सागर: बुंदेलखंड की विरासत की बात करें तो यहां खजुराहो,ओरछा, दतिया जैसे अद्भुत मंदिर देश और दुनिया में प्रसिद्ध हैं. वहीं कई ऐतिहासिक और प्राचीन मंदिर ऐसे भी हैं जिनकी लोगों को कम जानकारी है. इन मंदिरों का इतिहास और परंपराएं अपने आप में अनोखी हैं. ऐसा ही एक ऐतिहासिक मंदिर जिले के देवरी में स्थित है. यहां श्रीदेव खंडेराव मंदिर के नाम से जानते हैं. यहां अगहन मास में 9 दिनों का अग्निकुंड मेला भरता है. इस मेले में मनोकामना पूर्ति के लिए भक्त दहकते अंगारों पर निकलकर भगवान का धन्यवाद करते हैं.
400 साल से चली आ रही है परंपरा
देवरी में स्थित देव श्री खंडेराव मंदिर का मेला अगहन सुदी चंपा षष्ठी से शुरू होकर पूर्णिमा तक भरता है. यह 9 दिवसीय मेला बुंदेलखंड में काफी प्रसिद्ध है. मेले के दौरान मनोकामना पूर्ति होने पर लोग दहकते अंगारों से भरे अग्निकुंड से निकलते हैं. देवरी के तिलक वार्ड में स्थित 16 वीं शताब्दी का प्राचीन देवश्री खंडेराव मंदिर है. यहां करीब 400 साल से परंपरा चली आ रही है. कहा जाता है कि देवरी जैसा मेला महाराष्ट्र के जेजुरी में भरता है, जहां देव श्री खंडेराव का मंदिर स्थित है.
राजा रसाल ने की थी मेले की शुरुआत
मेले की शुरुआत राजा रसाल जाजोरी ने की थी और उन्होंने ही मंदिर का निर्माण कराया था. किवदंती है कि राजा का पुत्र एक बार बीमार हो गया था तब उन्होंने देव श्री खंडेराव से मनोकामना मांगी थी. राजा को सपने में देव श्री खंडेराव ने दर्शन दिए और कहा कि मंदिर में अग्निकुंड से नंगे पैर निकलोगे तो उनकी मनोकामना पूरी होगी. राजा रसाल ने सपने में मिली प्रेरणा अनुसार काम किया और उनका बेटा स्वस्थ हो गया. तब से परंपरा लगातार चली आ रही है.
भगवान शिव का अवतार हैं देव श्री खंडेराव
ऐसा अनुमान है कि ये मंदिर 15-16 वीं शताब्दी के दौरान निर्मित हुआ था, जिसमें देव श्री खंडेराव घोड़े पर सवार हैं और आधे रूप में माता पार्वती के साथ विराजमान हैं. भगवान देव श्री खंडेराव को शिव का अवतार मानते हैं. देवरी के मंदिर के गर्भगृह में प्राचीन शिवलिंग भी स्थित है और मंदिर के बाहर नंदी की प्रतिमा भी स्थित है. मंदिर परिसर में एक विशाल बावड़ी और देवी देवताओं की भी प्रतिमाएं विद्यमान हैं. मंदिर के गर्भगृह में बने शिवलिंग को स्वयं भू शिवलिंग बताया जाता है.
हल्दी लेकर दहकते अंगारों से निकलते हैं भक्त
चंपा षष्ठी के दिन जैसे ही मंदिर में स्थापित शिवलिंग पर ठीक 12 बजे भगवान सूर्य का प्रकाश पुंज पड़ता है तो सभी श्रृद्धालु मंदिर के सामने बनाए गए अग्नि कुंडों में पूजा-अर्चना के बाद दोनों हाथों में हल्दी लेकर दहकते अंगारों से निकलना शुरू करते हैं. जय हो श्री खंडेराव के जयकारा लगाते हुए आस्था से सराबोर भक्तगण बिना डरे दहकते अंगारों से 2 बार निकलते हैं.
इस साल खोदे जा रहे हैं 140 अग्निकुंड
मेले को लेकर मंदिर प्रबंधन ने तैयारियां शुरू कर दी हैं. मुख्य पुजारी नारायण राव वैद्य ने बताया कि इस बार मंदिर में 140 अग्निकुंड खोदे जा रहे हैं. इस साल एक हजार से ज्यादा पंजीयन हो चुके हैं. साल दर साल पंजीयन कराने वाले भक्तों की संख्या बढ़ रही है. इसलिए मंदिर परिसर में मेले के दौरान अग्निकुंड की भी संख्या बढ़ानी पड़ रही है. अग्निकुंड में निकलने वाले भक्तों में महिलाओं की संख्या ज्यादा होती है.
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7 दिसंबर से 15 दिसंबर तक चलेगा मेला
मंदिर व्यवस्थापक उमेश ने बताया कि तैयारियां पूरी हो गई हैं. मंदिर के पुजारी परिवार की पांचवी पीढ़ी के मोहित वैद्य और सदाशिव राव वैद्य ने 2 दिसंबर को गणपति पूजन, देव आह्वान और रुद्राभिषेक किया और उसके बाद अग्निकुंड खोदने की प्रक्रिया शुरू हो गई है. मेला 7 दिसंबर से 15 दिसंबर तक चलेगा.