लखनऊ : समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव लोकसभा चुनाव के पहले चरण में ही अपने फैसलों के कारण चर्चा का विषय बन गए हैं. मुरादाबाद का मामला हो या फिर रामपुर का. फैसला लेना और फिर उसे पलटना कोई अच्छी बात नहीं है. सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव विगत विधानसभा चुनावों में भी कई सीटों पर यह रुख अपनाते रहे हैं. पार्टी के दो-दो नेताओं को बुलाकर गुपचुप तरीके से सिंबल देना सपा प्रमुख की कार्यशैली में शुमार रहा है. पार्टी के भीतर भी कई नेता ऐसे फैसलों की दबी जुबान आलोचना करते हैं. कई बार कार्यकर्ता भी खुलकर विरोध में आ जाते हैं, जैसा रामपुर में देखने को मिला.
मुरादाबाद में समाजवादी पार्टी ने इस चुनाव में भी एसटी हसन को प्रत्याशी बनाया था. 2019 में लोकसभा चुनावों में सपा-बसपा गठबंधन में वह 90 हजार से भी ज्यादा वोटों से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे. हालांकि इस चुनाव में माहौल उनके अनुकूल नहीं माना जा रहा है. शायद इसीलिए सपा मुखिया को अपने पैर पीछे खींचने पड़े और बिजनौर जिले की मूल निवासी रुचि वीरा को प्रत्याशी बनाना पड़ा. स्थिति यह रही कि नामांकन दाखिले तक भी तस्वीर साफ नहीं हो पाई कि पार्टी का असल उम्मीदवार कौन है? दोनों ही प्रत्याशियों ने अपने-अपने नामांकन पत्र दाखिल किए और खुद को सपा का उम्मीदवार बताते रहे. हालांकि रुचि वीरा ने बताया कि पार्टी नेतृत्व ने उन्हें पार्टी का सिंबल देने के साथ ही एसटी हसन का सिंबल निरस्त करने का पत्र भी दिया था. वहीं दोपहर बाद एसटी हसन ने संकेत दिए कि पार्टी नेतृत्व की इच्छा अनुसार वह नाम वापसी भी कर सकते हैं.
यदि मुरादाबाद सीट पर समीकरणों और सपा की स्थिति के विषय में चर्चा करें तो पार्टी के सूत्र बताते हैं कि सपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री मो. आजम खान एसटी हसन से बेहद नाराज हैं. उन्होंने पिछले दिनों सीतापुर जेल में उनसे मिलने आए पार्टी मुखिया अखिलेश यादव के सामने यह बात स्पष्ट कर दी थी. जिसके बाद यह माना जाने लगा था कि अखिलेश यादव आजम की बात नहीं टालेंगे और टिकट बदलेंगे. हालांकि जिस तरह से यह हुआ, वह किसी के भी गले नहीं उतर रहा है. एसटी हसन को यदि सपा टिकट नहीं भी देना चाहती थी तो वह उनसे बातचीत के माध्यम से यह कदम उठा सकते थे. मौजूदा सांसद का टिकट काटने से कहीं न कहीं पार्टी को नुकसान तो होगा ही. वैसे भी इस चुनाव में समीकरण 2019 से बिल्कुल अलग हैं और समाजवादी पार्टी के लिए यह चुनाव जीतना बिल्कुल भी आसान नहीं होगा. वहीं एसटी हसन के समर्थक रुचि वीरा को बाहरी प्रत्याशी बताकर विरोध जता रहे हैं. दोनों प्रत्याशियों के मैदान में होने के कारण कहीं न कहीं इसका नुकसान भी सपा को ही उठाना पड़ सकता है.
बताया जाता है कि मुरादाबाद सीट पर एसटी हसन के लिए पार्टी के भीतर और आम जनता में भी माहौल बहुत सकारात्मक नहीं है. इसका कारण उनकी पिछले पांच साल निष्क्रियता को माना जाता है. बताया जाता है कि वह लोगों की अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर सके और पार्टी के भीतर भी उनकी पकड़ बहुत मजबूत नहीं है. वहीं भाजपा प्रत्याशी सर्वेश ने एसटी हसन को 2014 में भारी मतों से पराजित किया था. इस चुनाव में भी उनकी तैयारी अच्छी है. एसटी हसन पेशे से एमबीबीएस डॉक्टर हैं और राजनीतिक रूप से लोगों की अपेक्षानुरूप सक्रिय नहीं रह पाए थे. वहीं समाजवादी पार्टी से राजनीतिक जीवन की शुरुआत करने वाली रुचि वीरा को लेकर सकारात्मक थे. शायद इसीलिए अखिलेश ने उनके नाम का चयन किया है. 2014 में हुए विधानसभा के उपचुनाव में रुचि वीरा ने सपा के टिकट पर जीत हासिल की थी. 2019 में भी इन्होंने सपा के टिकट पर बदायूं से भाजपा की संघमित्रा मौर्य के खिलाफ चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा. बाद में इनके पति निर्दलीय रूप से जिला पंचायत अध्यक्ष रहे. फिर यह भी भाजपा के टिकट पर जिला पंचायत अध्यक्ष बनीं. 2022 में रुचि वीरा ने बसपा से विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन इन्हें पराजय का सामना करना पड़ा. रुचि वीरा वैश्य हैं और इनके पति जाट बिश्नोई समाज से आते हैं. मुरादाबाद संसदीय सीट की बढ़ापुर विधानसभा सीट बिजनौर जिले से आती है. रुचि वीरा बिजनौर की ही रहने वाली हैं.
