सागर। वैसे तो शहर में अंजनी नंदन हनुमान के कई ऐतिहासिक और प्रसिद्ध मंदिर हैं, लेकिन छावनी इलाके में कठवा पुल सरकार मंदिर स्थानीय लोगों की आस्था का विशेष केंद्र है. दरअसल, ये मंदिर करीब डेढ़ सौ साल पुराना है और ब्रिटिश राज की छावनी से जुड़ा मंदिर का इतिहास है. कहा जाता है कि करीब डेढ़ सौ साल पहले सेना के लकड़ी के पुल के निर्माण के दौरान रामभक्त हनुमान की मूर्ति मिली थी, तो सैनिकों ने पुल के पास ही मूर्ति स्थापित कर दी. लकड़ी के पुल के पास मंदिर होने के कारण ये कठवा पुल मंदिर कहलाने लगा और हनुमान जी को भक्तगण कठवा पुल सरकार बोलने लगे. आषाढ़ महीने के हर मंगलवार को मंदिर में विशेष पूजा आरती की जाती है और भंडारे का आयोजन होता है.
कठवा पुल मंदिर का इतिहास
इतिहासकार डॉ. भरत शुक्ला बताते हैं कि सागर इलाके में मराठा शासन की समाप्ति 1818 में हुई थी. अंग्रेजों को अपना राज स्थापित करने में बुंदेलखंड इलाके में काफी विरोध का सामना करना पड़ा था. इसलिए उन्होंने यहां पर छावनी स्थापित की थी. तब सागर शहर काफी छोटा था और काफी बड़े इलाके में सेना की छावनी स्थापित की गई थी. मंदिर के पुजारी उमाकांत गौतम बताते हैं कि सेना को आवागमन में कठिनाई होती थी. इस कारण सेना ने यहां लकड़ी का पुल बनाना शुरू किया था. तभी खुदाई के दौरान बरगद के पेड़ के नीचे हनुमान जी की मूर्ति मिली थी. सेना के जवानों ने वृंदावन के पुजारी की मदद से मूर्ति की स्थापना की थी. तभी से स्थानीय लोग और सेना के जवान मंदिर में विशेष आस्था रखते हैं.
दर्शन मात्र से ही होती है मनोकामना पूरी
लगभग हर मंदिर में पूजा और मनोकामना पूर्ति का विशेष तरीका होता है, लेकिन कठवा पुल सरकार मंदिर के पुजारी बताते हैं कि यहां दर्शन मात्र से ही हनुमान जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है और भक्तों की मनोकामना पूरी होती है. यही वजह है कि ये मंदिर सेना और स्थानीय लोगों में आस्था का केंद्र है. पिछले कई सालों से रोजाना मंदिर दर्शन करने आ रहे श्रद्धालु राजेंद्र श्रीवास्तव बताते हैं कि "मैंने जब से होश संभाला है. यहां प्रतिदिन दर्शन करने आता हूं. पूरे शहर के लोगों और विशेष कर सेना और स्थानीय लोग कठवा पुल सरकार मंदिर में विशेष आस्था रखते हैं. कठवा पुल सरकार के दर्शन मात्र से बड़ी से बड़ी परेशानी दूर हो जाती है और हर मनोकामना पूरी होती है."