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सती शिरोमणि माता अनसूया दो दिवसीय मेला शुरू, बदरीनाथ विधायक ने किया शुभारंभ - ANASUYA DEVI TWO DAY FAIR

जिला प्रशासन ने मेले को लेकर कसी कमर, पैदल मार्ग पर किये सुरक्षा के साथ आवश्यक इंतजाम

ANASUYA DEVI TWO DAY FAIR
सती शिरोमणि माता अनसूया दो दिवसीय मेला शुरू (ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Dec 14, 2024, 10:26 PM IST

चमोली: सती शिरोमणि माता अनसूया दो दिवसीय मेला विधि विधान व पूजा-पाठ के साथ शनिवार को शुरू हो गया. बदरीनाथ विधायक लखपत बुटोला ने अनसूया मेले का शुभारंभ किया. दत्तात्रेय जयंती के अवसर पर क्षेत्र की देवी डोलियां सती मां अनसूया के दरबार पहुंची.

मां अनसूया मंदिर में दत्तात्रेय जयंती पर सम्पूर्ण भारत से हर वर्ष निसंतान दंपत्ति और भक्तजन अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए पहुंचते हैं. जिला प्रशासन ने मेले के दौरान पूरे पैदल मार्ग पर सुरक्षा के साथ अन्य आवश्यक इंतजाम किए हैं.

विदित है कि पौराणिक काल से दत्तात्रेय जयंती पर यहां हर वर्ष सती माता अनसूया मेला लगता है. मां अनुसूया मेले में निसंतान दंपत्ति और भक्तजन अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए पहुंचते हैं. मान्यता है कि मां के दर से कोई खाली हाथ नहीं लौटता. मां सबकी झोली भरती है. इसलिए निसंतान दंपत्ति पूरी रात जागकर मां की पूजा अर्चना कर करते हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर में जप और यज्ञ करने वालों को संतान की प्राप्ति होती है. इसी मान्यताओं के अनुसार, इसी स्थान पर माता अनुसूया ने अपने तप के बल पर त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु और शंकर) को शिशु रूप में परिवर्तित कर पालने में खेलने पर मजबूर कर दिया था.

बाद में काफी तपस्या के बाद त्रिदेवों को पुनः उनका रूप प्रदान किया. फिर यहीं तीन मुख वाले दत्तात्रेय का जन्म हुआ. इसी के बाद से यहां संतान की कामना को लेकर लोग आते हैं. यहां दत्तात्रेय मंदिर की स्थापना भी की गई है. बताते हैं कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने मां अनुसूया के सतीत्व की परीक्षा लेनी चाही थी, तब उन्होंने तीनों को शिशु बना दिया था. यहीं त्रिरूप दत्तात्रेय भगवान बने. उनकी जयंती पर यहां मेला और पूजा अर्चना होती है.

पढ़ें- नगर निकाय चुनाव: महिलाओं को बंपर आरक्षण, यहां देखें कहां मिली कितनी भागीदारी

चमोली: सती शिरोमणि माता अनसूया दो दिवसीय मेला विधि विधान व पूजा-पाठ के साथ शनिवार को शुरू हो गया. बदरीनाथ विधायक लखपत बुटोला ने अनसूया मेले का शुभारंभ किया. दत्तात्रेय जयंती के अवसर पर क्षेत्र की देवी डोलियां सती मां अनसूया के दरबार पहुंची.

मां अनसूया मंदिर में दत्तात्रेय जयंती पर सम्पूर्ण भारत से हर वर्ष निसंतान दंपत्ति और भक्तजन अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए पहुंचते हैं. जिला प्रशासन ने मेले के दौरान पूरे पैदल मार्ग पर सुरक्षा के साथ अन्य आवश्यक इंतजाम किए हैं.

विदित है कि पौराणिक काल से दत्तात्रेय जयंती पर यहां हर वर्ष सती माता अनसूया मेला लगता है. मां अनुसूया मेले में निसंतान दंपत्ति और भक्तजन अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए पहुंचते हैं. मान्यता है कि मां के दर से कोई खाली हाथ नहीं लौटता. मां सबकी झोली भरती है. इसलिए निसंतान दंपत्ति पूरी रात जागकर मां की पूजा अर्चना कर करते हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर में जप और यज्ञ करने वालों को संतान की प्राप्ति होती है. इसी मान्यताओं के अनुसार, इसी स्थान पर माता अनुसूया ने अपने तप के बल पर त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु और शंकर) को शिशु रूप में परिवर्तित कर पालने में खेलने पर मजबूर कर दिया था.

बाद में काफी तपस्या के बाद त्रिदेवों को पुनः उनका रूप प्रदान किया. फिर यहीं तीन मुख वाले दत्तात्रेय का जन्म हुआ. इसी के बाद से यहां संतान की कामना को लेकर लोग आते हैं. यहां दत्तात्रेय मंदिर की स्थापना भी की गई है. बताते हैं कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने मां अनुसूया के सतीत्व की परीक्षा लेनी चाही थी, तब उन्होंने तीनों को शिशु बना दिया था. यहीं त्रिरूप दत्तात्रेय भगवान बने. उनकी जयंती पर यहां मेला और पूजा अर्चना होती है.

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