यदि रामपुर सीट को लेकर बात करें तो इस सीट पर भी अखिलेश को फैसला आजम खान के दबाव में ही लेना पड़ा. आजम चाहते थे कि खुद अखिलेश यादव ही इस सीट से मैदान में उतरें. हालांकि पार्टी सूत्रों का कहना है कि अखिलेश यादव चुनाव लड़ना नहीं चाहते, क्योंकि यदि वह खुद चुनाव लड़ते हैं तो पार्टी को जिताने के लिए खुद पर्याप्त समय नहीं निकाल पाएंगे. वहीं पार्टी के कई नेता यह भी चाहते हैं कि अखिलेश यादव कन्नौज सीट से चुनाव लड़ें. ऐसे में रामपुर सीट से सपा का उम्मीदवार कौन हो और आजम खान की नाराजगी भी मोल न लेनी पड़े, पार्टी मुखिया के लिए एक बड़ी चुनौती थी. इसी दुविधा के कारण स्पष्ट निर्णय नहीं हो सका और दो-दो प्रत्याशी पार्टी का सिंबल लेकर अपना नामांकन कराने पहुंच गए. इसे लेकर पार्टी की खूब किरकिरी हुई. बुधवार को पहले चरण के लिए नामांकन का आखिरी दिन था. ऐसे में प्रत्याशी पर अंतिम फैसला भी आज ही जरूरी था.
कल तक सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के भतीजे और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव के दामाद तेज प्रताप यादव का नाम रामपुर सीट से सपा प्रत्याशी के रूप में फाइनल माना जा रहा था. हालांकि सुबह होते-होते चर्चाओं ने दूसरा ही रुख कर लिया और संसद स्थित मस्जिद के इमाम मोहिबुल्लाह नदवी का नाम सपा प्रत्याशी के रूप में चर्चा में आया. वह दोपहर में सपा प्रत्याशी के रूप में अपना नामांकन कराने भी पहुंचे, लेकिन इसके कुछ देर बाद ही सपा के राष्ट्रीय महासचिव मो. आजम खान के बेहद करीबी आसिम राजा भी अपना नामांकन कराने कलेक्ट्रेट पहुंच गए. उन्होंने भी खुद को सपा प्रत्याशी बताया. ऐसे में इस सीट पर भी उहापोह बनी रही कि आखिर असल में सपा का उम्मीदवार कौन होगा. पार्टी ने भी इस पर अपनी चुप्पी साधे रखी. सपा प्रवक्ताओं ने इस विषय पर कुछ भी बोलने से मना कर दिया.
रामपुर संसदीय सीट के राजनीतिक समीकरणों की बात करें तो आसिम राजा को आजम खान का बेहद करीबी माना जाता है. वह विधानसभा का चुनाव भी लड़ चुके हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि आजम खान का समर्थन आसिम राजा के साथ ही होगा. अखिलेश यादव के लिए इस सीट पर भी आजम के खिलाफ जाना एक चुनौती ही होगा. आसिम राजा रामपुर के ही निवासी हैं और आजम खान के बेहद करीबी नेता माने जाते हैं. हालांकि पार्टी में इनकी भी कोई खास पकड़ नहीं है. वहीं इमाम मोहिबुल्लाह नदवी रामपुर की तहसील स्वार क्षेत्र के निवासी हैं और अपना ज्यादातर समय दिल्ली में ही गुजारते हैं. खास मौकों पर ही उनका रामपुर आना होता है. लोगों में उन्हें लेकर बाहरी प्रत्याशी जैसी ही छवि है. नाम वापसी अथवा सपा की ओर से साफ किए जाने के बाद ही यह पता चल पाएगा कि रामपुर सीट से पार्टी का अधिकृत उम्मीदवार कौन है. हालांकि अखिलेश यादव का अस्पष्ट फैसला बाद में उन्हीं के लिए मुसीबत जरूर बनेगा. वह इससे कैसे निपटेंगे, यह वक्त ही बताएगा. भाजपा ने इस सीट पर घनश्याम लोधी को अपना प्रत्याशी बनाया है. इस मामले में पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी से जब पूछा गया कि बार-बार निर्णय बदलने का क्या कारण है तो उन्होंने तत्काल कुछ भी बताने से मना कर दिया. उन्होंने कहा कि वह इस विषय में शाम को ही कुछ बता पाएंगे.