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रांची के गिरजाघरों का इतिहास: प्रलय और दुनिया की पुनर्रचना की याद दिलाता है संत पॉल चर्च का नूहा नाव! - CHRISTMAS IN RANCHI

रांची में बने संत पॉल गिरजाघर का निर्माण 1870 में हुआ. इस चर्च में बने नाव का इतिहास काफी खास है.

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ग्राफिक्स (ईटीवी भारत)
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : 5 hours ago

रांची: प्रभु ईसा मसीह के जन्म यानी उनके आगमन का त्योहार 25 दिसम्बर को दुनियाभर में क्रिसमस के रूप में मनाया जाता है. पूर्वी भारत में इस दिन को बड़ा दिन भी कहते हैं. प्रभु ईसा मसीह के आगमन की खुशियां मनाने के लिए राजधानी रांची के गिरजाघरों को भव्य एवं आकर्षक ढंग से सजाया गया है. ईटीवी भारत क्रिसमस के अवसर पर रांची के कुछ खास और ऐतिहासिक गिरजाघरों से जुड़ी खास जानकारी अपने पाठकों को देने जा रहा है.

संवाददाता उपेंद्र कुमार की रिपोर्ट (ईटीवी भारत)

इस कड़ी में पहला नाम है राजधानी के बहु बाजार स्थित संत पॉल महागिरजाघर का. इस गिरजाघर का इतिहास जानकर आप भी हैरान हो जाएंगे, क्योंकि इस चर्च के जमीन के अंदर उन दानदाताओं के नाम दफन हैं जिन्होंने 1870 में बनीं इस चर्च के निर्माण के लिए दान दिया था. जानकार बताते हैं कि कर्नल डाल्टन ने 1870 में संत पाल गिरजाघर के निर्माण की नींव रखी थी. इस गगनचुम्बी और बेहद भव्य चर्च से पहले यहां मसीही समाज के लोगों के द्वारा प्रार्थना की जाती थी. करीब 26 हजार की लागत से बने इस चर्च के साथ 'कैथेड्रल' इस लिए जुड़ा, क्योंकि यहां धर्म गुरु विशप का आसन विराजमान है. धर्म प्रचारक पॉल के नाम पर चर्च का नाम संत पॉल गिरजाघर रखा गया है.

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ग्राफिक्स (ईटीवी भारत)
प्रलय और फिर पुनर्निर्माण की घटना को याद दिलाता है नाव

संत पॉल महागिरजा घर परिसर में एक बड़ी सी लोहे की खूबसूरत नाव बनी हुई है. गिरजाघर प्रबंधन कमिटी के कोषाध्यक्ष आइजक रक्षित बताते हैं कि 'यह नाव हमारे पवित्र धर्मग्रन्थ बाइबल में वर्णित उस घटना की याद दिलाती है. जिसमें कहा गया है कि जब पाप और अत्याचार की पराकाष्ठा हो जाने के बाद प्रभु ने प्रलय कर दुनिया समाप्त करने की सोची, तब प्रलय के बाद भी दुनिया कायम रहे, इसलिए उन्होंने इस नेक कार्य के लिए नूहा (नोहा) जैसे नेक बंदे को आदेश दिया कि वह एक नाव बनाये और उसमें सृष्टि की सभी प्रजातियों की एक-एक जोड़ी को रख दें. 40 दिन और 40 रात के प्रलय के बाद जब यह नाव धरती पर आया तब उसी पर लोग, पेड़-पौधे, जीव-जंतु सबने मिलकर नई सृष्टि की रचना की.

क्रिसमस पर 24 दिसम्बर की शाम से शुरू हो जाएगी विशेष प्रार्थना

चर्च के फादर जॉन भेंगरा ने बताया कि प्रभु ईसा मसीह के आगमन यानी उनके जन्मोत्सव को लेकर विशेष कार्यक्रम और प्रार्थना 24 दिसम्बर के शाम साढ़े 5 बजे से शुरू हो जायेगा जो मध्य रात्रि तक चलेगा.

