सागर: सावन का महीना हरियाली अमावस्या का दिन और रविवार की छुट्टी के दिन जब बच्चे नहा धोकर अपने घर से शिवलिंग बनाने निकले, तब परिवार के किसी सदस्य ने सोचा भी नहीं होगा कि अमावस की सुबह उनके घर के चिराग बुझा देगी और जीवन में मानो अंधेरा छा जाएगा. शाहपुर के लिए ये दिन दुख और मातम का संदेश लेकर आया. आज हालात ये है कि घटना के चार दिन बीत जाने के बाद शाहपुर की गलियों में मनहूसियत छायी हुई है. ऐसा लगता है जैसे पूरा कस्बा सदमे में हो. कस्बे में 9 घरों में मातम छाया हुआ है. रोज नेता, अधिकारी और रिश्ते नातेदार मिलने पहुंच रहे हैं.
परिजनों का हाल ये है कि रोते-रोते मानो आंखें सूख गयी है. किसी ने अपने इकलौते चिराग को अपनी बाहों में दम तोड़ते देखा. एक पिता की बदनसीबी ऐसी थी कि बेटे का आखिरी बार चेहरा भी नहीं देख पाया. एक मासूम अभागी बहन ऐसी थी. जिसने अपने भाई के दीवार में दबने की खबर भागते-भागते अपने पिता को दी. गौरतलब है कि शाहपुर में रविवार सुबह शिवलिंग निर्माण के दौरान दीवार ढह जाने से 9 बच्चों की मौत हो गयी थी.
दिव्यांश की बहन ने दी खबर
शाहपुर हादसे में मौत का शिकार हुए दिव्यांश साहू की दीवार में दबने की सूचना उसकी छोटी बहन दिव्यांशी ने घर जाकर दी थी. दोनों भाई-बहन सुबह-सुबह एक साथ शिवलिंग बनाने के लिए मंदिर पहुंचे थे. जहां दिव्यांश दीवार गिरने से दीवार में दब गया. जैसे ही उसकी छोटी बहन ने भाई को दीवार में दबते हुए देखा, तो घर जाकर सूचना दी, लेकिन ईश्वर को कुछ और मंजूर था. जब तक दिव्यांश के पिता वहां पहुंचे, दिव्यांश आखरी सांसे गिन रहा था. दिव्यांश का 14 अगस्त को 10वां जन्मदिन था और बहन भी राखी के त्यौहार में तैयारी कर रही थी, लेकिन घर का इकलौता चिराग बुझा और बहन से इकलौता भाई छिन गया, जिसको राखी बांधने के लिए बहन रक्षाबंधन की तैयारी में लगी थी.
पिता आखिरी बार नहीं देख सका बेटे का चेहरा
नितेश पटेल के पिता कमलेश पटेल पुणे में मजदूरी करते हैं. 10 जुलाई को उन्होंने नितेश को अपने गांव शाहपुर में छोड़ा था. रविवार के दिन सुबह उनकी नितेश से बात हुई थी और उसने स्कूल जाने के लिए कहा था, लेकिन दोपहर तक कमलेश पटेल को पुणे में सूचना मिली कि उनका इकलौता बेटा दुनिया में नहीं रहा. सूचना मिलते ही कमलेश पटेल पुणे से शाहपुर के लिए रवाना हुए, लेकिन नियति को मंजूर नहीं था कि वह आखरी बार अपने बेटे का चेहरा देख सके. हादसे के बाद लोगों में बढ़ रहे आक्रोश को देखकर प्रशासन ने मृत बच्चों का उसी दिन दोपहर बाद अंतिम संस्कार करा दिए थे. जब तक कमलेश पटेल शाहपुर अपने गांव पहुंचे, तब तक उनका बेटा नितेश पंचतत्व में विलीन हो चुका था.
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बाढ़ ने रोक लिया घायल हेमंत का रास्ता
हादसे में मृत हेमंत जोशी की बात करें, तो उसके पिता भूरे जोशी घटना को लेकर आहत हैं और आक्रोशित भी है. दरअसल जैसे ही उन्हें हेमंत के दीवार में दबाने की सूचना मिली, तो आनन-फानन में पैसों और गाड़ी का इंतजाम कर दमोह जाने का फैसला किया. कहते हैं कि नियति जब साथ नहीं देती तो हर फैसला गलत साबित होता है. पहली गलती हेमंत के पिता से ये हुई कि वह सागर की जगह दमोह चले गए, क्योंकि सागर के बारे में काम जानते थे. जबकि सागर में मेडिकल कॉलेज भी है. इतना ही नहीं दमोह के लिए आगे बढ़े, तो कोपरा नदी में बाढ़ के कारण रास्ता बंद होने से उन्हें वापस लौटना पड़ा और दूसरे रास्ते जाना पड़ा. करीब 2 घंटे तक हेमंत जिंदा रहा और पिता से पूंंछता रहा कि मैं ठीक तो हो जाऊंगा पापा और आखिर में उसने पिता की ही बाहों में दम तोड़ दिया.