमंडल है. मां को आज के दिन सफेद फूल और सफेद मिठाई चढ़ाने का विशेष महत्व है.
मां को चढ़ाएं सफेद पुष्प : पूजा के दौरान लौंग, इलाइची, पान का पत्ता मां को समर्पित करें और उसके बाद विधिपूर्वक पूजा करें, हवन करें. मां की आरती उतारें. जो भी भक्त सच्ची श्रद्धा भाव से मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करते हैं उनको सभी कार्यों में सफलता मिलती है. ऐसे तो नवरात्र में नौ देवी के स्वरूपों की पूजा करना फल दायक है.
कौन हैं मां ब्रह्मचारिणी : मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से मन की शांति प्राप्त होती है. ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि ब्रह्मचारिणी माता कठिन तप और साधना से ही शिवजी को प्राप्त करने में सफलता हासिल की थीं. आचार्य रामशंकर दूबे ने बताया कि हिंदू मान्यताओं के अनुसार मां ब्रह्मचारिणी का जन्म हिमालय राज पर्वत के घर हुआ था. जिनकी माता का नाम मैना था.
मां जुड़ी पौराणिक कथा : एक बार नारद जी से हिमालय राज ने कन्या के भविष्य के बारे में जानना चाहा. तब नारद जी ने कहा की वैवाहिक जीवन में अवरोध है. और नारद जी ने कन्या के वैवाहिक जीवन में सुगमता अन्य समस्याओं के निवारण के लिए व्रत तपस्या का विधान बताया. जब माता पार्वती भगवान शिव को अपना वर बनाने के लिए तपस्या पर बैठी थीं तो उन्होंने सब कुछ त्याग करके ब्रह्मचर्य अपना लिया था.
कठिन तप से मिले शिव : हजारों वर्ष तक समस्त देव और ब्रह्मदेव की आराधना मां के द्वारा की गई. इस तपस्या का उल्लेख भी गोस्वामी तुलसीदास जी ने श्री रामचरितमानस में की. कठिन तपस्या और व्रत से सभी लोग प्रसन्न हुए और फिर सभी देवी देवताओं ने माता को आशीर्वाद दिया. शिव को पति के रूप में पाने का वरदान मिला. जिसके बाद भोलेनाथ की अर्धांगिनी बनने का अवसर मिला. मां के इस रूप को ब्रह्मचारिणी के नाम से जाना जाता है.
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