हमीरपुर: दिवाली देशभर में बड़े धूमधाम से मनाई जाती है. इसके विपरीत हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले में एक ऐसा गांव भी है, जहां दिवाली नहीं मनाई जाती है. हमीरपुर जिले में भोरंज उपमंडल के सम्मू गांव में कई दशकों से दिवाली नहीं मनाई जाती है. इसके अलावा दिवाली के दिन सम्मू गांव के किसी भी घर में पकवान तक नहीं बनाए जाते हैं. गांव वालों का कहना है कि इसका कारण है गांव को मिला श्राप.
दिवाली मनाने पर क्या होता है?
सम्मू गांव के लोगों का मानना है कि गांव पर श्राप है, इसलिए यहां दिवाली पर जश्न नहीं मनाया जाता है. मान्यता है कि अगर कोई व्यक्ति दिवाली का जश्न मनाता है तो यहां आपदा आती है या फिर किसी की अकाल मृत्यु हो जाती है. इस बार भी हमीरपुर जिला मुख्यालय से करीब 25 किमी दूरी पर स्थित सम्मू गांव में दिवाली को लेकर कोई रौनक नहीं देखी जा रही है. कई सौ सालों से गांव में दिवाली मनाने से परहेज किया जाता है.
पटाखों और पकवानों से परहेज
ग्राम पंचायत भोरंज की प्रधान पूजा कुमारी बताती हैं कि दिवाली के दिन दीप तो जलाए जाते हैं, लेकिन अगर किसी परिवार ने गलती से भी पटाखे जलाने के साथ-साथ घर पर पकवान बनाए तो फिर गांव में आपदा आना तय है. लोगों द्वारा दिवाली पर पूजा तो की जाती है, लेकिन पकवान बनाने और पटाखे चलाने से परहेज किया जाता है.
प्रधान पूजा कुमारी ने बताया, "जब भी दिवाली का त्योहार आता है तो दिल भर आता है, क्योंकि सभी जगह घरों में चहल-पहल होती है, लेकिन हमारे गांव में इस दिन किसी के घर में दिवाली नहीं मनाई जाती है."
दिवाली पर महिला ने दिया था श्राप
स्थानीय निवासी विधि चंद ने बताया कि पुरानी कथा के अनुसार एक महिला दिवाली मनाने के लिए मायके जाने को निकली थी. उसका पति राजा के दरबार में सैनिक था, लेकिन जैसे ही महिला गांव से कुछ दूर पहुंची तो उसे पता चला कि उसके पति की मौत हो गई है. महिला यह सदमा बर्दाश्त नहीं कर सकी और वो अपने पति की चिता पर बच्चे के साथ ही सती हो गई. साथ ही जाते-जाते सारे गांव को यह श्राप दिया कि 7 पीढ़ियों तक इस गांव के लोग कभी दिवाली का त्योहार नहीं मना पाएंगे. उस दिन से लेकर आज तक इस गांव में दिवाली नहीं मनाई गई. लोग केवल सती की मूर्ति की पूजा करते हैं. इस दिन जो भी दीपावली पर पकवान बनाने की कोशिश करता है. उसका नुकसान हो जाता है.
स्थानीय निवासी विधि चंद ने बताया कि, "एक दो परिवारों ने कुछ साल पहले दीपावली मनाने की कोशिश की थी उनके घर में आग लग गई. परिवार के लोगों को बीमारियां लग गई. कुछ लोगों की मौत हो गई और फिर उन्हें गांव छोड़कर जाना पड़ा."
दिवाली पर श्राप का खौफ
70 बसंत देख चुके ठाकुर विधि चंद ने बताया कि सैकड़ों सालों से सम्मू गांव में दिवाली नहीं मनाई जाती है. अगर दिवाली मनाने की कोशिश करते हैं तो गांव में किसी न किसी की अकाल मौत हो जाती है या फिर आपदा आती है. उन्होंने बताया कि ऐसा नहीं है कि लोगों ने इस श्राप से मुक्ति पाने की कोशिश नहीं की गई है. गांव के लोगों ने कई बार कोशिश की, लेकिन सारी कोशिशें नाकाम साबित हुई. लोगों को श्राप का इतना खौफ है कि दीपावली को गांव के लोग घरों से बाहर भी निकलना मुनासिब नहीं समझते हैं.
श्राप से मुक्ति पाने के लिए किए कई उपाय
गांव के एक अन्य व्यक्ति ने बताया कि गांव को इस श्राप से मुक्त करवाने के लिए कई बार हवन-यज्ञ तक का सहारा लिया गया, लेकिन सब विफल रहा. 3 साल पहले गांव में बड़े यज्ञ का आयोजन भी किया गया था, लेकिन आज दिन तक इस गांव को इस श्राप से मुक्ति नहीं मिल पाई. यज्ञ के बाद गांव के कुछ लोगों ने दिवाली मनाने की कोशिश की थी तो उनके घर में आग लग गई थी. जिसके बाद से अब गांव में कोई भी दिवाली का त्योहार नहीं मनाता है. युवाओं का कहना है कि सम्मू गांव में आज दिन तक दिवाली नहीं मनाई गई. दिवाली का त्योहार मनाने पर गांव में किसी न किसी की मौत हो ही जाती है.