देहरादून: उत्तराखंड में चारधाम ऑल वेदर रोड परियोजना हो या ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेल परियोजना के तहत टनल बनाए जा रहे हैं. ताकि, आवाजाही सुगम और आसान हो सके, लेकिन बीते साल सिलक्यारा टनल निर्माण के दौरान बड़ा हादसा हुआ. जिसके चलते 41 मजदूरों की जान पर बन आई. इसके बाद राज्य और केंद्र सरकार के तमाम प्रयासों से टनल में फंसे सभी मजदूरों को सुरक्षित निकाल लिया गया, लेकिन इस घटना के बाद कई तरह के सवाल भी उठे. वहीं, आज हिमालय दिवस पर भी टनल को लेकर वैज्ञानिकों ने अपनी राय रखी.
आईआईटी पटना के डायरेक्टर प्रोफेसर टीएन सिंह ने कही ये बात: वैज्ञानिकों ने हिमालय में टनल की बड़ी संभावनाओं पर जोर दिया. बशर्ते टनल निर्माण के दौरान अध्ययन के साथ तमाम पहलुओं का ध्यान रखा जाए. हिमालय में टनल निर्माण के सवाल पर आईआईटी पटना के डायरेक्टर प्रोफेसर टीएन सिंह ने बताया कि टनल हमेशा सेफ्टी के लिए ही बनाई जाती है. क्योंकि, लॉन्ग टर्म के लिए कॉस्ट इफेक्टिव है, लेकिन हिमालय में टनल का निर्माण करना एक बड़ी भी चुनौती है. क्योंकि, हिमालय में तमाम तरह के पत्थरों के साथ ही पानी की समस्या, एक्टिव टेक्टोनिक्स की समस्या समेत तमाम दिक्कतें हैं.
टनल बनाने के लिए प्रकृति के साथ बनाना होगा बेहतर तालमेल: ऐसे में इन तमाम पहलुओं को ध्यान में रखकर अगर अच्छे से टनल का निर्माण किया जाए तो टनल सुरक्षित रहेगी. टनल एक बेहतर माध्यम से जिससे दूरी घटने के साथ ही समय की काफी बचत होती है. साथ ही कहा कि अगर हिमालय में टनल बनाना है तो प्रकृति के साथ बेहतर तालमेल बनाना होगा, नहीं तो प्रकृति भी अपनी प्रतिक्रिया देती है. जिसको समझने की जरूरत है.
टनल निर्माण के दौरान इनका रखना चाहिए ध्यान: इसके अलावा टनल बोरिंग मशीन का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करना चाहिए, लेकिन टनल बोरिंग मशीन तभी सफल हो सकती है, जब उस क्षेत्र की जियोलॉजी, मटेरियल प्रॉपर्टी और स्ट्रक्चर समेत अन्य पहलुओं के अध्ययन हो. उसके बाद ही टनल को बनाने के तरीकों को अपनाना चाहिए. इसके अलावा पर्वतीय क्षेत्रों में टनल निर्माण के दौरान कम से कम ब्लास्टिंग करना चाहिए. ताकि, उसका दूरगामी परिणाम सामने आ आए.
सिलक्यारा टनल हादसे का क्या था कारण? सिलक्यारा टनल हादसे के सवाल पर प्रो. टीएन सिंह का कहना है कि जब टनल का निर्माण करते हैं तो पहाड़ के संतुलन को डिस्टर्ब करते हैं. ऐसे में संतुलन को बनाए रखने के लिए कोई न कोई मेकेनिज्म होना चाहिए. जिसका अभाव सिलक्यारा टनल में देखने को मिला. दरअसल, जिस जगह पर टनल बना रहे हैं, अगर वहां का पत्थर कमजोर है तो संतुलन बनाने के लिए कुछ घंटों के भीतर सपोर्ट बनाना होता है, लेकिन अगर किसी वजह सही ढंग से सपोर्ट नहीं बन पाया तो लूज मटेरियल नीचे गिरेगा.
जब एक बार लूज मटेरियल नीचे गिरना शुरू हो गया तो फिर ये लगातार जारी रहेगा. क्योंकि, एक मेटेरियल दूसरे मटेरियल को नीचे गिरने के लिए वजह बनती जाती है. ऐसा ही कुछ सिलक्यारा टनल में देखने को मिला. क्योंकि, इस टनल के निर्माण के दौरान सपोर्ट सिस्टम पर ध्यान नहीं दिया गया. जिसके चलते टनल के अंदर लूज मेटेरियल का पहाड़ खड़ा हो गया.
हिमालय में टनल बनाने की संभावनाएं: हिमालय में टनल बनाने की संभावनाओं के सवाल पर प्रो. टीएन सिंह ने कहा कि हिमाचल प्रदेश में नाथपा झाकड़ी जलविद्युत परियोजना टनल है, जो 1500 मेगावाट का हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट है. उसके अंदर करीब 40 किलोमीटर की टनल है. खास बात ये है कि पावर स्टेशन भी टनल के अंदर है.
उसके ऊपर बसे गांव सुरक्षित हैं. ऐसे में हिमालय क्षेत्र में टनल बनाने की संभावनाएं तो बहुत है, लेकिन तकनीकी का इस्तेमाल बहुत ही सोच समझ कर किया जाना चाहिए. क्योंकि, बिना अध्ययन और सोच समझ कर अगर टनल बनाते हैं तो उससे आपदा आने की संभावना है.
वाडिया संस्थान में जुटे वैज्ञानिक: वहीं, हिमालय दिवस के अवसर पर वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान देहरादून में मंथन कार्यक्रम का आयोजन किया गया. कार्यक्रम में वाडिया के वैज्ञानिकों के साथ ही देश के तमाम संस्थाओं के वैज्ञानिक भी शामिल हुए. देशभर के तमाम संस्थाओं से शामिल हुए वैज्ञानिकों ने हिमालय की स्थितियां और परिस्थितियों को लेकर तमाम महत्वपूर्ण पहलुओं पर जानकारी को साझा किया. ताकि, हिमालय संरक्षण और संवर्धन के प्रति एक विस्तृत रोडमैप तैयार कर न सिर्फ उसे दिशा में काम किया जा सके. बल्कि, आम जनता को भी इसके प्रति जागरूक किया जा सके.
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