सागर। शहर में स्थित जवाहरलाल नेहरू पुलिस अकादमी मध्य प्रदेश में विधिवत पुलिस ट्रेनिंग की शुरुआत का प्रतीक है. दरअसल ये किला 1857 की क्रांति का भी गवाह है. जब दांगी राजाओं के किले में 1857 की क्रांति में क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों को बंधक बना लिया था. कई दिनों के रेसक्यू ऑपरेशन के बाद अंग्रेज सुरक्षित बच पाए थे. बाद में अंग्रेजों ने 1906 में इसी किले में पुलिस ट्रेनिंग की शुरूआत की. पुलिस ट्रेनिंग स्कूल को पहले काॅलेज का दर्जा दिया गया और बाद में अकादमी बनाया गया. खास बात ये है कि यहां देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू 1952 में आए थे और पुलिस ट्रेनिंग स्कूल को कलर प्रदान किया था. कलर सशस्त्र सेनाओं के ध्वज के रंग के लिए कहा जाता है. यहां का संग्रहालय ब्रिटिश काल से लेकर आजादी और वर्तमान तक के पुलिस प्रशिक्षण, साहस और कारनामों से परिचित कराता है.
क्या है किले का इतिहास
इतिहासकार डाॅ. भरत शुक्ला बताते हैं कि जवाहरलाल नेहरू पुलिस अकादमी जिस किले में संचालित हो रही है. वह किला 1660 ई. में दांगी राजा निहाल शाह के वंशज उदनशाह ने बनवाया था और किले के नजदीक परकोटा गांव बसाया गया. जो अब सागर शहर का एक मोहल्ला है. सन 1728 में मुगल सेनापति सरदार बंगस से युद्ध में मदद करने वाले बाजीराव पेशवा को महाराजा छत्रसाल ने रियासत का एक तिहाई हिस्सा दिया था. 1735 ई. के बाद सागर और आसपास के क्षेत्र पेशवा के कब्जे में आ गया. जिसका प्रभार पेशवा ने गोविंदराव पंडित को दिया. 1818 में ये किला बाजीराव पेशवा द्वितीय ने ब्रिटिश सरकार को सौंप दिया. कहते हैं कि 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों को किले में ही बंधक बना लिया था. क्रांतिकारी शेख रमजान ने क्रांतिकारियों का नेतृत्व करते हुए अंग्रेजों को किले में छिपे रहने पर मजबूर कर दिया था. कई दिनों तक रेस्क्यू ऑपरेशन चला और ब्रिटिश सेना ने फिर किले को अपने कब्जे में ले लिया. सागर में अंग्रेजों ने छावनी की स्थापना 1835 में ही कर दी गई थी, लेकिन 1942 के बुंदेला विद्रोह और फिर 1857 की क्रांति में क्रांतिकारियों के तेवर और बगावत के चलते अंग्रेजों ने सेना की छावनी के अलावा पुलिस ट्रेनिंग के लिए सागर को ही चुना.
118 साल पुराना पुलिस ट्रेनिंग का इतिहास
शहर के परकोटा स्थित किले में बनी जवाहरलाल नेहरू पुलिस अकादमी मध्य प्रदेश का एकमात्र ऐसा प्रशिक्षण संस्थान है, जिसकी नींव अंग्रेजी हुकूमत में सन 1906 में रखी गई थी. इसके पहले प्रिसिंपल ब्रिटिश प्रोफेसर प्रो जी डब्ल्यू गेयर थे. जो 1 जनवरी 1906 से 27 मार्च 1909 तक प्रिसिंपल रहे. अकादमी के संग्रहालय में आज भी पहले प्रिसिंपल की कुर्सी रखी है. शुरुआत एक पुलिस ट्रेनिंग स्कूल के तौर पर हुई फिर सन 1936 में स्कूल को पुलिस ट्रेनिंग कॉलेज का दर्जा दिया गया और 1986 में पुलिस अकादमी के तौर पर उन्नयन किया गया.
प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने किया था दौरा
देश की आजादी के बाद पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू पुलिस अकादमी का दौरा करने आए थे. उन्होंने 30 अक्टूबर 1952 को आयोजित सब इंस्पेक्टर के दीक्षांत समारोह में हिस्सा लिया था. जवाहर लाल नेहरू ने अकादमी को सन 1952 में कलर प्रदान किया था. कलर पुलिस ट्रेनिंग कॉलेज का ध्वज था, जो पीला और काले रंग का होता है. सन 1986 में कॉलेज को अकादमी का दर्जा प्रदान किया गया और पंडित जवाहरलाल नेहरू के नाम पर नामकरण किया गया. यहां के संग्रहालय में जवाहलाल नेहरू के पद चिन्ह रखे हुए हैं, हालांकि वो मध्य प्रदेश के सतना दौरे के दौरान लिए गये थे. इसके अलावा उनके निधन के पश्चात उनकी अस्थियां यहां लाई गई थीं, जिनके कलश रखे हुए हैं.
संग्रहालय में पुलिस और अपराध का इतिहास
जवाहरलाल नेहरू पुलिस अकादमी में एक संग्रहालय भी बनाया गया है. जिसमें मध्य प्रदेश पुलिस के इतिहास से लेकर मध्य प्रदेश के अपराधों का इतिहास एक साथ देखने मिल जाएगा. यहां पर पुलिस ट्रेनिंग स्कूल के पहले प्रिंसिपल की लकड़ी की कुर्सी रखी है, तो प्रधानमंत्री नेहरू के 1952 में अकादमी के दौरे से जुड़ी यादें संजोई गयी हैं. यहां पंडित नेहरू के हाथों और पैरों के चिह्न संग्रहित करके रखे गए हैं. चोरी और डकैती में उपयोग आने वाले हर तरह के हथियार यहां देखने मिल जाएंगे. अंग्रेजों के जमाने की राइफल से लेकर अभी तक की हथियारों का संग्रह यहां मिलेगा. अंग्रेजों की जमाने के पुलिस बैज से लेकर अब तक के बैज देखने मिलेंगे तो आदिवासियों के हथियार भी यहां देखने मिल जाएंगे.