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जहां पांडवों ने लिया था आश्रय, उस पांडव स्थान को अब भी है उद्धार का इंतजार

Samastipur Pandav Sthan: जिस स्थान ने कभी पांडवों को आश्रय दिया था वो स्थान आज उपेक्षा के कारण अपनी पहचान खोता जा रहा है. हम बात कर रहे हैं समस्तीपुर जिले के दलसिंहसराय के पांड गांव की, जिसे पांडव स्थान के भी नाम से जाना जाता है. आखिर क्या है इसका इतिहास, पढ़िये पूरी खबर.

Pandav Sthan
Pandav Sthan
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Mar 21, 2024, 6:24 AM IST

देखें रिपोर्ट.

समस्तीपुरः बिहार में ऐसी कई धरोहर और प्राचीन स्थल हैं जो संरक्षण के अभाव में अपनी पहचान खोते जा रहे हैं. जिले के दलसिंहसराय का पांड गांव भी ऐसे ही स्थलों में एक है. पांडव स्थान के नाम से विख्यात ये जगह उपेक्षा का शिकार है. लिहाजा जो कभी पांडवों का आश्रय बना था वो आज निराश्रित होकर अपनी पहचान खोता जा रहा है.

सुरंग बनाकर पहुंचे थे पांडवः करीब 22 एकड़ में फैला ये स्थान महाभारत काल से जुड़ा हुआ है. कहा जाता है कि जब दुर्योधन ने लाक्षागृह में आग लगाकर पांडवों को जलाकर मारने की कोशिश की थी तब सुरंग के रास्ते सभी पांडव इस स्थान पर आए और कई दिनों तक यहां वास किया. वर्तमान में यहां पांडव कृष्ण धाम मंदिर बना है, जिसमेंं पांचों पांडव समेत भगवान कृष्ण की प्रतिमा स्थापित है.

खुदाई में मिले कुषाणकालीन अवशेषः महाभारत काल से जुड़े होने के साथ-साथ 2002 में हुए पुरातात्विक उत्खनन में कुषाणकालीन सभ्यता के भी प्रमाण मिले थे. यहां ऐसी दीवारें भी मिली थीं, जो 45 सेमी से लेकर एक मीटर तक चौड़ी थीं. इसके अलावा मृदभांड के एक टुकड़े पर ब्राह्मी लिपि का अभिलेख भी मिला था. इसके अलावा कई दुर्लभ मूर्तियां और अन्य दुर्लभ चीजें प्राप्त हुई थीं.किसान रामगुलाम महतो की मानें तो "उनके खेतों में पुरातत्व विभाग ने खुदाई की थी"

दूर-दूर से आते हैं लोगः ये जगह जिला मुख्यालय समस्तीपुर से करीब 25 किलोमीटर दूर दलसिंहसराय प्रखंड के पांड गांव में है. पांडव स्थान के महंत महेंद्र दास की मानें तो "आज से हजारों वर्ष पूर्व पांडव यहां आए थे. वर्तमान में दूर-दूर से श्रद्धालु मंदिर में दर्शन के लिए पहुंचते हैं. यहां आनेवाले भक्तों की सभी मुरादें पूरी होती हैं."

2011 में सीएम नीतीश ने लिया था जायजाः 2011 में अपनी सेवा यात्रा के दौरान सीएम नीतीश कुमार ने इस स्थान का जायजा लिया था. तब सीएम ने इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का वादा किया था. साथ ही एक म्यूजियम बनाने की बात भी की गयी थी, लेकिन सीएम की इस घोषणा के एक दशक से अधिक बीत जाने के बावजूद न तो म्यूजियम बना और न ही इसे पर्यटन स्थल बनाने की दिशा में कोई काम हुआ.

ये भी पढ़ेंःबिहार के इस जिले से मापी जाती थी हिमालय की ऊंचाई, 1854 जॉर्ज एवरेस्ट की पहल पर बना मानिकपुर बुर्ज उपेक्षा का शिकार

देखें रिपोर्ट.

समस्तीपुरः बिहार में ऐसी कई धरोहर और प्राचीन स्थल हैं जो संरक्षण के अभाव में अपनी पहचान खोते जा रहे हैं. जिले के दलसिंहसराय का पांड गांव भी ऐसे ही स्थलों में एक है. पांडव स्थान के नाम से विख्यात ये जगह उपेक्षा का शिकार है. लिहाजा जो कभी पांडवों का आश्रय बना था वो आज निराश्रित होकर अपनी पहचान खोता जा रहा है.

सुरंग बनाकर पहुंचे थे पांडवः करीब 22 एकड़ में फैला ये स्थान महाभारत काल से जुड़ा हुआ है. कहा जाता है कि जब दुर्योधन ने लाक्षागृह में आग लगाकर पांडवों को जलाकर मारने की कोशिश की थी तब सुरंग के रास्ते सभी पांडव इस स्थान पर आए और कई दिनों तक यहां वास किया. वर्तमान में यहां पांडव कृष्ण धाम मंदिर बना है, जिसमेंं पांचों पांडव समेत भगवान कृष्ण की प्रतिमा स्थापित है.

खुदाई में मिले कुषाणकालीन अवशेषः महाभारत काल से जुड़े होने के साथ-साथ 2002 में हुए पुरातात्विक उत्खनन में कुषाणकालीन सभ्यता के भी प्रमाण मिले थे. यहां ऐसी दीवारें भी मिली थीं, जो 45 सेमी से लेकर एक मीटर तक चौड़ी थीं. इसके अलावा मृदभांड के एक टुकड़े पर ब्राह्मी लिपि का अभिलेख भी मिला था. इसके अलावा कई दुर्लभ मूर्तियां और अन्य दुर्लभ चीजें प्राप्त हुई थीं.किसान रामगुलाम महतो की मानें तो "उनके खेतों में पुरातत्व विभाग ने खुदाई की थी"

दूर-दूर से आते हैं लोगः ये जगह जिला मुख्यालय समस्तीपुर से करीब 25 किलोमीटर दूर दलसिंहसराय प्रखंड के पांड गांव में है. पांडव स्थान के महंत महेंद्र दास की मानें तो "आज से हजारों वर्ष पूर्व पांडव यहां आए थे. वर्तमान में दूर-दूर से श्रद्धालु मंदिर में दर्शन के लिए पहुंचते हैं. यहां आनेवाले भक्तों की सभी मुरादें पूरी होती हैं."

2011 में सीएम नीतीश ने लिया था जायजाः 2011 में अपनी सेवा यात्रा के दौरान सीएम नीतीश कुमार ने इस स्थान का जायजा लिया था. तब सीएम ने इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का वादा किया था. साथ ही एक म्यूजियम बनाने की बात भी की गयी थी, लेकिन सीएम की इस घोषणा के एक दशक से अधिक बीत जाने के बावजूद न तो म्यूजियम बना और न ही इसे पर्यटन स्थल बनाने की दिशा में कोई काम हुआ.

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