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धान की देशी किस्मों को बचाने की अनूठी पहल, बिलासपुर की संस्था मध्यप्रदेश में किसानों के बीच कर रही प्रचार - Saving varieties of paddy - SAVING VARIETIES OF PADDY

छत्तीसगढ़ बिलासपुर की जन स्वास्थ्य सहयोग संस्था अब मध्यप्रदेश के किसानों को फिर देशी किस्मों की ओर लौटने के लिए प्रेरित कर रही है.

UNIQUE INITIATIVE TO SAVE PADDY
धान की देशी किस्मों को बचाने की अनूठी पहल
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Mar 21, 2024, 9:42 PM IST

धान की देशी किस्मों को बचाने की अनूठी पहल

सागर. खेती में ज्यादा उत्पादन के फेर में भारत का किसान देशी किस्मों को भूलता जा रहा है और हाइब्रिड नस्लों की तरफ बढ़ रहा है. धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ में भी किसान धान की पुरानी और देशी किस्मों को भूलकर तेजी से हाइब्रिड की तरफ बढ़ रहा है. ऐसे में छत्तीसगढ बिलासपुर की जन स्वास्थ्य सहयोग संस्था, स्वास्थ्य सेवाओं के साथ जनकल्याण और कृषि क्षेत्र में काम कर रही है. ये संस्था छत्तीसगढ के ग्रामीण इलाकों से पिछले 20 साल में धान की करीब 400 किस्में जुटाकर किसानों को फिर देशी किस्मों की ओर लौटने के लिए प्रेरित कर रही है. वहीं अब इस संस्था ने मध्यप्रदेश में अपना ये कार्य शुरू कर दिया है.

2003 में की थी इस कार्य की शुरुआत

दरअसल, ग्रामीण मध्यभारत में जन स्वास्थ्य सहयोग संस्था ने 2003 में स्वास्थ्य सुविधाएं बढ़ाने का काम किया, तो देखा कि छत्तीसगढ़ में ऐसी बीमारियां ज्यादा हैं, जो दलहन और तिलहन के भोजन में कम उपयोग की वजह से हो रही हैं. इस बात की तह में जाने के लिए संस्था ने ग्रामीण इलाकों में सर्वे शुरू किया कि क्या छत्तीसगढ़ में दलहन और तिलहन की खेती ना होने के कारण लोग इनका कम उपयोग करते हैं? तो देखने में आया कि दलहन और तिलहन का रकबा तो ना के बराबर बचा है. यहां का किसान जो धान की देशी किस्में उगाता था, वो भी धीरे-धीरे बंद कर रहा है. इसकी जगह किसान तेजी से हाइब्रिड की ओर बढ़ रहा है. ऐसे में संस्था ने छत्तीसगढ़ की धान की विरासत को सहेजने और बढ़ाने के लिए एक अभियान की शुरुआत की. जहां-जहां संस्था के लोगों को देशी धान की किस्में मिलती थी, वो उन्हें एकत्रित करके बीज तैयार करते थे और इस तरह से संस्था ने करीब 400 बीज तैयार किए हैं.

Saving varieties of paddy
धान की देशी किस्मों को बचाने अनूठी पहल


मध्यप्रदेश में भी शुरू हुआ अभियान

धान की 400 किस्में संग्रहित करने के बाद जन सहयोग संस्था देश के उन इलाकों में जाकर लोगों को जागरूक कर रही है, जहां धान की खेती होती है. किसानों से कहा जा रहा है कि किसान ज्यादा उत्पादन के चक्कर में अपनी विरासत को खत्म ना करें और अपनी देशी किस्मों की भी खेती करें, जिससे हमारी अमूल्य विरासत बची रहे. इसी सिलसिले में मध्यप्रदेश में इन दिनों संस्था प्रचार प्रसार में जुटी हुई है और किसानों को देशी किस्मों के बीज उपलब्ध कराने के साथ-साथ किसानों के साथ मिलकर खेती भी कर रही है. संस्था किसानों को निशुल्क बीज उपलब्ध कराती है, लेकिन उत्पादन के बाद उतना ही बीज ले लेती है. जिससे उस बीज को दूसरे किसानों में बांटा जा सके.


सुंगधित और कई गुणों से भरपूर धान की देशी किस्में

किसानों को धान की खेती के गुण सिखाने वाले संस्था के दुर्गनाथ पैंकरा कहते हैं, ' हमारी 400 किस्म की धान की फसलों की वैरायटी में अलग-अलग सुंगध और स्वाद वाली किस्में हैं. सुगंधित किस्मों में हमारे पास करीब 10 वैरायटी हैं. जिनमें विष्णुभोग, दुबराज, जीराफुल, लौंडी, तिल कस्तूरी जैसी लगभग 10 किस्में हैं. इसके अलावा बौनी धान की किस्में है, जिनमें जीआरके और एचएमटी के प्रमुख नाम हैं. हम ये वैरायटी किसानों को मुफ्त उपलब्ध कराते हैं और खुद खेती करने के साथ-साथ किसानों को भी खेती कराते हैं. हमारे पास भालू दुबराज धान की एक ऐसी किस्म है, जिसे जानवर नहीं खाते हैं. क्योकिं इसके पौधे में एक कांटा होता है और वो जानवरों को चुभ जाता है.'

