सागर। केंद्र और मध्यप्रदेश में भाजपा भले राज कर रही है लेकिन भाजपा के अंदर सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. खासकर मध्यप्रदेश में भारी बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज हुई भाजपा द्वारा कांग्रेस विधायक तोड़े जाने और उन्हें मंत्री पद दिए जाने से भाजपा के अंदर जमकर नाराजगी है. कांग्रेस से भाजपा में आए रामनिवास रावत के लिए मंत्री बनाने के लिए कराए गए शपथग्रहण के बाद तो कई नेताओं की नाराजगी खुलकर सामने आने लगी है. रामनिवास रावत के शपथ के दिन पूर्व मंत्री और पूर्व नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने ये कहकर हडकंप मचा दिया था कि मैं 15 हजार दिन से विधायक हूं, रावत को किस मजबूरी में मंत्री बनाया. हालांकि उनके बयान को लेकर भाजपा ने चुप्पी साधी है लेकिन जब गोपाल भार्गव की नाराजगी को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने फिर कहा कि मैं 41 साल से विधायक हूं. मुझे सत्ता और संगठन का अनुभव है, अगर मैंने अपनी बात रखी है तो कोई अनहोनी तो नहीं की.
मध्य प्रदेश के सबसे वरिष्ठ विधायक हैं भार्गव
गोपाल भार्गव की बात करें, तो मध्यप्रदेश विधानसभा के सबसे वरिष्ठ विधायक हैं. उन्होंने पहली बार रहली से 1985 में चुनाव जीता था और लगातार चुनाव जीतते आ रहे हैं. 2023 में उन्होंने 9वीं बार 72 हजार 800 मतों से जीत हासिल की है. उन्हें उम्मीद थी कि वरिष्ठता के नाते वो मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं लेकिन मुख्यमंत्री पद तो छोड़िए, उन्हें मंत्री भी नहीं बनाया गया और प्रोटेम स्पीकर बनाकर एक तरह से विदाई का संदेश दे दिया गया. अब गोपाल भार्गव की टीस जब चाहे सामने आ जाती है, कभी वो कथावाचक की भूमिका में सत्ता और संगठन पर तंज करते नजर आते हैं तो कभी बयानों के जरिए अपनी नाराजगी जता देते हैं.
ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं गोपाल भार्गव
गोपाल भार्गव 2023 में चुनाव लड़ने के मूड में नहीं थे, वो अपने बेटे अभिषेक भार्गव की चुनावी राजनीति की शुरुआत कराना चाहते थे लेकिन भाजपा की पतली हालत देखते हुए पार्टी ने उन्हें चुनाव लड़ने के लिए राजी किया. गोपाल भार्गव अपने आप को मुख्यमंत्री पद का दावेदार मान रहे थे, लेकिन तब सकते में आ गए जब उन्हें मुख्यमंत्री तो दूर मंत्री भी नहीं बनाया गया. इसके बाद उन्हें लोकसभा चुनाव से उम्मीद थी कि उनके बेटे अभिषेक भार्गव को सागर या दमोह सीट से टिकट मिल जाएगा. काफी कोशिश के बाद बेटे की चुनावी राजनीति भी शुरू नहीं हो पायी. इन हालातों में गोपाल भार्गव खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं.
रामनिवास रावत के मंत्री बनाए जाने से खफा
कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए रामनिवास रावत के लिए विशेष शपथग्रहण आयोजित कराने और इकलौते मंत्री बनाए जाने के बाद गोपाल भार्गव की नाराजगी खुलकर सामने आ गयी. उन्होंने कहा कि मैं 15 हजार दिन से विधायक हूं, रावत को मंत्री बनाने की ऐसी क्या मजबूरी थी. दरअसल उनके कहने का मतलब था कि पार्टी दो तिहाई सीटों के साथ बहुमत में है लेकिन कांग्रेस के विधायकों को पार्टी में लाकर उन्हें इस तरह मंत्री बनाए जाने के पीछे मजबूरी क्या है.
अब भी अपने बयान पर कायम
शुक्रवार को दमोह में भाजपा की केंद्र और राज्य सरकार की उपलब्धि गिनाने के लिए दमोह में आयोजित प्रेसवार्ता में जब विधायक गोपाल भार्गव से पूछा गया कि रावत के शपथ ग्रहण पर आपकी नाराजगी सामने आयी थी, तब उन्होंने कहा कि "मैं 41 साल से विधायक हूं, आप हिसाब लगाकर देख सकते हैं कि ये करीब 15 हजार दिन होते हैं. चुनावी और संगठन की राजनीति में मेरे पास लंबा अनुभव है और अगर मैंने अपने कामकाज और वरिष्ठता की बात की है तो कोई अनहोनी नहीं कर दी".
उठा सकते हैं बड़ा कदम
सियासी गलियारों में चर्चा है कि वैसे भी गोपाल भार्गव को कांग्रेस से बीजेपी में लाया गया था लेकिन जिस तरह से उनके बेटे के राजनीतिक कैरियर को लेकर और उन्हें चुनाव लड़ाए जाने के बाद वरिष्ठतम विधायक होने पर भी कोई पद नहीं दिया गया है. ऐसे में वो कोई बड़ा फैसला ले सकते हैं वैसे भी उनके बेटे के राजनीतिक भविष्य के सवाल पर कांग्रेस लगातार डोरे डाल रही है.