बागेश्वर: अल्मोड़ा जिले के ताकुला क्षेत्र के सतराली की होली पौराणिक परंपरा के अनुसार महाशिवरात्रि को बाबा बागनाथ के धाम पहुंची. मंदिर में करीब तीन घंटे तक होली गायन किया गया. सतराली के सात गांवों के लोग हर साल बाबा बागनाथ के धाम से होली गायन की शुरूआत करते हैं, इसलिए इस साल भी उन्होंने सबसे पहले 'शंभू तुम क्यों न खेलो होली लला' गीत का गायन किया और एक दूसरे को अबीर-गुलाल का टीका लगाकर महाशिवरात्रि और होली की बधाई दी.
बाबा बागनाथ धाम पहुंची सतराली होली: महाशिवरात्रि पर्व पर सतराली के सात गांव थापला, पनेरगांव, लोहाना, खाड़ी, झाड़कोट, कोतवालगांव, कांडे के लोग ढोल, मजीरा और अन्य वाद्य यंत्रों के साथ नाचते-गाते मंदिर में आते हैं और यहां होली से संबंधित गीतों का गायन करते हैं. इस बार के खाड़ी गांव को छोड़कर अन्य सभी गांव के लोग बाबा बागनाथ मंदिर पहुंचे. वहीं, होल्यारों ने बताया कि हमारे सतराली क्षेत्र में बागनाथ धाम से होली की शुरूआत होती है. अब हम सभी क्षेत्र के मंदिरों में होली गायन कर सकते हैं. एकादशी से गांवों में खड़ी होली की शुरूआत हो जाएगी. गांवों में घर-घर जाकर होली गायन किया जाएगा.
पौराणिक काल से बाबा बागनाथ धाम आती है सतराली होली: सतराली की होली पौराणिक काल से बाबा बागनाथ धाम आती रही है. 2017 से पहले 45 वर्ष तक सतराली की होली बाबा बागनाथ के धाम नहीं आई. इसके पीछे सतराली क्षेत्र के बुजुर्ग होल्यार प्रकाश तिवारी ने बताया कि पहले संगीत का साधन केवल होली हुआ करती थी, जो आज भी हमारे द्वारा जारी रखा गया है. पहले किसी कारण वश होली रुक गई थी. जिसे पिछले छह-सात सालों से फिर से शुरू कर दिया गया है.
बुजुर्गों ने शुरू की थी सतराली होली: होल्यार जगदीश प्रसाद लोहनी ने बताया कि पहले पैदल यात्रा करते हुए होली का गायन किया जाता था, जिसे आज भी जारी रखा गया है, लेकिन बुजुर्गों की कमी के कारण होली में बांधा आई. उन्होंने कहा कि होली के बागनाथ धाम न आने के पीछे पलायन समेत कुछ और कारण थे.
सतराली की होली सात गांवों की होली : होल्यार नवीन लोहनी ने बताया कि सतराली की होली सात गांवों की होली है. जिसकी अपनी एक अलग पहचान है. सालों से चली आ रही परंपरा आज भी जीवित है. उन्होंने कहा कि अब इसमें युवा भी जुड़ रहे हैं, जो आने वाले समय में इस परंपरा को बचाने के साथ-साथ इसकी पहचान बनेंगे. वहीं, होल्यार राजेश चंद्र ने बताया कि बुजुर्गों द्वारा शुरू की गई परंपरा को अब नवयुवकों के माध्यम से बचाने का काम किया जा रहा है.