Saving varieties of paddy
धान की देशी किस्मों को बचाने अनूठी पहल

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100 किस्में बांटकर किसानों को कर रहे प्रेरित

संस्था के महेश शर्मा कहते हैं, ' वैसे हमारी संस्था स्वास्थ्य पर विशेष रूप से काम करती है. लेकिन साथ-साथ खेती किसानी पर भी काम करती है. हमारे यहां डाक्टरों ने रिसर्च की थी कि छत्तीसगढ़ में तिलहन और दाल कम खाने के कारण कई बीमारियां होती हैं. इसे ध्यान में रखते हुए दलहन और तिलहन की खेती को बढ़ावा देने काम करना है.

धान की देशी किस्मों को बचाने की अनूठी पहल

सागर. खेती में ज्यादा उत्पादन के फेर में भारत का किसान देशी किस्मों को भूलता जा रहा है और हाइब्रिड नस्लों की तरफ बढ़ रहा है. धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ में भी किसान धान की पुरानी और देशी किस्मों को भूलकर तेजी से हाइब्रिड की तरफ बढ़ रहा है. ऐसे में छत्तीसगढ बिलासपुर की जन स्वास्थ्य सहयोग संस्था, स्वास्थ्य सेवाओं के साथ जनकल्याण और कृषि क्षेत्र में काम कर रही है. ये संस्था छत्तीसगढ के ग्रामीण इलाकों से पिछले 20 साल में धान की करीब 400 किस्में जुटाकर किसानों को फिर देशी किस्मों की ओर लौटने के लिए प्रेरित कर रही है. वहीं अब इस संस्था ने मध्यप्रदेश में अपना ये कार्य शुरू कर दिया है.

2003 में की थी इस कार्य की शुरुआत

दरअसल, ग्रामीण मध्यभारत में जन स्वास्थ्य सहयोग संस्था ने 2003 में स्वास्थ्य सुविधाएं बढ़ाने का काम किया, तो देखा कि छत्तीसगढ़ में ऐसी बीमारियां ज्यादा हैं, जो दलहन और तिलहन के भोजन में कम उपयोग की वजह से हो रही हैं. इस बात की तह में जाने के लिए संस्था ने ग्रामीण इलाकों में सर्वे शुरू किया कि क्या छत्तीसगढ़ में दलहन और तिलहन की खेती ना होने के कारण लोग इनका कम उपयोग करते हैं? तो देखने में आया कि दलहन और तिलहन का रकबा तो ना के बराबर बचा है. यहां का किसान जो धान की देशी किस्में उगाता था, वो भी धीरे-धीरे बंद कर रहा है. इसकी जगह किसान तेजी से हाइब्रिड की ओर बढ़ रहा है. ऐसे में संस्था ने छत्तीसगढ़ की धान की विरासत को सहेजने और बढ़ाने के लिए एक अभियान की शुरुआत की. जहां-जहां संस्था के लोगों को देशी धान की किस्में मिलती थी, वो उन्हें एकत्रित करके बीज तैयार करते थे और इस तरह से संस्था ने करीब 400 बीज तैयार किए हैं.

Saving varieties of paddy
धान की देशी किस्मों को बचाने अनूठी पहल


मध्यप्रदेश में भी शुरू हुआ अभियान

धान की 400 किस्में संग्रहित करने के बाद जन सहयोग संस्था देश के उन इलाकों में जाकर लोगों को जागरूक कर रही है, जहां धान की खेती होती है. किसानों से कहा जा रहा है कि किसान ज्यादा उत्पादन के चक्कर में अपनी विरासत को खत्म ना करें और अपनी देशी किस्मों की भी खेती करें, जिससे हमारी अमूल्य विरासत बची रहे. इसी सिलसिले में मध्यप्रदेश में इन दिनों संस्था प्रचार प्रसार में जुटी हुई है और किसानों को देशी किस्मों के बीज उपलब्ध कराने के साथ-साथ किसानों के साथ मिलकर खेती भी कर रही है. संस्था किसानों को निशुल्क बीज उपलब्ध कराती है, लेकिन उत्पादन के बाद उतना ही बीज ले लेती है. जिससे उस बीज को दूसरे किसानों में बांटा जा सके.


सुंगधित और कई गुणों से भरपूर धान की देशी किस्में

किसानों को धान की खेती के गुण सिखाने वाले संस्था के दुर्गनाथ पैंकरा कहते हैं, ' हमारी 400 किस्म की धान की फसलों की वैरायटी में अलग-अलग सुंगध और स्वाद वाली किस्में हैं. सुगंधित किस्मों में हमारे पास करीब 10 वैरायटी हैं. जिनमें विष्णुभोग, दुबराज, जीराफुल, लौंडी, तिल कस्तूरी जैसी लगभग 10 किस्में हैं. इसके अलावा बौनी धान की किस्में है, जिनमें जीआरके और एचएमटी के प्रमुख नाम हैं. हम ये वैरायटी किसानों को मुफ्त उपलब्ध कराते हैं और खुद खेती करने के साथ-साथ किसानों को भी खेती कराते हैं. हमारे पास भालू दुबराज धान की एक ऐसी किस्म है, जिसे जानवर नहीं खाते हैं. क्योकिं इसके पौधे में एक कांटा होता है और वो जानवरों को चुभ जाता है.'

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