सागर। कहते हैं कि पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं. ऐसा ही कुछ सागर के दीनदयाल नगर में रहने वाले विभु शर्मा के साथ हुआ. दरअसल, विभु शर्मा जब 3 साल के थे तो सेना की वर्दी पहनने का शौक था और पूरे घर में जय हिंद के नारे लगाते घूमते थे. इतना ही नहीं स्कूल की कल्चरल एक्टिविटीज में भी विभु सेना के ही जवान बनते थे. किसी ने सोचा नहीं था कि फौजी वर्दी पहनने का शौकीन बच्चा फौजी अफसर बनने का जुनून पाल लेगा. लेकिन विभु शर्मा ने अपने सपने को जुनून बनाया और आज 23 साल की उम्र में सेना में कमीशन पाकर लेफ्टिनेंट बन गए. पासिंग आउट परेड के बाद जब विभु के माता-पिता ने सेना की वर्दी पहने बेटे के कंधों पर सितारे सजाए तो उनका सीना गर्व से चौड़ा हो गया.
बचपन का सपना लेफ्टिनेंट बन किया साकार
सागर के उपनगर मकरोनिया के दीनदयाल नगर में रहने वाले विभु के पिता राजेश शर्मा फार्मास्युटिकल कंपनी में मैनेजर और मां सुनयना शर्मा गृहिणी हैं. दादा रिटायर्ड पुलिसमैन हैं. बड़े भाई अभिषेक काम्पटीशन एग्जाम की तैयारी कर रहे हैं. लेफ्टिनेंट विभु शर्मा का कहना है "आर्मी के प्रति मेरा लगाव देखकर परिवार में सभी ने प्रोत्साहित किया. मैं सेना की वर्दी पहनने के शौक के साथ स्कूल में कल्चरल एक्ट में भी आर्मी वाले रोल ही करता था. यहां सेना की महार रेजीमेंट है. बचपन से आर्मी वालों को देखता था. आर्मी की गाडियां कॉलोनी और स्कूल में आर्मी फैमिली के बच्चों को छोड़ने आती थीं."
बचपन का शौक जुनून में बदल गया
विभु बताते हैं "स्कूल टाइम से ही मैंने तैयारी शुरू कर दी थी. मैंने तय कर लिया था कि फौज में या एयरफोर्स में जाऊंगा. तैयारी के लिए यूट्यूब पर वीडियो देखे और कोचिंग सेंटर की मदद ली. फिर 2020 में एसएसबी एग्जाम क्लियर किया. ऊंटी में 4 साल की ट्रेनिंग के बाद 8 जून 2024 को मुझे कमीशन मिला. मेरी पोस्टिंग महू में हुई है." उनका कहना है कि बच्चों को बचपन से ही स्पोर्ट्स एक्टिविटी और पढाई के अलावा दूसरी एक्टिविटी करने का मौका दें. उससे जो कैरेक्टर डेव्लपमेंट होता है, वह कहीं और नहीं हो सकता. एसएसबी में ज्यादातर कैरेक्टर डेवलपमेंट की बात होती है. आप एक आफीसर के तौर पर कैसा बर्ताव करते हैं, ये भी देखा जाता है. ये सब कोई बनावटी नहीं कर सकता है.
विभू ने बताई सफलता की तीन कुंजी
विभु शर्मा बताते हैं "कठिन परीक्षा में सफलता के लिए तीन चीजें जरूरी हैं. पहले तो आपको हार्डवर्क करना है और हर हाल में करना है. इसमें कोई बहाना नहीं चलता. अगर आपने कुछ करने का सोच लिया है तो डटकर मेहनत करिए. हार्ड वर्क के समय ये भी ध्यान रखना है कि लेन का घोड़ा नहीं बनना है. देखना है कि कहां क्या अवसर आपको मिल रहा है. आप अवसरों को पहचानते हैं तो फिर डिसीजन मेकिंग बेहतर होना चाहिए. इसलिए कठिन मेहनत, अवसरों को पहचानना और निर्णय क्षमता बेहद जरूरी है."
देशसेवा के साथ एडवेंचर पसंद है
विभु बताते हैं "सेना ज्वाइन करने के पीछे मेरी एक सोच और थी कि जिस तरह की लाइफ आर्मी मुहैया कराती है. देश सेवा के साथ देश के अलग-अलग कोनों पर काम करने का मौका मिलता है, जिसमें काफी रोमांच होता है. अब मैं यहीं चाहता हूं कि मैं अपनी सर्विस अच्छे से करूं और जहां रहूं, उधर बेहतर परफार्म करूं. घर वालों का नाम रोशन करूं और मेरे देश का नाम आगे लेकर जाऊं."
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परिवार के लिए इससे बड़ी खुशी नहीं हो सकती
विभु शर्मा के पिता राजेश शर्मा कहते हैं "हमें और हमारे परिवार के लिए इससे बड़ा गर्व का क्षण कोई हो नहीं सकता है. बेटे ने इतनी बड़ी उपलब्धि हासिल की. इससे बड़ा गर्व का पल दूसरा नहीं हो सकता. हमारे परिवार की इच्छा के अनुरूप विभु ने कमीशन लिया. विभु का बचपन का सपना था, जो अब जाकर साकार हुआ. 3 साल की उम्र में वर्दी पहनकर सपना देखना शुरू किया था और आज 23 साल की उम्र में आर्मी की वर्दी पहनी, तो सितारों के साथ पहनी."