ये भी पढ़ें- रांची में क्रिसमस की धूम, शहर के गिरजाघरों में विशेष प्रार्थना का आयोजन

गोड्डा में क्रिसमस की धूमः लोगों ने मनाया प्रभु ईसा मसीह का जन्म उत्सव, गिरजाघरों में विशेष प्रार्थना का आयोजन

झारखंड में क्रिसमस पर पॉइन्सेटिया फूल की बढ़ जाती है मांग, जानिए क्या है इसकी मान्यता

रांची: प्रभु ईसा मसीह के जन्म यानी उनके आगमन का त्योहार 25 दिसम्बर को दुनियाभर में क्रिसमस के रूप में मनाया जाता है. पूर्वी भारत में इस दिन को बड़ा दिन भी कहते हैं. प्रभु ईसा मसीह के आगमन की खुशियां मनाने के लिए राजधानी रांची के गिरजाघरों को भव्य एवं आकर्षक ढंग से सजाया गया है. ईटीवी भारत क्रिसमस के अवसर पर रांची के कुछ खास और ऐतिहासिक गिरजाघरों से जुड़ी खास जानकारी अपने पाठकों को देने जा रहा है.

संवाददाता उपेंद्र कुमार की रिपोर्ट (ईटीवी भारत)

इस कड़ी में पहला नाम है राजधानी के बहु बाजार स्थित संत पॉल महागिरजाघर का. इस गिरजाघर का इतिहास जानकर आप भी हैरान हो जाएंगे, क्योंकि इस चर्च के जमीन के अंदर उन दानदाताओं के नाम दफन हैं जिन्होंने 1870 में बनीं इस चर्च के निर्माण के लिए दान दिया था. जानकार बताते हैं कि कर्नल डाल्टन ने 1870 में संत पाल गिरजाघर के निर्माण की नींव रखी थी. इस गगनचुम्बी और बेहद भव्य चर्च से पहले यहां मसीही समाज के लोगों के द्वारा प्रार्थना की जाती थी. करीब 26 हजार की लागत से बने इस चर्च के साथ 'कैथेड्रल' इस लिए जुड़ा, क्योंकि यहां धर्म गुरु विशप का आसन विराजमान है. धर्म प्रचारक पॉल के नाम पर चर्च का नाम संत पॉल गिरजाघर रखा गया है.

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ग्राफिक्स (ईटीवी भारत)
प्रलय और फिर पुनर्निर्माण की घटना को याद दिलाता है नाव

संत पॉल महागिरजा घर परिसर में एक बड़ी सी लोहे की खूबसूरत नाव बनी हुई है. गिरजाघर प्रबंधन कमिटी के कोषाध्यक्ष आइजक रक्षित बताते हैं कि 'यह नाव हमारे पवित्र धर्मग्रन्थ बाइबल में वर्णित उस घटना की याद दिलाती है. जिसमें कहा गया है कि जब पाप और अत्याचार की पराकाष्ठा हो जाने के बाद प्रभु ने प्रलय कर दुनिया समाप्त करने की सोची, तब प्रलय के बाद भी दुनिया कायम रहे, इसलिए उन्होंने इस नेक कार्य के लिए नूहा (नोहा) जैसे नेक बंदे को आदेश दिया कि वह एक नाव बनाये और उसमें सृष्टि की सभी प्रजातियों की एक-एक जोड़ी को रख दें. 40 दिन और 40 रात के प्रलय के बाद जब यह नाव धरती पर आया तब उसी पर लोग, पेड़-पौधे, जीव-जंतु सबने मिलकर नई सृष्टि की रचना की.

क्रिसमस पर 24 दिसम्बर की शाम से शुरू हो जाएगी विशेष प्रार्थना

चर्च के फादर जॉन भेंगरा ने बताया कि प्रभु ईसा मसीह के आगमन यानी उनके जन्मोत्सव को लेकर विशेष कार्यक्रम और प्रार्थना 24 दिसम्बर के शाम साढ़े 5 बजे से शुरू हो जायेगा जो मध्य रात्रि तक चलेगा.

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