सागर: सेंट्रल यूनिवर्सिटी डाॅ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय हाइकोर्ट के उस सवाल का जबाव नहीं ढूंढ पा रहा है. जिसमें हाइकोर्ट ने यूनिवर्सिटी से पूछा है कि क्या विश्वविद्यालय के प्रोफेसर राजनीतिक दल के सदस्य हो सकते हैं? दरअसल, हाइकोर्ट में ओबीसी आरक्षण को लेकर दायर याचिका के मामले में हाइकोर्ट ने ये सवाल करते हुए 20 जनवरी को तारीख तय की थी, लेकिन यूनिवर्सिटी ने जब कोई जवाब नहीं दिया, तो हाइकोर्ट ने आगामी 28 जनवरी को रजिस्ट्रार को खुद उपस्थित होकर जवाब देने कहा है.
क्या है मामला
दरअसल, सागर यूनिवर्सिटी के कम्प्यूटर साइंस विभाग के प्रोफेसर गिरीश कुमार ने 2021 में ओबीसी आरक्षण को लेकर हाइकोर्ट में एक याचिका दायर की थी. जिसमें उन्होंने अपने आप को यूथ फाॅर इक्विलिटी नाम के राजनीतिक दल का सदस्य बताया था. उन्होंने ओबीसी आरक्षण 14 प्रतिशत से 27 प्रतिशत किए जाने का विरोध जताया था. इस मामले में 6 दिसंबर 2023 को सुनवाई हुई, तो ओबीसी आरक्षण की पैरवी कर रहे सीनियर एडव्होकेट रामेश्वर सिंह ठाकुर और विधायक शाह ने इस आधार पर आपत्ति ली थी कि क्या किसी यूनिवर्सिटी का सदस्य कोई राजनीतिक दल की सदस्यता ले सकता है.
वकीलों की आपत्ति पर हाइकोर्ट ने यूनिवर्सिटी को नोटिस जारी कर जबाव मांगा था और 20 जनवरी 2025 सुनवाई की तारीख तय की थी, लेकिन विश्वविद्यालय की तरफ से तय तारीख पर कोई वकील उपस्थित नहीं हुआ. ऐसे में हाइकोर्ट ने आगामी 28 जनवरी को खुद रजिस्ट्रार को उपस्थित रहकर जवाब देने कहा है.
प्रोफेसर छोड़ गए नौकरी, यूनिवर्सिटी को नहीं मिल रहा जवाब
दूसरी तरफ डेढ़ महीने बाद भी यूनिवर्सिटी इसका जबाव खोजने में लगी है. अभी तक ये नहीं बता पा रही है कि विश्वविद्यालय का कोई प्रोफेसर किसी राजनीतिक दल का सदस्य हो सकता है कि नहीं. यूनिवर्सिटी के मीडिया ऑफिसर का कहना है कि विश्वविद्यालय के विधि अधिकारी का कहना है कि हाइकोर्ट ने जो जवाब मांगा है, अभी वो जबाव तैयार नहीं हुआ है. जिन प्रोफेसर के संबंध में ये मामला है, वो भी छोड़कर जा चुके हैं. विधि विशेषज्ञों से चर्चा के बाद जवाब पेश किया जाएगा.
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यूनिवर्सिटी ले रही कई जगह से परामर्श
दरअसल, इस मामले में यूनिवर्सिटी को विधि विशेषज्ञों के अलावा भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय और दूसरे उच्च शैक्षणिक संस्थानों से संपर्क करना पड़ा है, क्योंकि बताया जा रहा है कि यूनिवर्सिटी जब स्टेट यूनिवर्सिटी हुआ करती थी, तब वहां के सीसी कंडक्ट रूल में प्रावधान था कि शैक्षणिक पदों पर काम करने वाले राजनीतिक दल के सदस्य नहीं हो सकते हैं, लेकिन अब यूनिवर्सिटी सेंट्रल हो गयी है. ऐसे में सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या पुराना नियम लागू रहेगा या नहीं. ऐसी स्थिति में यूनिवर्सिटी विधि विशेषज्ञों के साथ-साथ, भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय और अन्य केंद्रीय संस्थानों से जानकारी जुटा रहा है.